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It’s My Life (33)

पीलू मोदी जब आखिरी बार राज्यसभा सदस्य था तो मेरा बड़ा ही गहरा दोस्त था। बहुत ही हाजिरजवाब, बहुत ही ज्ञानी और हंसमुख व्यक्ति थे। हुआ यूं कि मैं और मेरा छोटा भाई शिमला में छुट्टियां मनाने आए थे।

पीलू मोदी जब आखिरी बार राज्यसभा सदस्य था तो मेरा बड़ा ही गहरा दोस्त था। बहुत ही हाजिरजवाब, बहुत ही ज्ञानी और हंसमुख व्यक्ति थे। हुआ यूं कि मैं और मेरा छोटा भाई शिमला में छुट्टियां मनाने आए थे। इस बीच ओबराय होटल में ठहरे थे। उस दिन शाम को इसी होटल में पीलू मोदी एक प्रैस कांफ्रेंस को सम्बोधित कर रहे थे। हम दोनों भाई भी इस प्रैस कांफ्रेंस में जा घुसे। मैंने देखा कि वहां पर आए प्रैस संवाददाता और रिपोर्टर बहुत ही फुसफुसे और निराधार प्रश्न पीलू से पूछ रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने राष्ट्रीय और हिमाचल से संबंधित प्रश्न पूछने शुरू कर दिए। 
थोड़ी देर में ही वहां का सारा परिदृश्य ही बदल गया। जब मैंने दस से ज्यादा तूफानी प्रश्न पीलू मोदी से पूछ डाले तो पीलू ने मुझसे पूछा “Young man you belong to which news paper” यानि ‘‘युवा साथी तुम किस समाचार पत्र से संबंधित हो’’ मैंने  बताया  कि मैं जालन्धर के पंजाब केसरी का रिपोर्टर हूं तो पीलू बोले “You are very Intelligent and perfect journalist” तुम बहुत समझदार और एक विशुद्ध पत्रकार हो।’’ जब प्रैस कांफ्रैंस खत्म हुई तो पीलू ने मुझे बुलाया और रात का डिनर उन्हीं के साथ लेने का आग्रह किया।
 मैं मान गया और रात का डिनर उसी होटल में हम दोनों भाइयों ने पीलू मोदी के साथ लिया। पीलू शराब बहुत पीते थे और हंसते-हंसते बातें करते थे। इस दौरान उन दिनों की बात है जब मेनका गांधी को श्रीमती इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री निवास से ​निकाल दिया था। मेनका शुरू से ही राजनीति में आने के लिए तत्पर रहती थीं। 
मेनका के ही एक नजदीकी मित्र के अनुसार मैंने सुना था कि जब संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मृत्यु हुई तो मेनका ने संजय गांधी यानि अपने प्रिय पति की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी से अपना हक मांगना शुरू कर दिया और कहने लगी कि उन्हें यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाए ताकि आगे चलकर स्वर्गीय पति संजय की तरह वह कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनकर अपना कंट्रोल पार्टी पर स्थापित कर सकें। इंदिरा जी मेनका की इन बातों से हैरान और परेशान हो गईं। 
संजय के संस्कार तक तो चुप रहीं लेकिन बाद में जब मेनका ने उन्हें ज्यादा तंग करना शुरू कर दिया तो श्रीमती गांधी ने मेनका को घर से निकाल दिया। उन दिनों शिमला के समीप चायल के एक होटल में रुकी हुई थी। मुझे जब पता चला तो मैं अपने भाई संग चैल पहुंचा और मेनका से संबंध साधा। मैं मेनका द्वारा प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा निष्कासित और घर से बाहर का दरवाजा दिखाने के पश्चात उनका पहला इंटरव्यू पंजाब केसरी के लिए लेना चाहता था। मेनका ने मेरे साथ बातचीत में इंदिरा जी के विरुद्ध जो कुछ बोला मैंने अगले ही दिन पंजाब केसरी, हिंद समाचार दैनिक में प्रकाशित किया। काफी यादगारी इंटरव्यू था। पाठकों ने इसे पसंद भी किया। 
