दक्षिण की नई ‘द्रविड़’ राजनीति - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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दक्षिण की नई ‘द्रविड़’ राजनीति

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दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता कमल हासन ने अपनी नई राजनैतिक पार्टी गठित करके साफ कर दिया है कि तमिलनाडु में वह नई द्रविड़ राजनीति की शुरुआत करना चाहते हैं। 1967 में इस राज्य में कांग्रेस पार्टी के पराभव के बाद जिस प्रकार द्रविड़ उप-राष्ट्रीयता को केन्द्र में रख कर पहले द्रमुक और बाद में 1972 मेंं अन्ना द्रमुक का दबदबा बढ़ा। उसे चुनौती देने की हिम्मत न तो कांग्रेस पार्टी में हुई और न ही किसी अन्य राष्ट्रीय राजनैतिक दल में। हालांकि 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ही नेता स्व. जी.के. मूपनार ने इन शक्तियों को चुनौती दी थी और अपनी पृथक ‘तमिल मनीला कांग्रेस’ बनाकर क्षेत्रीय द्रविड़ राजनीति के समानान्तर राष्ट्रीय द्रविड़ राजनीति के विचार को पुनर्जीवित किया था। उनके साथ तब पूर्व वित्तमन्त्री श्री पी. चिदम्बरम भी थे।

श्री मूपनार तमिलनाडु से जिस ऊंचे कद के नेता थे उसका प्रमाण उनका वह एेतिहासिक कथन था जो उन्होंने 1996 में केन्द्र में श्री देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार से पहले दिया था। श्री मूपनार की पार्टी इस मोर्चा सरकार में शामिल हुई थी और उस समय श्री मूपनार को उप प्रधानमन्त्री पद की पेशकश की गई थी। उसे उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया था कि क्या मैं उप प्रधानमन्त्री पद के लायक हूं, एम आई ए डिप्टी प्राइम मिनिस्ट्रियल मैटीरियल। तब उन्होंने अपनी पार्टी के कोटे से श्री चिदम्बरम को उस सरकार में वित्तमन्त्री बनवाया था। श्री मूपनार ने तब घुमाकर यही कहा था कि देश के प्रधानमन्त्री पद पर दक्षिण भारत का भी दावा बनता है। दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु हो जाने के बाद तमिलनाडु में उऩके कद का कोई दूसरा एेसा राष्ट्रीय नेता नहीं हुआ जो लोकप्रियता में उनका मुकाबला कर सके। कांग्रेस पार्टी में स्व. कामराज के बाद श्री मूपनार सबसे शक्तिशाली राजनीतिज्ञ हुए और उन्होंने तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति को उसके सीमित क्षेत्रीय दायरे से निकालने का सफल प्रयास भी किया। मगर यह भी हकीकत है कि तमिलनाडु की राजनीति उत्तर भारतीय राज्यों की राजनीति से सौ कदम आगे तो डेढ़ सौ कदम पीछे रही है। इस राज्य में राजनीति को फिल्मी अभिनेताओं व सिने कर्मियों ने कहीं भीतर तक प्रभावित और आन्दोलित भी किया।

