कर्नाटक की बदहवास सियासत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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कर्नाटक की बदहवास सियासत

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कर्नाटक विधानसभा के लिए हो रहे चुनावों में अब पांच दिन का समय शेष रह गया है मगर इनके लिए हो रहे प्रचार में जिस तरह बदहवास भाषा का इस्तेमाल हो रहा है और उन मुद्दों को खड़ा करने की कोशिश की जा रही है जिनसे इस राज्य की जनता का दूर-दूर तक भी लेना-देना नहीं है, उससे यह आभास हो रहा है कि राजनीतिक पार्टियां बौखलाहट में हैं और उनमें वैचारिक दिवालियापन पसर चुका है। ये चुनाव राज्य की सरकार के गठन के लिए हो रहे हैं मगर ऐसे गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं जिनका राज्य के विकास से काेई सीधा लेना-देना नहीं है। राज्य में खनन माफिया के भ्रष्टाचार के मुद्दे को जिस बेशर्मी के साथ ढकने के प्रयास किये जा रहे हैं, वह निश्चित रूप से आश्चर्यजनक है क्योंकि 2008 से 2013 तक के भाजपा के येदियुरप्पा शासनकाल के दौरान इस राज्य का शासन इसी माफिया के समक्ष सारे हकूक गिरवी रखकर चला था मगर यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि राज्य के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता श्री सिद्धारमैया के व्यक्तित्व के समक्ष पूरी राजनीति दंडवत प्रणाम कर रही है और एेलान कर रही है कि यह चुनाव सिद्धारमैया के विरुद्ध शेष सभी दलों का है।

स्वयं में यह विस्मयकारी है कि कांग्रेस के छाते के नीचे एक एेसे क्षेत्रीय नेता को फलने-फूलने दिया गया है जिसके सामने पार्टी का हाईकमान तक नतमस्तक है, उन्हें फ्रीहैंड दिया गया। कर्नाटक के चुनावों को सिद्धारमैया ने ठीक भाजपा की चुनावी रणनीति का मुकाबला करने के लिए ‘कन्नाडिगा अस्मिता’ काे मुद्दा बना दिया है। सिद्धारमैया एेसे राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं जिन्होंने चुनावों के आने से बहुत पहले ही भाजपा के हाथ से वे सभी चुनावी अस्त्र छीन लिये थे जिनका प्रयोग यह पार्टी उनकी सरकार के खिलाफ कर सकती थी। भाजपा काे उसके प्रिय अस्त्र राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व से सिद्धारमैया ने कर्नाटक की विशिष्ट क्षेत्रीय अस्मिता और लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक दर्जा देकर पहले ही निरस्त्र कर दिया और कोशिश की कि चुनाव राज्य की उन समस्याओं के मुद्दों पर हों जिनका सम्बन्ध केन्द्र की सरकार के साथ है। इनमें राज्य को कावेरी नदी से मिलने वाले पानी के हिस्से का मुद्दा प्रमुख है और बेरोजगार युवकों को रोजगार मुहैया कराने का विषय प्रमुख है।

किसानों के मुद्दे पर सिद्धारमैया को हाशिये पर डालना किसी भी पार्टी के लिए खासकर भाजपा के लिए बहुत मुश्किल काम इसलिए है क्योंकि मूलतः किसान आन्दोलनों से ही सिद्धारमैया का जन्म हुआ है। उन्हें लोगों को यह याद दिलाने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि 2014 के चुनावों में भाजपा कहा करती थी कि किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य मिलेगा और बागवानी करने वाले किसानों की आय मंे शीतल पेय कम्पनियों के उत्पादों में उनके उत्पादित फलों का रस मिलवा कर वृद्धि की जाएगी। यहां तक कि केले की एेसी फसल तैयार की जाएगी जिसमें विभिन्न विटामिनों की भरपूर मात्रा हो। ये सब वादे कहां हैं ? जो लोग इतिहास के विद्यार्थी हैं वे भलीभांति जानते हैं कि दक्षिण भारत का कर्नाटक अकेला एेसा राज्य था जहां ग्रामीण खेतिहर जातियों की बदौलत लोकदल से परिवर्तित जनता दल का दबदबा कांग्रेस के मुकाबले बढ़ा था और यहां रामकृष्ण हेगड़े व एस.आर. बोम्मई जैसे नेता मुख्यमन्त्री बने थे मगर कालान्तर में इन जातियों का बंटवारा जनता दल (एस) के नेता एच.आर. देवगौड़ा व भाजपा के येदियुरप्पा के बीच वोकालिंग्गा व लिंगायत के आधार पर हो गया जिससे भाजपा को यहां अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सफलता मिली मगर 2006 में जनता दल (एस) के एच.डी. कुमारस्वामी ने जिस तरह राज्य की धर्म सिंह की सरकार की नैया को बीच भंवर में डुबोया उससे इन दोनों पार्टियों के बीच की भीतरी समझ जगजाहिर हो गई।

मौजूदा चुनावों में भी सिद्धारमैया ने इस संभावित गठजोड़ का पर्दाफाश पहले ही करके कर्नाटक की ग्रामीण जनता को आगाह कर दिया है। अतः ये चुनाव उतने सरल नहीं हैं जितने कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में थे। इस राज्य में हिन्दुत्व का वह स्वरूप नहीं है जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में था। यही वजह है कि कर्नाटक की जनता ने टीपू सुल्तान का मुद्दा उठाये जाने पर इसे बरतरफ कर दिया था मगर अब पाकिस्तान से कुछ कट्टरपंथियों ने यह मुद्दा उठाया है मगर राजनीति अब बहुत बदल चुकी है, मतदाता तुरन्त हिसाब लगा लेते हैं कि इसका फायदा किस पार्टी को होगा कांग्रेस को या भाजपा को? अतः पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की मंशा किसे लाभ पहुंचाने की हो सकती है? इस पर कांग्रेस व भाजपा दोनों ही उलझ सकते हैं। यह बदहवासी का ही प्रमाण है वरना क्या वजह है कि हम इतिहास की कब्रें खोद कर गड़े मुर्दे निकाल कर उनका डीएनए टेस्ट करने को उतावले हो रहे हैं। टीपू सुल्तान हर नजरिये से भारत का ‘नायक’ था और मुहम्मद अली जिन्ना ‘खलनायक’।

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