सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन, यमन, लीबिया और संयुक्त अरब अमीरात के कतर के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ देने से नया खाड़ी संकट पैदा हो गया है। राजनयिक संबंध तोडऩे वाले देशों का आरोप है कि कतर चरमपंथ फैलाने वाले इस्लामिक संगठनों की मदद कर रहा है। हालांकि ऐसे आरोपों से कतर इंकार करता रहा है। इस संकट से भारत की चिंताएं भी काफी बढ़ गई हैं। कतर में लगभग 6-7 लाख भारतीय रहते हैं। इसके अलावा भी खाड़ी देशों में 48 लाख भारतीय रहते हैं। कतर 2022 में विश्व कप फुटबाल का मेजबान है और इस समय वहां जबर्दस्त तैयारियां चल रही हैं। मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बाद कतर में हिन्दू तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। नौकरी और भविष्य का सपना लेकर वहां गए भारतीयों की दिक्कतों की खबरें सामने आती रही हैं। वहां प्रवासी कामगारों के लेबर कैम्पों में बदतर हालात भी कई बार सामने आ चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कतर में सबसे बड़ी अमेरिकी सेना की छावनी भी है। अपने तेल और प्राकृतिक गैस के कुओं और अच्छे निवेश के चलते कतर दुनिया में प्रति व्यक्ति जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में सबसे बेहतरीन है। 25 लाख की कुल आबादी वाला देश बहुत धनी है। धनी देश होने की बदौलत उसने खाड़ी देशों में अपनी जगह बनाई है। अफगानिस्तान में शांति स्थापना के प्रयासों में दखल दिया है।
यह बात तो सब जानते हैं कि सऊदी अरब और अन्य कई खाड़ी देश आतंकवादी संगठनों को धन से सींचते रहे हैं। दुनिया भर के आतंकी संगठनों को इनके यहां से फंडिंग होती है। अगर कतर से फंडिंग होती है तो फिर इन देशों को समस्या क्या है? समस्या है मिस्र और कुछ अन्य देशों में सक्रिय मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन। मुस्लिम ब्रदरहुड से कतर का संबंध जगजाहिर है। मुस्लिम ब्रदरहुड खाड़ी देशों में राजशाही और खानदानी शासन का कड़ा विरोध करता है। मुस्लिम ब्रदरहुड का अगर विस्तार होता है तो यह राजशाही के लिए खतरा पैदा कर सकता है जैसे कि कुछ अरब देशों में जनता ने राजशाही को उखाड़ फैंका था। सऊदी अरब की राजशाही तो इससे काफी आतंकित है। आतंकवाद का पोषक देश ही आतंकी संगठन से आतंकित है। सुन्नियों का आपसी टकराव अब पहली बार साफ-साफ दिखाई देने लगा है। मध्य पूर्व एशिया में अरब क्रांति के दौरान कतर पर मिस्र के पूर्व इस्लामिक राष्ट्रपति का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है। कतर पर मुस्लिम ब्रदरहुड, आईएस और अलकायदा को अपना कर क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने का आरोप भी लगता रहा है। कतर लीबिया के त्रिपोली शहर में स्थित एक प्रतिद्वंद्वी सरकार का समर्थन भी करता है। कतर के शेख ने विवादित बयान देकर सऊदी अरब के धुर विरोधी ईरान की तारीफ की थी। इससे भी सऊदी अरब चिढ़ा बैठा था।
अब सबसे अहम सवाल यह है कि इस संकट के दौरान भारत की क्या भूमिका होनी चाहिए। भारत और कतर के रिश्ते काफी मधुर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष जून में कतर की यात्रा की थी। उन्हें कतर के अमीर एच.एच. शेख तमीक बिन हमाद अल थानी ने आमंत्रित किया था। भारत-कतर के बीच आपसी कारोबार अरबों डालर का है। भारतीय कम्पनियां वहां महत्वपूर्ण सड़क, रेल और मैट्रो परियोजनाओं पर काम कर रही हैं। भारत के सऊदी अरब से भी काफी बेहतर रिश्ते रहे हैं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, आबूधाबी कच्चे तेल के सबसे बड़े निर्यातक हैं। कतर तरल प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक है। कतर में भारतीयों का जीवन प्रभावित न हो इसलिए भारत को संतुलित रवैया अपनाना ही होगा। जिन देशों द्वारा राजनयिक संबंध तोड़ लिए जाने के बाद कतर ने भी झुकने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। इससे संकट के गहराने के आसार हैं। पड़ोसी खाड़ी देशों का एयरस्पेस प्रतिबंधित होने से कतर एयरवेज के लिए यूरोप और अन्य देशों की उड़ानें मुश्किल में पड़ सकती हैं। सऊदी अरब की सीमा बंद होने से खाद्यान्न संकट गहरा सकता है। कतर में मिस्र के निवासी भी रह रहे हैं जो महत्वपूर्ण क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। उनके जाने से कतर को पेशेवरों से हाथ धोना पड़ सकता है। वहां रह रहे भारतीयों पर भी पाबंदियों का असर पड़ेगा। अब आसानी से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात नहीं जा सकेंगे। मौजूदा टकराव में भारत को पहले अपने हितों की रक्षा करनी है। यह टकराव कितना लम्बा चलता है यह देखना होगा क्योंकि धनी कतर को भी झुकाना आसान नहीं होगा।