आज भी मेनका मेरी अच्छी दोस्त हैं। कई बार पीलीभीत से सांसद बनी हैं लेकिन भाजपा की टिकट पर। उनका बेटा भी बेहद बुद्धिमान है। वह भी संसद का सदस्य दो बार से है। यह तो थी मेनका की  कहानी। अब फिर से बात करेंगे पीलू मोदी की। वर्षों पहले पीलू मोदी ने अपने  प्रिय मित्र जुल्फिकार अली भुट्टो पर एक किताब लिखी थी जिसका नाम था – Zulfi, My Friend! यह किताब एक दोस्त ने लिखी थी। राजनीति के झंझावातों ने भले कालांतर में जुल्फिकार अली को सौ प्रतिशत सियासतदां बना दिया परन्तु जुल्फी और हुस्ना शेख के प्रेम प्रसंगों का वर्णन भी करते, एक मित्र ने बड़ी साफगोई से काम लिया था।  
आज मैं एक पूर्व प्रधानमंत्री को नहीं, एक मित्र को याद कर रहा हूं और उसकी याद में जो शब्द मेरे दिलो-दिमाग पर छाए रहे, वह शब्द थे – Rajiv My Friend! काश! आज राजीव गांधी जिन्दा होतेे ! आज अगर वह हमारे बीच होते तो पूरे 70 वर्ष के होते। तब शायद राष्ट्र का दृश्यपटल वह न होता जो राजनीति के मंच पर आज दिखाई दे रहा है। मैं जब अतीत में खो जाता हूं तो न जाने कितनी स्मृतियों का ताना-बाना एक साथ कौंधने लगता है। मेरी पहली मुलाकात राजीव गांधी से 1980 में हुई थी। 
राजीव गांधी अमेठी से अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। उस समय हमारा अखबार दिल्ली से प्रकाशित नहीं होता था। अमेठी स्टेशन पर गाड़ी से उतरने के पश्चात अमेठी गैस्ट हाऊस में मेरी पहली मुलाकात विश्वजीत सिंह से हुई थी। कपूरथला रियासत से सम्बन्धित विश्वजीत मेरे बड़े प्यारे मित्र हैं और उन दिनों राजीव गांधी के अमेठी में चुनाव प्रबंध को देख रहे थे। 
मैं बहुत भूखा था और विश्वजीत ने मेरे लिए भोजन का प्रबंध किया था और पटियाला के महाराजा अमरेन्द्र सिंह व विश्वजीत सिंह ने अपनी जीप में मुझे घुमाया और अंततः तालोई के राजा के किले में मेरी पहली मुलाकात राजीव गांधी से हुई। इस संदर्भ में मैं पं. किशोर उपाध्याय को भी नहीं भूल सकता जिन्होंने मुझे राजीव गांधी से मिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राजीव गांधी से पहली मुलाकात ने मेरे ऊपर बड़ा शदीद असर डाला। 
नियति ने एक ‘पायलट’ को किस भूमिका को निभाने के लिए भेज दिया था, मैं आश्चर्यचकित होकर देख रहा था। छोटे भाई के निधन का दुःख तो था ही, उनकी पत्नी सोनिया गांधी की भी इच्छा नहीं थी कि राजीव राजनीति में आएं क्योंकि आकाश में स्वच्छंद उड़ान भरते पक्षी को अगर सोने के पिंजरे में भी बंद कर दिया जाए तो उसे कैसा लगेगा? राजीव की मनःस्थिति भी ठीक ऐसी ही थी। बातचीत के क्रम में मुझे ऐसा लगा कि जैसे वह मेरे वर्षों पुराने जानकार हों। बिना सियासी लटकों-झटकों के उन्होंने मुझे लम्बे साक्षात्कार में जो-जो कहा उसका एक-एक शब्द मुझे आज भी स्मरण है और हफ्तों मैं राजीव गांधी के बोल अपनी अखबार में छापता रहा और जिस शीर्षक से तब यह सब छपा वह शीर्षक था- “Hello, मैं अमेठी से बोल रहा हूं।’’ 
