क्रिकेट के ग्लैमर के सामने जिस हाकी को हमने लगभग भुला सा दिया, रविवार को उसने ही खेल प्रेमियों को खुश होने की वजह दी। भारतीय हाकी ने वह किया जिसकी उम्मीद क्रिकेट से की जा रही थी। सबकी निगाहें क्रिकेट पर रहीं, लेकिन कामयाबी हाकी में मिली। भारत ने पाकिस्तान को 7-1 से रौंद कर जीत की हैट्रिक पूरी कर ली। इसी दिन किदाम्बी श्रीकांत ने भी जकार्ता में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए जापान के काजूमासा को हराकर पहली बार इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरिज बैडमिंटन टूर्नामैंट का खिताब जीता। क्रिकेट फाइनल के होहल्ले के बीच हाकी टीम के खिलाडिय़ों और श्रीकांत ने अपना कद ऊंचा कर लिया। साथ ही अपनी जीत से दिखाया कि केवल क्रिकेट ही खेलों का पर्याय नहीं है। मैं भी क्रिकेटर रहा हूं, पाकिस्तान के हाथों हारने का गम मुझे भी है। मुझे अपना दौर याद आ रहा है। मैं रणजी ट्राफी, ईरानी ट्राफी में खेला और अन्तर्राष्ट्रीय मैच भी खेले। गेंदबाज के तौर पर मेरी सफलता सुनील गावस्कर को आऊट करना रहा और मैं राइट आर्म लैग स्पिनर के तौर पर चर्चित रहा। हमारे दौर में क्रिकेट में पैसा नहीं था, हमें मैच खेलने के लिए तीसरी श्रेणी का ट्रेन टिकट दिया जाता था, हमें महंगे होटलों में नहीं ठहराया जाता था, कभी-कभी किसी रैस्ट हाऊस या स्टेडियम के निकट बनी धर्मशाला या स्कूल में ठहरा दिया जाता था।
कभी-कभी तो भोजन की व्यवस्था भी खुद ही करनी पड़ती थी। तब क्रिकेट को जेंटलमैन खेल माना जाता था। क्योंकि क्रिकेट की शुरूआत दक्षिणी इंग्लैंड में हुई, जब भी कभी इंग्लैंड में भ्रष्टाचार की बात सामने आती तो अंग्रेज यही कहते थे-ञ्जद्धद्बह्य द्बह्य हृशह्ल ष्टह्म्द्बष्द्मद्गह्ल यानी क्रिकेट को एक ईमानदार खेल माना जाता रहा है। ज्यों-ज्यों क्रिकेट लोकप्रिय होता गया और इसके प्रबंधन में राजनीतिज्ञों की घुसपैठ होती गई, धन की वर्षा होने लगी और घोटाले बढ़ते गए। राजनीतिज्ञ और उद्योगपतियों ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर आधिपत्य जमा कर करोड़ों का हेरफेर किया और सामाजिक प्रतिष्ठा भी अर्जित की। राज्यों के खेल संघों पर भी राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों ने कब्जा जमा लिया और खिलाड़ी उनके हाथों की कठपुतली बनते गए। क्रिकेट में सट्टे का खेल बहुत पुराना है। जैसे ही क्रिकेट के नए फारमेट यानी आईपीएल-ट्वेंटी-ट्वेंटी सामने आए, सट्टे के खेल का विस्तार होता गया। स्पाट फिक्सिंग होने लगी। एक-एक बाल पर दाव लगने लगे। मैं उन दो ऐसे पदाधिकारियों को जानता हूं जिन्होंने कीवियों से सट्टे का पैसा लिया और उस धन से पिकासो की पेंटिंग्स खरीद कर विदेशों में रखी। पिकासो की पेंटिंग तो ब्लैंक चैक के समान है, जब भी चाहो बेच डालो, करोड़ों मिल जाएंगे।
अजहरुद्दीन, श्रीनिवासन के दामाद और कई जूनियर खिलाडिय़ों के सट्टबाजों से संबंध उजागर हो गए थे लेकिन अनेक छुपे रुस्तम निकले।
उन्हें ‘भद्रपुरुष’ ही माना गया। अब तो क्रिकेट के क्लब संस्करण सामने आ चुके हैं। आईपीएल की टीमों में भी उद्योगपतियों ने कालाधन लगाकर क्रिकेट को तमाशा बना डाला। जिस खेल में अरबों का धन लिप्त हो उसकी तरफ उद्योगपति और राजनीतिज्ञ तो आकर्षित होंगे ही। कुल मिलाकर स्कूल के बच्चों से लेकर कालेज के छात्र-छात्राओं को सट्टेबाज बना डाला। मीडिया क्रिकेट मैचों को लेकर इतनी हाइप तैयार करने लगी कि महत्वपूर्ण मैचों के दौरान शहरों में सन्नाटा छाने लगा। भारत और पाकिस्तान का मैच हो तो मीडिया हमेशा से इन मैचों की ऐसी हाइप तैयार करता है कि जैसे यह कोई खेल नहीं बल्कि दो देशों के बीच युद्ध हो। इसी होहल्ले में अन्य खेल आंखों से ओझल होते गए। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का मसला अदालतों के चक्कर में पिछले कुछ वर्षों से फंसा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कई नामी-गिरामी पदाधिकारियों को पद छोडऩे पड़े हैं। क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पदाधिकारियों ने सभी सीमाएं लांघ दी थीं। मेरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध है कि क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को सीधे खेल मंत्रालय के तहत लाएं और इसका पुनर्गठन करें। इसका प्रबंधन उन पूर्व खिलाडिय़ों को सौंपें जिन्होंने देश के लिए कुछ किया है और जिन्हें क्रिकेट के प्रबंधन का अनुभव भी हो। जितना धन क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड कमाए उस धन को अन्य खेलों बैडमिंटन, हाकी, फुटबाल, जिम्नास्टिक, कुश्ती, मुक्केबाजी और निशानेबाजी पर खर्च किया जाए। आज देश में क्रिकेट के अलावा भी कई खेलों में प्रतिभाएं चमक रही हैं। उत्तर भारत से लेकर पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण से पश्चिम भारत तक कई युवा अपने बलबूते पर खेलों में चमके हैं, जरूरत है उन्हें प्रोत्साहन देने की। अगर ऐसा किया जाता है तो निश्चय ही राष्ट्रमंडल, एशियाड और ओलिम्पिक खेलों में भारत की पदक तालिका बढ़ेगी। क्रिकेट बोर्ड को ईमानदारी, पारदर्शिता से चलाना है और अन्य ïखेलों को बढ़ाना है तो कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।