अक्सर कहते हैं जहां ईश्वर भी नहीं होता वहां मां होती है। वो मां जो खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुलाती है। अपने दूध से बच्चे को सींचती है। अंगुली पकड़ कर बच्चे को चलना सिखाती है, बच्चे को संस्कार देती है, बच्चे की प्रथम गुरु होती है। आज नैट का जमाना है। हर चीज तुम्हें गूगल पर मिलती है पर अभी तक मां की जगह गूगल नहीं ले सका, न कभी ले सकेगा। मां की दुआ आैर आह कभी खाली नहीं जाती। पुत्र कुपुत्र हो सकता है, माता कुमाता कभी नहीं होती। मां की ममता के आगे कोई कुछ नहीं। यही साबित कर दिया मां आयशा ने जिसका बेटा आतंकी बन गया था। उसे मां की ममता ने एक आम इन्सान बना दिया और उसे वापस मुख्यधारा में ला दिया।
कहते हैं सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। कश्मीर के माजिद इरशाद खान को भी भूला नहीं कहना चाहिए। बीस साल के माजिद की कहानी भी कश्मीर घाटी के उन युवकों से मिलजी-जुलती है जो भटक चुके हैं। माजिद के बारे में सोशाल साइट्स पर बराबर इत्तेला आ रही थी कि वह खूंखार आतंकवादी संगठन लश्कर से जुड़ चुका है। मासूम आैर आकर्षण से भरा यह गोरा-चिट्टा युवक आतंकवादी बन गया था यह पढ़कर हैरानी भी हो रही थी और एके-47 के साथ बराबर उसके वीडियो वायरल हो रहे थे। यह युवक गजब का फुटबॉलर था। जो काम कर्को न कर सका वो एक मां ने कर दिखाया। उसकी मां (आयशा) जो हमेशा अपने बेटे के आतंकी बन जाने की खबरों से बड़ी दुःखी थी और रोती रहती थी ने आखिरकार सोशल साइट्स पर अपनी करणामयी गुहार बेटे के नाम लगाते हुए कहा कि ‘बेटा घर लौट आओ, अपने आप को पहचानो, मेरे आंसुओं की कीमत को समझो।’
मां के आंसू देखकर बेटे का दिल पसीज उठा और उसने श्रीनगर में सैनिक और पुलिस अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। दरअसल इस युवक के पिता को भी दिल का दौरा पड़ चुका था लेकिन मां के आंसू अब घर वापस ले आए। आत्मसमर्पण से पहले उसने अपनी मां से कहा कि मैं बहादुरी भरा फैसला लेने जा रहा हूं और आतंक का रास्ता छोड़कर घर वापस लौट रहा हूं। यह युवक ग्रेजुएशन कर रहा है और अपने एक दोस्त यावर नासीर के एन्काउंटर में मारे जाने से दुखी था। उसकी आखरी विदाई में जब वह शामिल हुआ तो वह भावनाओं में बहकर भटक गया था। ऐसी कहानियां अक्सर बॉलीवुड फिल्मों में देखने को मिलती है परंतु हकीकत में कश्मीर के फलसफे पर इस हृदय स्पर्शी कहानी का दर्द पूरा देश महसूस कर रहा है और मैं व्यक्तिगत रूप से यही कहना चाहूंगी कि घाटी के कई युवक बहक चुके हैं तो उन्हें राष्ट्रधारा में लौट आना चाहिए।
जो हाथ जम्मू-कश्मीर की एक अलग पहचान है, जो हाथ कश्मीरी शोले और दुशाले की कढ़ाई के लिए मशहूर हैं, जो हाथ पत्थरों पर बड़ी गजब की कलाकारी करते हैं वे हाथ अगर हमारे जवानों पर पत्थर फैंके तो कहानी सिर्फ एक भूल की ही है। माजिद की मां आयशा की कहानी हर किसी से जुड़ी हुई है। अगर एक वीडियो के वायरल होने से कोई युवक भटक सकता है तो इसी वीडियो पर मां के आंसू किसी भटके युवक को राह पर ला सकते हैं। ऐसा ही भयावह दौर हमने पंजाब में भी देखा है अब घाटी में देख रहे हैं। कितने ही युवक अगर हिंसा की राह पर चल निकले हैं तो सोशल साइट्स पर अपील कर उन्हें वापस मुख्यधारा में लाया जा सकता है। हम माजिद के इस बहादुरी और हिम्मत भरे फैसले की मुक्त कण्ठ से सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि घाटी के बाकी युवक भी इस वाकया को एक नजीर मानकर वापस आने घरों को लौट आएं।
एक मां और महिला होने के नाते हमारी मुख्यमंत्री महबूबा से अपील है कि अगर माजिद जैसे कुछ और युवक अपनी राह से भटक गए हैं। (जैसा कि एजेंसी की रिपोर्ट्स बता रही हैं) तो उन्हें वापस शांति के मार्ग पर लाने के प्रयास किए जाने चाहिए। कहा भी गया है कि अपराधी कोई मां के पेट से पैदा नहीं होता। अपराध की राह पर चलने से पहले ही अगर किसी को आम माफी या प्यार भरा हाथ या फिर मार्मिक आशीर्वाद मिल जाए तो वह सचमुच सही रास्ते पर आ सकता है। अब तो सरकार अपराधियों के भी गुनाह माफ करने की योजना पर विचार कर रही है तो आतंक के खात्मे के मार्ग में यह एक बड़ा कदम हो सकता है।
हम आखिर में यही कहना चाहते हैं कि आतंक कह देना बड़ा आसान है इसकी मार झेलना बड़ा कठिन होता है, यह उन्हें ही पता होता है जिन्हें आतंक की मार झेल रखी है लेकिन एक भूले हुए युवक के कश्मीर में अपनी मां के घर लौट आने की खबर सचमुच खुशगवार है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।