तिलोई के किले में मैंने राजीव गांधी के साथ डिनर किया। वहीं मेरी मुलाकात राजा अमरेन्द्र सिंह से हुई जो आजकल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। इनसे तो मेरी पुरानी जान-पहचान थी। महाराजा पटियाला के नाम से मशहूर राजा साहिब मेरे क्रिकेट खेलने के जमाने में जब भी रणजी ट्राफी मैच पटियाला के बारहदरी मैदान पर होता था तो देखने आया करते थे। मेरे बड़े जबरदस्त ‘फैन’ थे। मैच के दौरान रोजाना रात का खाना मैं इन्हीं के साथ खाता था। राजा साहिब सज्जन, ईमानदार और दोस्तों के दोस्त एक शहंशाह प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। 
क्रिकेट दौर के पश्चात पिछले 35 वर्षों में हमा​री दोस्ती प्रगाढ़ होती गई थी। ​तिलोई (अमेठी) की एक रोचक कथा आपको बताता हूं। डिनर के पश्चात राजीव गांधी और अमरेन्द्र मुझे वहीं बेसहारा छोड़ कर अमेठी सर्किट हाऊस रवाना हो गये। मैं अकेला तिलोई के महाराजा के किले के बाहर हाथ में अपना बैग लिए खड़ा रह गया। अब रात तो वहीं तिबानी थी। मैंने तिलोईकिले के बाहर एक ख​टिया देखी और उस पर सोने का प्रयत्न करने लगा लेकिन मोटे-मोटे मच्छरों ने जब मुझे काटना शुरू किया तो मेरी नींद तो क्या मेरे होश उड़ गए। जैसे-तैसे मैंने वहां मच्छरों से जूझते हुए रात गुजारी।​ 
जिंदगी में यह रात भी देखने को मिलेगी ऐसा कभी सोचा भी न था। मैं अगले दिन तिलोई से अमेठी शहर में पहुंचा और किशोर उपाध्याय से राजीव जी के प्रोग्राम मांगे। उस दिन अमेठी की अपनी संसदीय सीट में गौरीगंज इलाके के गांवों में राजीव गांधी के प्रोग्राम थे। यह बात 1980 की है। तब टी.वी. चैनल तो थे नहीं। कुल मिलाकर अंग्रेजी और भाषाई प्रैस थी। शायद मैं अकेला रिपोर्टर पंजाब केसरी का था जिसने खुद अमेठी आकर राजीव गांधी के चुनाव का आंखों देखा हाल लिखने का प्रयास किया हो? किशोर जी ने मेरे लिए एक कार का इंतजाम किया और मैं गौरीगंज के एक गांव में पहुंचा जहां राजीव गांधी का दौरा शुरू होना था। 
थोड़ी देर बाद पांच जीपों में राजीव वहां पहुंचे और साथ में राजा अमरेन्द्र सिंह भी थे। तब राजीव गांधी का राजनीति में यह पहला तजुर्बा था। भाषण भी कठिनाई से देते थे। मुझे याद है उस गांव में राजीव जी ने कुल चार लाईनों का भाषण दिया ‘‘भाइयो और बहनो, मेरे भाई की मृत्यु के पश्चात मैं अमेठी से चुनाव लड़ने आया हूं। मेरी मम्मी जी श्रीमती इंदिरा गांधी जो कि देश की प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने मुझे यहां भेजा है। आप अपना वोट मुझे दो, धन्यवाद।’’ जब राजीव और उनकी टीम अगले गांव जाने लगी तो मैंने अपने पुराने दोस्त अमरेन्द्र से कहा- ‘‘क्या आप मुझे राजीव गांधी के साथ उनकी जीप में बिठा सकते हैं।’’ 
उन्होंने पहले मुझे राजीव गांधी से मिलाया और बताया कि मैं कौन हूं। बाद में राजीव गांधी की जीप में ही मुझे बिठा दिया। मैंने राजीव गांधी का इंटरव्यू किया। शायद राजीव जी के राजनीतिक जीवन का यह पहला प्रैस इंटरव्यू था। इंटरव्यू के बाद मैंने राजीव से कहा ‘‘ आप बुरा ने मानें तो आपको एक बात कहूं।’’ राजीव बहुत ही भोले और दिल के साफ व्यक्ति थे। राजीव बोले ‘‘हां बताइये।’’ मैंने कहा कि मैंने पिछले गांव में आपका भाषण सुना। वैसे तो आप जीत जाओगे लेकिन मुझे आपके भाषण में कोई दम नजर नहीं आया। अगर आप अपने भाषण में दो लाइन और जोड़ दें तो आपका भाषण प्रभावशाली बन सकता है। 
