यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम!!
सुना है जब-जब धरती पर पाप बढ़ा तुमने किसी न किसी रूप में जन्म लेकर उसे रोका। आज हम जहां बेटियों को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। पढ़ाने की, कुछ बनाने की सोच रहे हैं और यह भी अनुभव कर रहे हैं कि बेटियां हर क्षेत्र में आगे हैं। मोदी जी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अलख जगाने के बाद बेटियों के लिए हर क्षेत्र में सरकारी लेबल पर काम हो रहे हैं। कई एनजीओ काम कर रहे हैं। कई लोगों की सोच भी बदली है, परन्तु फिर भी हम रोज अखबारों, टीवी चैनलों पर नजर डालें या आसपास नजर डालें तो आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि चौंका देती हैं, दिल दहला देती हैं और मुंह से अपने आप निकल आता है- हे भगवान कहां हो, हे कृष्णा कहां हो।
1. चाहे वो चलती ट्रेन में महिला से बलात्कार हो
2. स्कूल जाने वाली दसवीं की छात्रा का रेप हो
3. रोहतक में तीन दिनों में चार रेप
4. मेरठ में कार रोककर बस स्टैंड से उठाकर महिला से रेप
6. पीरागढ़ी में महिला से रेप
7. नोएडा में कॉलेज छात्रा से रेप और सब हदें तब पार हुईं जब बीमार रिश्तेदारों से मिलने अस्पताल जा रहे एक परिवार की महिलाओं से दरिन्दगी की गई।
सोचकर दिल कांप जाता कि क्या बीता होगा उन महिलाओं पर जब उनके साथ हैवानियत की गई और उनके घर के सदस्य को भी मार दिया। हे कृष्णा उस समय तुम कहां थे। पिछले दिनों एक मासूम बच्ची के साथ रेप हुआ, उस समय कृष्णा तुम कहां थे। हे कृष्णा, एक द्रोपद्री की रक्षा करने के लिए आपने दुनिया के आगे एक मिसाल रखी थी, क्या आज तुम नहीं आओगे जब लाखों बेटियां, बहुएं, मासूम बच्चियां तुम्हें पुकार रही हैं। सरकार की बेटियों, बच्चियों, महिलाओं, बहनों के सामाजिक उत्थान के लिए जो योजनाएं हैं उन पर गुनहगारों की करतूतें हावी हैं, जो गुनहगारों को बचाते हैं वह भी दोषी हैं। आखिर में यही कहूंगी कि अपराधियों से निपटने में ऐसी एजैंसियां स्थापित की जाएं जो तेजी से अपना काम करें और जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें डाक्टरों और साइकोलोजिस्ट से दिखाकर उन पर रिसर्च भी करना चाहिए कि वह ऐेसा क्यों करते हैं और उन्हें ऐसी सजा भी देनी चाहिए ताकि कोई ऐसा करने की सोचे भी तो उसकी रूह कांपे। दु:ख इस बात का है कि इस पर राजनीति, चैनलों पर चर्चा, सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं, परन्तु रिजल्ट कुछ नहीं। अगर यह सब नहीं हो सकता तो कृष्णा तुम्हें आना ही होगा। कहां छुपे हो, क्यों अन्याय होते देख रहे हो।
”बड़ी देर भई नंदलाला, तेरी राह तके बृजबाला।”