”मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया,
मैंने आहुति बनकर देखा, यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है।
मैं कहता हूं, मैं बढ़ता हूं, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं,
कुचला जा भी धूली सा, आंधी सा और उमड़ा हूं।”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, एक व्यक्तित्व लेकिन हजार पहलू। उनकी राजनीति व्यक्तित्व और कृतित्व पर टिकी हुई है तभी अज्ञेय के शब्द याद आए। नरेन्द्र मोदी शून्य से शिखर तक पहुंचे राजनीतिज्ञ हैं। शिखर पर चढ़कर भी उनकी टीम में उनके जैसा कोई नजर नहीं आता। विपक्ष के पास भी उनके व्यक्तित्व के बराबर कोई राजनीतिज्ञ नजर नहीं आ रहा। जिस दौर में लोगों की राजनीतिज्ञों के प्रति कोई आस्था नहीं, उस समय प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कोई कमी न आना, उनका जादू कायम रहना, चुनाव में भी कुछ बाधाओं को छोड़कर भाजपा को जीत दिलवाना और अपने विदेश दौरों के दौरान लगातार कूटनीतिक सफलताएं हासिल करना हैरान कर देने वाला है। आखिर वह कौन से ऐसे कारण हैं कि वह जहां भी जाते हैं, लोग ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाने शुरू कर देते हैं। दरअसल उन्होंने जनता का भरोसा जीत लिया है। दिन-रात अथक परिश्रम करके उन्होंने देश-विदेश में भारत को गौरव दिलाया है। वह गौरव जिसकी राष्ट्र को कई वर्षों से दरकार थी। सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े फैसले लेकर उन्होंने दिखा दिया कि सरकार क्या कर सकती है।
आज तक भारत ने चीन को किसी भी मुद्दे या उसकी मनमानी पर मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया था। चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि सीमा विवाद को लेकर डोकलाम में उसे भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई, देश के युवाओं के लिए वह आशा की किरण हैं। इसका कारण यही है कि लोग ताकतवर और तुरन्त फैसले लेने वाले नेता पर भरोसा करते हैं इसलिए नरेन्द्र मोदी के साथ जनता है। यूपीए के 10 वर्ष के शासन से जनता ऊब चुकी थी और मनमोहन सिंह बार-बार अहसास दिला रहे थे कि देश को एक ताकतवर नेता की जरूरत है जो कड़े त्वरित फैसले ले सके। लोग मोदी जी के हर फैसले का सम्मान कर रहे हैं। जब राजनीति निर्णायक हो तो चुनावी राजनीति भी निर्णायक हो जाती है। भारत की यह खासियत है कि जब-जब संक्रमणकाल आया, जनता ने स्वयं अपना नेता चुन लिया। नरेन्द्र मोदी को जनता ने स्वयं चुना है इसलिए वे जन-जन के नेता बन चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री का नारा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का स्वप्न साकार होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसका विश्लेषण तो स्वयं कांग्रेस को ही करना होगा। स्वस्थ लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष की जरूरत होती है लेकिन आज वह स्वयं अपना घर नहीं सम्भाल पा रही।
70 वर्ष के लोकतांत्रिक इतिहास में विरोधी दलों ने कई बार अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विपक्षी एकता का कोई सर्वमान्य सूत्रधार दिखाई नहीं देता। राम मनोहर लोहिया और जे.पी. जैसा कोई नेता नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस का संवाद का पुल ढह चुका है। राहुल ने मनमोहन सिंह शासनकाल में आपराधिक मुकद्दमों में फंसे राजनीतिज्ञों को राहत पहुंचाने वाले विधेयक की प्रतियां प्रैस क्लब में फाड़ी थीं तो वह आज लालू के समर्थन में क्यों खड़े नजर आते हैं। भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जगह ले चुकी है क्योंकि देश अब नेहरू या इन्दिरा गांधी के खूंटे से बंधकर नहीं रहना चाहता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने बिहार में चुनावी हार को जीत में बदलने में केवल 20 माह का ही समय लिया। जेडी (यू)-भाजपा गठबंधन की सरकार सत्तारूढ़ हो चुकी है। देश की कुल आबादी के करीब 70 फीसदी पर भाजपा का शासन हो चुका है। उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, नागालैंड, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकारें हैं या कुछ राज्यों में वह गठबंधन में शामिल है। भगवा देश के सभी हिस्सों में लहरा रहा है। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और ओडिशा में बीजू जनता दल की सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। अब देश की सबसे पुरानी पार्टी के पास दक्षिण में कर्नाटक जैसा बड़ा राज्य बचा हुआ है जहां अगले वर्ष चुनाव होने हैं।
भाजपा ने दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी पैठ मजबूत की है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पैर पसारने के अपने मिशन पर आगे बढ़ते हुए भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में ही राज्यों की सत्ता हासिल की है। अब बिहार में नीतीश कुमार के साथ आने से भाजपा के मिशन को गति मिल गई है। 2019 के चुनाव में भाजपा की डगर आसान है। सवाल फिर सामने है कि तब विपक्ष का चेहरा कौन होगा-राहुल, अखिलेश, मायावती, ममता या लालू प्रसाद यादव। भ्रष्टाचार और सुशासन में भाजपा को कोई घेर नहीं सकता। इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम को जाता है। वास्तव में मोदी जी-तुसी ग्रेट हो।