मैं फिर बोला कि अगर आप गांव के लोगों से कहें कि ‘‘सांसद बनने के पश्चात आप की आर्थिक हालत में सुधार लाऊंगा और अमेठी की तरक्की के लिए काम करुंगा।’’ अगले गांव में राजीव गांधी ने मेरे द्वारा सुझाई दोनों बातें कहीं तो गांव वालों ने तालियां बजाईं। राजीव गांधी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।  राजीव गांधी से पहली मुलाकात के पश्चात ही मेरी उनसे दोस्ती के बीज पड़ने लगे और अन्ततः यह दोस्ती आने वाले दिनों में प्रगाढ़ होती चली गई। नवम्बर, 1984 में जब वह प्रधानमंत्री बने तब भी और 1990 में जब प्रधानमंत्री पद से उतरे और विपक्ष के नेता बने तब तक हमारी दोस्ती में मैंने कभी कोई कमी महसूस नहीं की। 20 मई, 1991 यानी उनके निधन के एक दिन पूर्व तक मैं उनके साथ राजस्थान और गुजरात की चुनावी हवाई यात्रा पर था। हमारा अखबार 1982 से दिल्ली से छपना शुरू हो चुका था। 
महाकाल के महाचक्र से न तो आज तक कोई बचा है और न इससे बचने का कोई मार्ग ही है। अतः कई बार ऐसा लगता है कि महत्व शरीर धारण करने का नहीं होता, शरीर धारण करने की सार्थकता का होता है। सियासी चश्मा लगाकर देखने से भले राजीव जी पर बोफोर्स का भूत हमें मंडराता लगे लेकिन सच यह है कि यह बात उनकी ‘निजता’ का अंग नहीं थी। बोफोर्स को माननीय न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया लेकिन जब तक राजीव गांधी पर से बोफोर्स का धब्बा मिटा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 
बोफोर्स की वजह से उनकी पत्नी सोनिया और दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका की मनोदशा का अंदाजा मैं बखूबी लगा सकता हूं। सचमुच राजीव गांधी और उनके परिवार के लिए पिछले दो दशक बोफोर्स की वजह से अत्यधिक तनावपूर्ण रहे होंगे। मुझे आज भी याद है जब मैंने राजीव गांधी से पूछा कि ‘‘क्या सचमुच बोफोर्स की खरीद में आपने कमीशन खाई है?’’ तो उनका जवाब था, ‘‘इसका फैसला एक दिन समय करेगा कि मैं निर्दोष हूं।’’ समय ने राजीव गांधी को निर्दोष तो घोषित कर दिया लेकिन अपने को निर्दोष साबित हुआ देखने से पहले ही राजीव गांधी हमें बीच मझधार में छोड़ गए। मैंने बार-बार महसूस किया कि मां की मृत्यु के बाद भी किसी के लिए उनके दिल में कोई पूर्वाग्रह नहीं था। 
एक युवा प्रधानमंत्री के रूप में उनके जो ‘वलवले’ थे, काश! उन पर मैं विस्तार से लिख पाता। व्यक्तिव में जो करिश्मे की सुगंध होती है वह प्रकृति की देन होती है, वह परमात्मा की देन होती है, और उसमें ईमानदारी की बड़ी भूमिका होती है। यह करिश्मा उनमें था और भविष्य में शायद प्रियंका में उसी करिश्मे को लोग महसूस करेंगे, ऐसा मेरा मानना है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, वक्त इसका निर्धारण करेगा। 
