अफवाहें कई बार कितनी खतरनाक हो जाती हैं कि इससे लोगों की जान भी चली जाती है। हालांकि अफवाहें पहले भी फैलती रही हैं, लोगों की जानें भी जाती रही हैं, लेकिन समाज सत्य की पड़ताल करने को तैयार ही नहीं है। झारखंड में बच्चे चोरी होने की अफवाह से लोगों ने 7 लोगों को पीट-पीट कर मार डाला। भीड़ ने दो आदिवासी बहुल गांवों में दो हमले किए। इन हमलों के विरोध में लोगों ने प्रोटेस्ट किया तो जमशेदपुर के दो क्षेत्रों में कफ्र्यू लगाना पड़ा। पुलिस कह रही है कि वह नहीं जानती कि अफवाह कहां से फैलनी शुरू हुई और इसे किसने फैलाया जबकि 7 निर्दोष लोगों की हत्या के लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार माना जा रहा है। सोशल मीडिया वरदान की जगह अभिशाप बनता जा रहा है। बच्चा लापता है या चुरा लिया गया, इसकी जांच करना पुलिस का काम है तो भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार ही नहीं है। जो बात सामने आ रही है कि वह काफी गम्भीर है। बच्चा चोरी की अफवाह को लेकर व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया, फिर युवकों की टोली बनाई गई और बच्चा चोरी की अफवाह फैलाई जाने लगी। अफवाहों के चलते ही लोग हर अंजान शख्स पर संदेह करने लगे और भीड़ हिंसक हो उठी। इस देश में कभी धर्म के नाम पर तो कभी किसी अन्य संवेदनशील मुद्दे पर तो साम्प्रदायिक बवाल पैदा होता रहा है लेकिन भीड़ का अदालत हो जाना कितना खतरनाक है जिनमें हिन्दू भी मरते हैं, मुसलमान भी। झारखंड में तो भीड़ का हौसला देखिये कि चार कारोबारियों की हत्या अलग-अलग जगहों पर की गई और तीन की दूसरी जगह।
झारखंड के सारे अखबार खबरों से भरे पड़े हैं। इन्हीं से पता चलता है कि गौतम औैर विकास को पहले बिजली के खम्भे से बांध कर पीटा गया। वहां के आसपास के गांववासी बड़ी संख्या मे जमा हो गए थे। हैरानी की बात तो यह है कि बड़ी संख्या में लोग जुट रहे थे मगर किसी ने रोका नहीं। जब थानेदार साहब पहुंचे तो लोगों ने उल्टा उन पर ही हमला कर दिया। अगर पूरे झारखंड की बात करें तो अब तक अफवाह के नाम पर हाल ही में 18 लोगों की हत्या हो चुकी है। कुछ तो है जिसे अब नजरंदाज नहीं किया जा सकता। भीड़ किस पैटर्न पर बन रही है, कौन है जो भीड़ बना रहा है। सोशल मीडिया अपनी बात कहने का शानदार मंच है लेकिन यह आतंक फैलाने का हथियार बन चुका है। वैसे तो जब सोशल मीडिया नहीं था तब भी अफवाहों के चलते महिलाओं को डायन समझ कर मार डाला जाता था लेकिन ऐसी घटनाएं बहुत कम थीं। इनके पीछे लोगों का अंधविश्वासी होना कारण था लेकिन अब तो भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा बलों को भी इस खतरनाक दुश्मन से जूझना पड़ रहा है। अफवाहें कश्मीर की फिजाओं में जहर घोल रही हैं। इन्हें रोकना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। घाटी में बार-बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई जाती है। कट्टरपंथी लोग युवाओं को पैसे देकर सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाते हैं जिस पर प्रदर्शन होने शुरू हो जाते हैं। लोगों को याद होगा कि 2012 में सोशल मीडिया पर फैली अफवाह के चलते ही बेंगलुरु में रह रहे पूर्वोत्तर के छात्रों ने अपने राज्यों को लौटना शुरू कर दिया था और गुवाहाटी एक्सप्रैस में सवार होने के लिए प्लेटफार्म पर हजारों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। गौहत्या की खबर पर नोएडा के गांव में भीड़ ने घर में घुसकर अखलाक की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
अब तो समाज में झूठ वायरल हो रहा है। कभी ‘डैथ काल’ का संदेश वायरल होता है तो कभी किसी स्कूल में मिड-डे-मील में जहर की अफवाह फैलाई जाती है। पिछले महीने तो हिमाचल के मंडी के एक मकान में तंत्र-मंत्र की सिद्धि और मकान में दबे खजाने को हासिल करने की मंशा से एक लड़की की नरबलि देने की अफवाह फैली तो हंगामा मच गया था। जिस देश में नमक की किल्लत होने को लेकर उड़ी अफवाह के चलते 100 रुपए किलो नमक बिक जाए तो इस पर क्या कहूं? कौन लोग हैं जो व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर अफवाहें फैला रहे हैं। क्या ये लोग इस बात का परीक्षण कर रहे हैं कि देखा जाए कि कितने लोगों को भीड़ की तरह हांक कर हत्यारे बनाया जा सकता है। प्रशासन भीड़ के आगे बेबस हो जाता है। लोग भी ऐसी अफवाहों के सच को परखते नहीं। शक के नाम पर भीड़ हत्यारी होती जा रही है जबकि सभ्य समाज में हिंसा और बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लोग अफवाहों की सत्यता को पहचानें, फिर संतुलित प्रतिक्रिया दें अन्यथा अफवाहें समाज में अराजकता फैला देंगी।