राज्य के वर्तमान में सबसे वरिष्ठ नेता माने जाने वाले श्री एम. करुणानिधि  तमिल फिल्मों के पटकथा लेखक रहे जबकि उनके प्रतिद्वन्द्वी स्व. एम.जी. रामचन्द्रन लोकप्रिय फिल्म अभिनेता थे। उनके बाद स्व. जयललिता भी सफल फिल्मी अभिनेत्री रहीं। पिछले पचास सालों से तमिलनाडु की राजनीति इन तीनों शख्सियतों के इर्द-गिर्द घूमी। चाहे द्रमुक हो या अन्नाद्रमुक दोनों की ही राजनीति द्रविड़ उप राष्ट्रीयता के सख्त व नरम रुख को लेकर लोगों के बीच जाती रही मगर द्रमुक की विशेषता यह रही कि इसने राज्य में किसी भी दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए किसी प्रकार का स्थान सामाजिक न्याय को सर्वोपरि रख कर नहीं छोड़ा। यहां तक कि राज्य के धुरंधर राजनीतिज्ञों की श्रेणी में शुमार होने वाले स्व. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतन्त्र पार्टी को भी कोई खास जगह नहीं मिल सकी लेकिन तमिलनाडु के लोग फिल्मी चकाचौंध के आगे राजनीतिक विमर्श को भी पिछले पायदान पर रखने से नहीं चूके। इसीलिए यहां की राजनीति 100 कदम आगे चली तो डेढ़ सौ कदम पीछे रह गई। इस विरोधाभास को यदि फिल्मी अभिनेता कमल हासन पकड़ कर अपनी नई पार्टी बना रहे हैं तो उनका लक्ष्य राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करने का पक्के तौर पर होगा क्योंकि विचारों से वह धुर मध्य वाममार्गी हैं और इसी के चारों तरफ अपनी राजनीति का पहिया घुमाना चाहते हैं।

कमल हासन साफ कर चुके हैं कि उनकी राजनीति अन्य द्रविड़ पार्टियों की तर्ज की नहीं हो सकती जिसका आधार वाक्य राज्य में हम और केन्द्र में तुम होता था। उनकी राजनीति राष्ट्र की समस्याओं और उनके हल में बराबर की भागीदारी पर टिकी होगी। कमल हासन के लिए व्यक्तिगत तौर पर यह सोने में सुहागे की तरह है कि उनकी हिन्दी पर भी अच्छी पकड़ है जबकि उन्हीं के समकक्ष दूसरे लोकप्रिय अभिनेता रजनीकान्त के साथ एेसा नहीं है। हिन्दी फिल्मों में भी कमल हासन ने अभिनय करके अच्छा नाम कमाया है और उत्तर भारत के लोग भी उनकी कला के प्रसशंसक हैं। यह माना जा सकता है कि कमल हासन दक्षिण की ‘अकेलपन’ में पड़ी राजनीति का शेष देश की राजनीति के साथ समन्वय करने की राह पर आगे बढ़ने का प्रयास कर सकते हैं परन्तु एेसा केवल तभी संभव है जब वह द्रविड़ उप राष्ट्रीयता की राजनीति को नये कलेवर देकर उसका समागम राष्ट्रीय राजनीति में अपने सिद्धान्तों और आदर्शों पर डटे रह कर करें। क्योंकि सुश्री जयललिता की मृत्यु के बाद अन्ना द्रमुक पार्टी पूरी तरह लावारिस हो चुकी है। जहां तक द्रमुक की राजनीति का सवाल है यह अपने ही बोझ से अब चरमराने की स्थिति में पहुंच चुकी है। जिस तरह यह पार्टी एक परिवार ‘करुणानि​िध’ की सम्पत्ति बन कर तमिलनाडु में लोकतन्त्र को लकवाग्रस्त करना चाहती है उससे इस राज्य की जनता का आजिज आना गैर वाजिब नहीं कहा जा सकता। इस खाली स्थान को भरने की कवायद यदि कमल हासन इस हकीकत के बावजूद करते हैं कि उनसे भी ज्यादा लोकप्रिय सिने अभिनेता रजनीकान्त भा अपनी नई पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं तो उनकी राजनीतिक सूझबूझ को नजरंन्दाज करना उचित नहीं होगा लेकिन यह भी सत्य है कि राजनीति कोई तीन घंटे की फिल्म नहीं होती कि लोगों को सब्जबाग दिखा कर लोकप्रियता बटोर ली जाए। देखना यह होता है कि असल जिन्दगी में नंगे पांव चलने पर फफोले पड़ जाते हैं जिन्हें कोई फिल्मी चमत्कार ठीक नहीं कर सकता।

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