मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी की कमान वरिष्ठ नेता श्री कमलनाथ के हाथ में देकर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिद्ध कर दिया है कि वह अनुभवी और प्रशासनिक स्तर पर परखे हुए नेताओं को साथ लेकर इस राज्य में सत्ता बदल की मुहिम चलाएंगे। श्री कमलनाथ पार्टी का मध्यप्रदेश में एेसा चेहरा माने जाते हैं जिनके पीछे कांग्रेस के पुरानी और नई पीढ़ी के लोगों को खड़ा होने में गर्व का अनुभव होगा। इसकी वजह श्री नाथ का वह व्यक्तित्व है जो उन्हें अपनी पार्टी के अलावा विरोधी दलों तक में सम्मान देता है और उनहें सच्चा लोकतान्त्रिक सेवक मानता है।
गांधी परिवार से निकटता के बावजूद श्री कमलनाथ मध्यप्रदेश के गांव-गरीब और आम आदमी से अपनी निकटता सत्ता में रहने के बावजूद कायम रखने में कामयाब रहे हैं। उनकी राजनीतिक सोच उन्हें मध्यप्रदेश की शान्त और ऊर्जावान मिट्टी का एेसा लाल साबित करने में पीछे नहीं रही है जिसने हर संकट की घड़ी में कांग्रेस की मूल विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने में कभी मात नहीं खाई। उनके बारे में यह प्रसिद्ध है कि कमलनाथ एेसे राजनीतिज्ञ हैं जो ‘शेर और बकरी को एक ही घाट पर पानी पिलाकर राजनीति की उलझी हुई समीकरणें सुलझा देते हैं’।
राज्य के हर हिस्से महाकौशल से लेकर मध्यभारत व मालवा तक में उनके नाम से कांग्रेस स्वयं ही खड़ी हो जाती है। इसकी असली वजह श्री नाथ का किसानों व गरीबों के प्रति वह समर्पण है जो उन्हें कभी राजनीति में प्रवेश करते समय स्व. इंदिरा गांधी ने सिखाया था। यही वजह थी कि मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल में जब वह वाणिज्य मन्त्री थे तो कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के वार्ता दौर में भाग लेते हुए उन्होंने विकसित देशों के सामने चुनौती फैंक दी थी कि भारत से संगठन यदि कृषि सब्सिडी समाप्त करने या कम करने के लिए कहता है तो उसे सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत जैसे अन्य विकासशील देशों या उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के किसानों की माली हालत यूरोप के किसानों की माली हालत के बराबर हो।
किसानों की कीमत पर भारत अपने विकास को गति नहीं दे सकता। उनके इस तर्क के पीछे विश्व व्यापार संगठन में एक सौ के करीब मुल्क एकत्र हो गये थे और उन्हाेंने व्यापार संगठन की शर्तों का पुरजोर विरोध किया था। नेतृत्व का यह गुण उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र छिन्दवाड़ा के गांवों की धूल फांकने से मिला है, जहां से वह लगातार नौ बार से लोकसभा में सांसद हैं।
इस सदन के वह फिलहाल सबसे वरिष्ठ सांसद है जिसकी वजह से 2014 में नई लोकसभा गठित होने पर इसके कार्यसमय (प्रोटर्म) अध्यक्ष भी बने थे और उनकी अध्यक्षता में ही नये चुने गये सांसदों ने सदस्यता की शपथ ली थी। यह भी कम विस्मयकारी नहीं है कि श्री कमलनाथ ने अब से कई वर्ष पूर्व ही एक पुस्तक लिखकर घोषणा कर दी थी कि 21वीं सदी भारत की सदी ही होगी। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में वे सब कारण गिनाये हैं जो भारत की आर्थिक शक्ति के नियामक कहे जा सकते हैं।
