शिव भैरव तंत्र की एक उक्ति का उल्लेख मैं कई बार करता रहा हूं और देश के नेतृत्व को याद दिलाता रहा हूं कि ”नाग को वही धारण करे, जो ताण्डव की क्षमता रखता है अन्यथा विषधर कब क्या कर बैठे, विधाता भी नहीं जानता।” अफसोस! देश का पूर्ववर्ती नेतृत्व सब कुछ जानते हुए भी विषधरों की भाषा नहीं समझ पाया। जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत के नागों के फन कुचल नहीं पाया। राजीव गांधी भले इन्सान थे, चमचों और स्वार्थी लोगों की जुण्डली से घिरे रहे। जम्मू-कश्मीर में प्रयोग ही करते रहे। वी.पी. सिंह मण्डल-कमण्डल की सियासत करके लोगों को बांट गए। नरसिम्हा राव अर्थतंत्र में उलझे रहे। देवेगौड़ा, चन्द्रशेखर की लुंज-पुंज सरकारों ने जैसे-तैसे समय निकाला। इन्द्र कुमार गुजराल अपनी डाक्ट्राईन लेकर इस संसार से अलविदा हुए।
अटल जी आये, वह संवेदनशील कवि हृदय कश्मीर, कश्मीरियत और इन्सानियत की बात करते रहे। आक्रामक हुए तो आर-पार की जंग की बातें करने लगे। कारगिल युद्ध जैसा पाकिस्तानी विश्वासघात झेला। 19 महीने सीमाओं पर फौजें खड़ी रहीं लेकिन गोली एक न चली। फिर मनमोहन जी आए। जम्मू-कश्मीर को मुक्त हाथ से धन दिया लेकिन हुर्रियत के नागों की आस्थायें नहीं बदलीं। गठबंधन सरकार घोटालों से घिरती गई। फिर आई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार। भाजपा का जम्मू-कश्मीर में चुनावों के बाद पीडीपी के साथ जाना वास्तव में एक साहसिक और ऐतिहासिक फैसला रहा। कश्मीर राष्ट्र के लिए सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, एक भावनात्मक विषय है। भाजपा के लिए दो विपरीत ध्रुवों भाजपा और पीडीपी का मिलकर सरकार बनाने का फैसला असाधारण था। यह निर्णय राज्य के विकास के लिए ही लिया गया।
भाजपा का निर्णय जोखिम भरा जरूर रहा। यह निर्णय नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेतली और अन्य नेताओं ने सोच-समझ कर लिया। कोई सामान्य राजनीतिज्ञ तो इतना जोखिम कभी लेता ही नहीं। दिल्ली सरकार कश्मीरियों का दर्द कम करना चाहती है लेकिन हुर्रियत के नागों ने इतना जहर फैलाया कि बुरहान वानी की मौत के बाद हालात बिगड़ते ही गए। घाटी में देशद्रोहियों के पाप का घड़ा भर चुका है। जब अति होती है तो घड़ा फूटता भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विषधरों की असली भाषा समझ गए। अरुण जेतली का सम्बन्ध जम्मू-कश्मीर से है। जम्मू उनका ससुराल है। वह भी कश्मीर की स्थितियों से परिचित हैं। अटल जी के शासन में उन्हें कश्मीर मसले की अतिगम्भीर जिम्मेदारी दी गई थी तब उन्होंने इस मसले पर गम्भीर मंथन किया था तब फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने ऑटोनॉमी का राग छेड़ रखा था।
वर्तमान नेतृत्व ने स्थिति की गम्भीरता को समझा और हुर्रियत के नागों के फन सिलने का काम शुरू कर दिया। फिलहाल फन सिले गए हैं। अभी उन्हें कुचलने का काम बाकी है। हुर्रियत के नाग गिलानी, यासीन मलिक, शब्बीर शाह और उनके दुमछल्लों ने कश्मीरियत के नाम पर इन्सानों का खून बहाया और खुद प्रोपर्टी डीलर बन गए। बच्चों के हाथों में बंदूकें और पत्थर पकड़वाए और पाकिस्तान और अन्य अरब देशों से हवाला से मिले धन से देश-विदेश में अकूत सम्पत्तियां खड़ी कर लीं। गिलानी और उनके परिवार की देशभर में 200 करोड़ की सम्पत्ति है। शब्बीर शाह सभी अलगाववादियों में सबसे ज्यादा अमीर निकले। उनकी प्रोपर्टी तो कहीं ज्यादा बताई जा रही है। मीरवाइज, उमर फारूक के पास भी अकूत सम्पत्ति है।
भूकम्प से पीडि़त कश्मीरियों के लिए फण्ड इकठा करने के नाम पर हाफिज सईद के साथ पाकिस्तान में एक मंच पर बैठने वाले यासीन मलिक के पास तो श्रीनगर के लाल चौक का आधा बाजार बताया जा रहा है। टेरर फंडिंग में 7 हुर्रियत नेता तो पहले ही एनआईए के शिकंजे में हैं। एनआईए, ईडी और सुरक्षा बल इनकी पोल खोलने में लगे हुए हैं। अब गिलानी, यासीन, शब्बीर के फन कुचलने की तैयारी कर ली गई है। नाग मरने के बाद भी फडफ़ड़ाते रहते हैं लेकिन ये नाग तो अभी से ही फडफ़ड़ाने लगे हैं। उन्हें पता लग चुका है कि अब उनका अन्त निकट है। आतंकवादी अबु दुजाना की मौत और आतंकी फंडिंग के आरोपी हुर्रियत नेताओं की गिरफ्तारी को कश्मीर की स्थायी शांति बहाली की दिशा में ठोस कदम माना जा रहा है।
वर्तमान समय में पाक प्रायोजित आतंकवाद का जोर दक्षिण कश्मीर के साढ़े तीन जिलों में है। अब देश की सेना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने आतंकवादियों की गोली का जवाब गोली से देने के निर्देश दिए हुए हैं। रक्षा मंत्री अरुण जेतली ने भी सेना को फ्रीहैंड दिया हुआ है तो सेना भी आतंकवादियों की हर प्रतिक्रिया का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। इस वर्ष अब तक 110 आतंकी मारे जा चुके हैं, घुसपैठ की कोशिश को लगातार नाकाम बनाया जा रहा है। आतंक के खिलाफ ऑपरेशन क्लीन-स्वीप जारी है। पाक से आये धन को पत्थरबाजों तक पहुंचाने वाले अलगाववादी नेता और ट्रेडर्स अब एनआईए के निशाने पर हैं।
उन्हें दिल्ली में गिरफ्तारी के बाद केस लडऩे के लिए कोई वकील भी नहीं मिल रहा। पत्थरबाजों का भी डोजियर तैयार है क्योंकि अब पैसा नहीं मिल रहा इसलिए पत्थरबाजी की घटनाएं भी पिछले वर्ष की तुलना में आधी रह गई हैं। कश्मीर में स्थायी शांति बहाली के लिए तीन स्तरों पर काम शुरू किया गया है। खास बात यह है कि एजेंसियों को तीनों मोर्चों पर सफलता मिल रही है। उम्मीद है कि अब आतंक रूपी दीमक खत्म होगी क्योंकि प्रधानमंत्री और उनकी टीम ने स्वयं नाग धारण कर लिया है इसलिए ताण्डव तो होगा ही। हुर्रियत नागों के फन एक-एक करके कुचले जा रहे हैं।