हालांकि कांग्रेस पार्टी से मुझे कुछ लेना-देना नहीं और पेशेवराना अंदाज में कांग्रेसियों ने जिस प्रकार का आचरण शुरू किया और जिस ढंग से UPA सरकार के गठबंधन में दागी मंत्रियों को अपने गले लगाया वह उन्हें एक दिन ले डूबा। श्रीमती सोनिया गांधी को अभी इन हुकम के ‘पत्तों’ पर नजर रखनी पड़ेगी। बात मैं राजीव गांधी की कर रहा था। भारत की जनता को शायद याद हो या न हो लेकिन मुझे याद है कि ‘अग्नि मिसाइल’ का परीक्षण उन्हीं के काल में हुआ।
आंध्र प्रदेश की एक जनसभा को 15 फरवरी 1988 को सम्बोधित करते उन्होंने कहा-‘‘प्रत्यक्ष या परोक्ष हम पर न जाने कितने दबाव पड़े कि हम इसका परीक्षण न करें, परन्तु हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता अपनी सीमाओं की रक्षा है, इससे हमारी सुरक्षा का प्रश्न जुड़ा है।’’असम और पंजाब की समस्याओं को सुलझाने के प्रति जो दृष्टि उन्होंने अपनाई वह एक सकारात्मक दृष्टि थी। 
एशियाई राष्ट्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता करते उन्होंने जिस सूझबूझ का परिचय दिया, सारे विश्व में उनकी सराहना हुई। 28 अप्रैल, 1989 को उन्होंने सदन में जवाहर रोजगार योजना की घोषणा की और केन्द्रीय सहायता का लाभ ‘गांव’ के निचले तथा आखिरी आदमी को हो, उसके लिए वह मध्य प्रदेश के आदिवासी गांवों में अपनी पत्नी को लेकर घूमते रहे। आज जिस कम्प्यूटर एवं IT क्रांति को हम भारत में देख रहे हैं, इसकी शुरूआत राजीव गांधी ने ही की थी।
 अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने जो कुछ किया, उसे छोटे से सम्पादकीय में बांधना कठिन है। इस सीधे-सादे व्यक्ति को अगर सामना करना पड़ा तो अपनाें की ही बेवफाई का करना पड़ा। जो पुराने मित्र थे, वह भी साथ छोड़ गए। अमिताभ बच्चन से आरिफ मुहम्मद खां, अरुण नेहरू, अरुण सिंह, किस-किस का नाम गिनाऊं? अपने को विश्व का सबसे बड़ा ईमानदार राजनीतिज्ञ साबित करने की ललक में विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसा ढोंगी भी राजीव गांधी की पीठ पर वार करने से बाज न आया। 
बाहर वालों के तो जहरीले तीर सहे जा सकते हैं, लेकिन अपनों के जख्म सहना बड़ा मुश्किल होता है। एक ईमानदार, स्पष्ट छवि और सीधे-सादे स्वभाव वाले राजीव गांधी को उनके निकटतम दोस्तों और लोगों ने धोखे-पे धोखा दिया। 1989 में उनकी हार-विश्वासघातियों की ही विजय थी। यह कांग्रेस के द्वारा कांग्रेस की पराजय थी। देश अस्थिर हो गया। 17 महीनों में दो-दो सरकारें गिरीं। 1991 में मध्यावधि चुनाव ही के दौरान राजीव गांधी के साथ दुर्भाग्य ने पेराम्बदूर में क्रूर खेल खेला। तमिलनाडु में उस समय ‘राष्ट्रपति शासन’ था। 
राष्ट्रपति शासन में ढीली-ढाली सुरक्षा का कौन जिम्मेदार होता है? राजीव गांधी को एसपीजी सुरक्षा क्यों नहीं दी गई? आज क्या लिखूं? लेकिन आगे चलकर विस्तार से लिखूंगा। राजीव गांधी एक सच्चे इन्सान थे और राजनीति में सच्चे इन्सानों की कोई जगह नहीं। अपने लोग राजनीति में ज्यादा खतरनाक होते हैं, यह बात तब भी सच थी और आज भी सच है। साथ ही राजनीति कितनी निर्मम होती है, इसका ज्ञान भी मुझे राजीव की हत्या के पश्चात हुआ। (क्रमशः)

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