कोलकाता के प्रेजीडेंसी कालेज से उच्च शिक्षा प्राप्त श्री कमलनाथ में पं. बंगाल की संस्कृति का वह पुट भी कहीं भरा हुआ है जो उन्हें जनता के बीच से राजनीतिक मुद्दे उठाने की प्रेरणा देता रहता है। शिखर राजनीति में इनका सदुपयोग किस तरह किया जाना चाहिए इसे उन्होंने केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में कैबिनेट मन्त्री रहते हुए कई बार सिद्ध किया। यदि बेबाकी के साथ विश्लेषण किया जाए तो उनके राज्य कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही मध्य प्रदेश की भाजपा नीत शिवराज सिंह सरकार पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो गये हैं।
उनकी संगठन क्षमता का परिचय राज्य में पिछले वर्ष हुए स्थानीय निकाय चुनावो में तब मिला था जब भाजपा के गढ़ में ही उनकी पार्टी ने अधिकतम नगर निकायों पर कब्जा कर लिया था। तब श्री कमलनाथ ने यही नारा दिया था कि ‘निकाय नगरवासियों की’। मगर इस राज्य की कांग्रेस राजनीति काफी उलझी हुई भी रही है। एक तरफ दो कार्यकाल तक मुख्यमन्त्री रहे दिग्विजय सिंह और दूसरी तरफ ग्वालियर के पूर्व राजघराने के युवा श्री ज्योतिरादित्य सिन्धिया का दबदबा इस पार्टी में भीतरखाने गुटबाजी को बढ़ावा देता रहता था।
मगर राहुल गांधी ने श्री कमलनाथ का चुनाव करके दोनों ही गुटों को शान्त कर दिया है और सन्देश दिया है कि अनुभव व योग्यता के समक्ष पूरी पार्टी को एकजुट होकर अपनी संगठन शक्ति का परिचय देना चाहिए। वास्तव में राज्य में पिछले 15 साल से जो सरकार चल रही है उसके दामन पर दागों की बहार है और इनमें सबसे बड़ा व्यापमं घोटाला व किसानों पर अत्याचार है। पिछले दिनों नर्मदा बचाओ अभियान के सिलसिले में मुख्यमन्त्री ने जिन साधुओं को राज्यमन्त्री का दर्जा देकर सरकारी सुविधाएं मुहैया कराई हैं वे इसी बात का संकेत करती हैं कि राज्य सरकार धर्म की आड़ में राजनीति का खेल करना चाहती है। इसकी पक्की काट श्री कमलनाथ हैं,
जिन्हें इस राज्य का ‘सद्पुरुष’ कहा जाता है। विपक्षियों को भी हंसते और मुस्कराते अपनी जिद छोड़ने की, मनाने की कला में सिद्धहस्त कमलनाथ ने मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल के अन्तिम दिनों में जिस प्रकार संसदीय कार्यमन्त्री के कार्य को अंजाम दिया था उससे वर्तमान संसदीय कार्यमन्त्री अनन्त कुमार की कलई खुल जाती है। हंगामे पर हंगामे बरपाती विपक्ष की रणनीति को बातचीत के माध्यम से संसदीय प्रणाली में स्थान देकर तब श्री कमलनाथ ने संसद की गरिमा से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होने दिया था।
संसद जुड़ने से पहले ही विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत करके वह संसद के सुचारू रूप से चलने की व्यवस्था कर देते थे। मगर यह सोचना गलत होगा कि मध्य प्रदेश की राजनीति में वह कोई तूफान खड़ा नहीं करेंगे। शालीनता को अपना कवच बनाने वाले कमलनाथ में वह ताकत है कि वह तर्कों से विरोधियों की कर्कश भाषा के तीरों को कुन्द कर देते हैं।
मध्य प्रदेश एक जमाने में समाजवादियों की भी कार्यस्थली रहा है और होशंगाबाद लोकसभा चुनाव क्षेत्र से प्रख्यात प्रजा समाजवादी नेता स्व. एचवी कामथ गरीबों व मजदूरों की आवाज उठाते रहे हैं। नर्मदा को साफ-सुथरा रखने का उन्होंने ही मन्त्र सबसे पहले दिया था। इसके साथ ही स्व. प. द्वारका प्रसाद मिश्र स्वतन्त्र भारत के पहले एेसे राजनीतिज्ञ हुए जिन्हें चाणक्य के नाम से नवाजा गया था। कांग्रेस में 1969 में आये पहले संकट में स्व. इंदिरा गांधी का दिशा निर्देशन स्व. मिश्र ने ही किया था और समूचे विपक्ष को ढेर कर डाला था। अतः इस राज्य की राजनीतिक विरासत कोई छोटी-मोटी नहीं कही जा सकती।