उन्नाव रेप के आरोपी विधायक पर विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी गई है। यह सब उत्तर प्रदेश में मचे हंगामे के बाद ही हुआ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल किया है कि विधायक को गिरफ्तार करोगे या नहीं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, वहां के प्रशासन, वहां की व्यवस्था पर लाखों सवाल खड़े करता यह रेप मामला 11 महीनों के लम्बे समय के बाद अब जाकर हम लोगों तक पहुंचा है। अगर मीडिया ने पीड़ित युवती की आवाज बुलन्द न की होती तो शायद भाजपा के दबंग विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का बाल भी बांका नहीं होता।
उन्नाव की घटना की जो गहराइयां अब तक देखने को मिली हैं, यह घटना उससे कहीं ज्यादा बड़ी है। राजनीति का अपराधीकरण देश के लिए एक गम्भीर समस्या तो है ही, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले खुद को दोषमुक्त साबित करने के लिए राजनीति का सहारा लेते हैं। इससे विधानसभाओं से लेकर संसद तक की छवि प्रभावित हुई है। भारतीय जनता पार्टी को भी ऐसी गंगा नहीं बताया जा सकता जिसमें डुबकी लगाने वाले सभी पापों से मुक्त हो जाएं।
मामला पहले ही दिन से स्पष्ट था, आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर पास्को एक्ट में आईपीसी की धाराओं 363, 366, 376, 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। पुलिसकर्मी भी निलम्बित किए गए हैं और पीड़िता के पिता की मौत के मामले में डाक्टर भी निलम्बित किए गए हैं। निर्भया बलात्कार कांड के बाद तूफान उठा था। देशभर के आक्रोशित युवाओं की भीड़ सीधे रायसीना हिल्स के दरवाजे तक पहुंच गई थी। निर्भया रेप केस के बाद बलात्कार कानूनों को सख्त बनाया गया था, वह सब प्रावधान किए गए थे ताकि दोषी बच नहीं पाए।
अफसोस कि निर्भया कांड के बाद भी कुछ नहीं बदला। इतने महीनों जांच के नाम पर पुलिस ने क्या किया। अगर सत्ता में विधायक का दबदबा नहीं होता तो पुलिस उसे कानून की विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार कर सकती थी, जो धाराएं अब लगाई गई हैं, वह भी पहले से ही मौजूद हैं। पास्को एक्ट लगाए जाने के बावजूद विधायक की तुरन्त गिरफ्तारी न किया जाना आश्चर्यचकित है। पुलिस ने विधायक से कोई पूछताछ क्यों नहीं की?
बलात्कार की शिकार युवती के पिता का क्या दोष था? क्यों उसे जेल में डाला गया? अगर लड़की के पिता को गिरफ्तार किया गया तो झगड़े के मामले में दूसरे पक्ष को छुआ तक नहीं गया, क्यों? जेल में लड़की के पिता को पीट-पीटकर मार डाला गया और पुलिस अधमरी हालत में लड़की के पिता के अंगूठे के निशान ले रही थी, क्यों? सब कुछ सामने आ चुका है। अब पुलिस कार्रवाई करने को मजबूर है। क्या एसआईटी आैर सीबीआई जांच लड़की के पिता को फिर से जिन्दा कर सकती है? यह पुलिस और राजनीति से जुड़े परिवार की सांठगांठ की बर्बरता है।
आरोपी विधायक जिस तरह से टीवी पत्रकारों से बतिया रहा है उससे साफ जाहिर है कि उसे दूर-दूर तक कहीं भय और अपराध बोध नहीं है। भय का बोध दो ही अर्थों में नहीं होता। या तो कोई उतना अबोध हो जो भय की भयावहता को न समझ पाता हो, उसे न महसूस कर पाता हो। दूसरा, वह शख्स भय बोध से रहित होता है जिसे मालूम हो कि उसे कुछ नहीं होगा। जिसे मालूम हो कि उसके सिर पर उन लोगों का वरदहस्त है, वास्तव में जो सत्ता है।
दरअसल राजनीतिक दुनिया सिर्फ कंटीली ही नहीं बल्कि इतनी बेशर्म है कि चाहे लोकतंत्र के कितने पहरेदार उसकी चौकसी के लिए लगा दिए जाएं, वह अपना संस्कार नहीं त्यागने वाली। आरोपी भाजपा विधायक के समर्थन में आए एक भाजपा विधायक का बयान भी काफी शर्मनाक है- तीन बच्चों की मां से कोई बलात्कार नहीं कर सकता, लड़की झूठ बोल रही है।
गुरु गोरखनाथ परम्परा के योगी आदित्यनाथ के शासन में यह कैसे-कैसे स्वर सुनने को मिल रहे हैं। बलात्कार बलात्कार ही होता है चाहे वह बालिका से किया जाए, युवती के साथ किया जाए या किसी विवाहिता से। अब तो योगी शासन के खिलाफ आक्रोश के स्वर पार्टी के भीतर से ही उठने लगे हैं। शासन और पुलिस प्रशासन का अब तक का रवैया आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय मामले को प्रभावित करने का ही रहा है।
सामूहिक बलात्कार के आरोपियाें पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की तब भी पुलिस काे संवेदनशील होने और मुख्यमंत्री कार्यालय को अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। आरोपी विधायक आैर उसके रिश्तेदारों सहित पुलिस की जो भूमिका सामने आई है उससे साफ है कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भरोसा एक चुनावी नारा भर था।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का मुद्दा हमेशा गम्भीर रहा है। इसका कारण यह है क्योंकि राजनीतिज्ञों और अपराधियों में इतना गहरा गठजोड़ हो चुका है कि दोनों को एक-दूसरे से अलग करके देखना असम्भव सा लगता है। यद्यपि उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने बलबूते पर सत्ता में है लेकिन पुराना सामाजिक ढांचा ज्यों का त्यों बना हुआ है। इस प्रकरण से योगी और पार्टी की छवि प्रभावित हुई है। योगी आदित्यनाथ को इसे गम्भीरता से लेना होगा। एक सभ्य समाज में कानून का राज होना जरूरी है। लोगों में ऐसी धारणा नहीं बननी चाहिए कि आरोपी विधायक का कुछ नहीं होगा और योगी के ‘रामराज’ में वह बेगुनाह साबित हो जाएगा। ऐसी धारणा अराजकता को जन्म दे सकती है, जो भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है।