इन्सानियत की भूमि पर हैवानियत के बादल मंडरा रहे,
धर्म का चोला पहन इन्सानियत का अपमान कर रहे,
धर्म का धंधा करने वाले आस्था और भक्ति बदनाम कर रहे,
संन्यास की बात करने वाले कैसे बेशर्मी की हदें पार कर रहे।
‘‘श्रद्धा अटल होनी चाहिए। श्रद्धा का सृजन सत्संग से होता है। सत्संग से विवेक मिलता है और विवेक से सही-गलत का ज्ञान होता है।’’ ऐसे सम्बोधन जीवन में बहुत बार सुनने को मिलते हैं लेकिन धर्म के नाम पर आडम्बर हो रहा है। हर धर्म में गुरुओं को बहुत महत्व दिया जाता है क्योंकि यह धारणा है कि अध्यात्म का ज्ञान गुरुओं से ही ग्रहण किया जा सकता है। धर्म का आधार अध्यात्म है। अध्यात्म यानी वह आत्मा जो हमारे भीतर विचरण कर रही है, का ज्ञान। अध्यात्म का अर्थ स्वयं भीतर का अध्ययन है। हमारे देश में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने गुरु धारण किए, उनसे शिक्षा पाई। एक बार गुरु का दर छोड़ा तो फिर समाज और देश की सेवा की लेकिन अब तो धर्म आैर अध्यात्म के नाम पर अय्याशी के अड्डे खुले हुए हैं।
गुरुओं और बाबाओं की करतूतें देखने के बाद विश्वास की नाजुक डोर से बंधे हाथ खुल गए हैं। आंखों में आस्था की जगह नफरत गहरी हो रही है। बन्द तालों में जकड़ी लड़कियां बाहर आ गई हैं, बन्द कमरों की घिनौनी कहानियां अब राज उगलने लगी हैं। दिल्ली की घनी आबादी के बीच चल रहे आध्यात्मिक विश्वविद्यालय का सच सामने आ चुका है। मोक्ष के नाम पर लड़कियों को रानी बनाने का झांसा दिया जाता था। संन्यासी के चोले में अय्याशी की जा रही थी। दिल्ली वाला बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित अब फरार है। कोई उसे नया राम रहीम बता रहा है तो कोई उसे हैवान। आज धर्म के नाम पर जो घिनौने काम किए जाते हैं, क्यों उन्हें देखकर दिल सहम नहीं जाता। एक के बाद एक बाबाओं की करतूतें सामने आने के बाद भी क्या कोई मां-बाप अपने बच्चों को बाबाओं से आशीर्वाद लेने के लिए सोचेगा? लेकिन फिर भी ऐसा हो रहा है। हैरानी होती है कि आश्रम में पिछले कई वर्षों से खासकर नाबालिग लड़कियों को दीक्षा देने के नाम पर लाया जाता रहा और बाद में बच्चियों को बहला-फुसलाकर उनका यौन शोषण किया जाता था।
ताज्जुब की बात यह है कि लड़कियों के माता-पिता 10 रुपए के स्टाम्प पेपर पर रजामंदी का हलफनामा भी दाखिल करते थे और लड़कियों के परिवार वाले हर महीने आश्रम में पैसा भी भेजा करते थे। हलफनामा इसलिए लिया जाता था ताकि कल को अगर कुछ गलत बात सामने भी आ जाए तो आश्रम बेदाग साबित हो जाए। क्या माता-पिता अंधे थे जो खुली आंखों से भी सच को जान नहीं पाए कि ऐसे आश्रमों में क्या-क्या होता है। खास बात यह है कि जब आश्रम में रह रही लड़कियां 18 वर्ष की हो जाती थीं तो पाखंडी बाबा दोबारा एक कागज पर उसके स्वेच्छा से रहने के सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर करवाता था। यह कैसा आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चल रहा था जिसमें एक भी धार्मिक ग्रंथ पर पुस्तक नहीं मिली। पुलिस की नाक के नीचे यह सब कितने वर्षों से चल रहा था, क्या पुलिस वालों को जानकारी नहीं थी कि आश्रम में क्या चल रहा है? पुलिस तो बिना पैसा लिए झुग्गियों में शराब नहीं बिकने देती, कालोनियों में रेहड़ी नहीं लगने देती। फिर अय्याशी का अड्डा कैसे चलता रहा? मामला तब खुला जब राजस्थान की रहने वाली नाबालिग लड़की के माता-पिता ने पाखंडी बाबा पर अपनी बेटी से बलात्कार करने का आरोप लगाकर लोगों को सकते में डाल दिया। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा तो उसके निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने आश्रम में घुसकर जांच की तो सारी पोल खुल गई। राम रहीम और आसाराम के बाद अब दिल्ली वाले बाबा की करतूत की जांच की जिम्मेदारी भी सीबीआई के पास आ गई है।
जब आसाराम के विरुद्ध पहला मामला दर्ज हुआ था तो उस समय आसाराम, उनके समर्थक और कुछ राजनीतिक दलों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक साजिश करार दिया था। कुछ हिन्दुत्ववादियों ने भी इस मुद्दे पर राजनीति करनी चाही थी। वे यह कहते सुनाई देने लगे थे कि हिन्दू धर्म और संत समाज को सोची-समझी साजिश के तहत बदनाम करने लिए आसाराम को फंसाया जा रहा है। जब राम रहीम के विरुद्ध मुकद्दमा चलाया जाना शुरू हुआ था तब भी ऐसे ही स्वर सुनाई देने लगे थे। राम रहीम का डेरा तो राजनीतिज्ञों के आकर्षण का केन्द्र बन चुका था। डेरा समर्थकों के वोट हासिल करने के लिए जमकर सियासत होती रही है। आसाराम और राम रहीम के समर्थकों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि रंगीले आैर सफेदपोश दिखाई देने वाले उनके गुरु, गुरु नहीं बल्कि उनके परिवार की बेटियों की इज्जत पर हमला बोलने वाला राक्षस रूपी मानव है।
भक्तों के साथ इतना बड़ा विश्वासघात। पाखंडी खुद को देवता और भगवान तुल्य समझने लगे हैं और मासूम लड़कियां उनकी बंधक बनकर रह जाती हैं। इन पाखंडी बाबाओं की करतूतों का पर्दाफाश होने पर भी लोगों ने अपनी आंखें नहीं खोलीं तो भविष्य में भी ऐसे पापी और धूर्त बाबाओं को अपना जाल बुनने के मौके मिलते रहेंगे। धर्म के नाम पर मानवता का पतन हो चुका है। अगर सारा संसार देवताओं से भरा होता तो फिर धर्म की आवश्यकता ही क्या थी? ऐसे में धर्म के पापियों के आगे नतमस्तक होने की बजाय अपने चरित्र आैर विचार निर्माण की तरफ ध्यान देना चाहिए। धर्म की आड़ में होने वाले धंधों को रोकने के लिए लोगों को जागरूक होकर धर्म और अध्यात्म के अन्तर को समझना चाहिए।