शिक्षा को जब हम अतीत से जोड़ते हैं तो संस्कार की ध्वनि सुनाई देती है लेकिन जब शिक्षा को वर्तमान में देखते हैं तो विकार और व्यापार ही दिखाई देता है। शिक्षा पूरी तरह बाजारवाद के शिकंजे में है। शिक्षा को संस्कार से उखाड़ कर बाजारू व्यापार बनाने का काम प्राइवेट सैक्टर ने तो किया ही, साथ ही इसमें शिक्षकों की भी बड़ी भूमिका रही। शिक्षा का रुझान पूरी तरह बदल गया है। पूंजीपतियों को एयरकंडीशंड मॉलनुमा भव्य स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भारी-भरकम फीस चुकाने में कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि उनके बच्चों को तो चमचमाती गाडिय़ां छोडऩे और ले जाने आती हैं। सवाल मध्यम वर्ग का है, या तो वे ऐसे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का स्वप्न देखते हैं या फिर हद से ज्यादा बचत करके ऐसे स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में तो बच्चों को पढ़ाना बच्चों का खेल नहीं। मध्यम वर्ग के माता-पिता को तो अपने बच्चों की स्कूल फीस को लेकर हर समय चिन्ता लगी रहती है।
दूसरी तरफ स्कूल हैं कि हर बढ़ती क्लास के साथ फीस में 20 से 30 फीसदी की बढ़ौतरी कर दी जाती है। इतना ही नहीं, सालभर किसी न किसी नाम पर स्कूल माता-पिता की जेब काटते ही रहते हैं। शिक्षा के केन्द्र भव्य शोरूम का रूप ले चुके हैं। स्कूलों की ज्यादा फीस अभिभावकों के लिए मुसीबत बन रही है। दिल्ली के प्ले स्कूलों की फीस देखकर तो हैरानी होने लगती है कि जब प्ले स्कूल की इतनी अधिक फीस है तो फिर नर्सरी से लेकर प्राइमरी तक की फीस कितनी होगी। कभी डोनेशन के नाम पर तो कभी बैग, जूते, कपड़ों के मनमाने दाम लगाए जाते हैं। अधिकतर स्कूलों ने किताबों की दुकानें खोल रखी हैं या फिर बाजार की कोई दुकान तय कर रखी है, उसमें से भी कमीशन खाई जाती है। इसी वर्ष 23 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली के स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के मां-बाप को बड़ी राहत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना प्राइवेट स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकते।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि फीस बढ़ौतरी को लेकर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने अनिल देव ङ्क्षसह कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने कहा था कि विशेष स्थितियों में प्राइवेट स्कूल अधिकतम 10 फीसदी तक फीस बढ़ा सकते हैं लेकिन ज्यादातर स्कूल सामान्य स्थितियों में भी 10 फीसदी तक फीस वृद्धि करते आ रहे हैं। दिल्ली में 400 से अधिक स्कूल डीडीए की जमीन पर चल रहे हैं। अदालत के आदेशों के बावजूद स्कूलों ने फीस में बढ़ौतरी कर दी। दिल्ली सरकार को स्कूलों के सम्बन्ध में बहुत सारी शिकायतें मिली थीं। दिल्ली सरकार ने पिछले वर्ष भी एक प्राइवेट स्कूल के खिलाफ अभिभावकों की शिकायत पर उसे टेकओवर किया था हालांकि बाद में अदालती लड़ाई भी चली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने 449 निजी स्कूलों से दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए बढ़ी हुई फीस अभिभावकों को वापस करने की अपील की है।
साथ ही चेतावनी भी दी है कि अगर स्कूल ऐसा नहीं करते तो सरकार अन्तिम विकल्प के तौर पर स्कूलों का प्रबन्धन और संचालन अपने हाथों में ले सकती है। निजी स्कूलों ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के नाम पर फीस बढ़ाई थी, जिसे अदालत ने जस्टिस अनिल देव समिति की जांच के आधार पर गलत पाते हुए सरकार से इस दिशा में की गई कार्रवाई का जवाब मांगा था। दिल्ली सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम कर रही है। एक तरफ वह सरकारी स्कूलों को बेहतर बना रही है, दूसरी ओर निजी स्कूलों को अनुशासित करने में जुटी है। अगर कोई निजी स्कूल अभिभावकों को लूटता है तो सरकार चुप नहीं बैठ सकती। राज्य सरकार को ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकना नहीं चाहिए। गुणवत्ता की जो मृग-मरीचिका निजी विद्यालयों की छांव में खोजी जा रही है उससे भी कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं। निजी विद्यालयों ने सरकारी स्कूलों की तुलना में एक ऐसा आभामंडल तैयार कर लिया है जिसमें लोगों को गुण ही गुण दिखाई देते हैं लेकिन इसी आभामंडल की आड़ में मनमानी लूट भी है। दिल्ली सरकार को सरकारी स्कूलों का आभामंडल सृजित करने के सशक्त प्रयास करने होंगे हालांकि सरकारी स्कूलों के परिणाम भी पहले से अच्छे रहे हैं लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।