पिछले दिनों महान संत जो अपने सत्य कड़वे वचनों से मशहूर हैं, जिनके कड़वे बोलों को सारी दुनिया मानती है और मैं भी उनके बोलों को बहुत मानती हूं जो जिन्दगी की सच्चाई के बहुत नजदीक हैं, इस बार तो उन्होंने अपने 50वें जन्मदिवस पर न केवल कड़वे बोल बोले, कड़वी सच्चाई से भरा एक्शन भी कर डाला जिसने सारे समाज को चौंका दिया। जिस तरह से उन्होंने अपने 50वें जन्मदिवस पर जिन्दगी की सच्चाई को जिस तरह समझाया वह चौंकाने वाली बात थी, जो बहुत ही विचित्र था। उन्होंने अपना जन्मदिन राजस्थान के झुंझुनूं के उदयपुरवाटी कस्बे में एक श्मशान घाट के अन्दर जाकर मनाया, केक और फल नहीं थे। उन्होंने वहां से सन्देश दिया कि श्मशान घाट में रोते हुए नहीं, हंसते हुए जाना चाहिए।
हर रोज जिन्दगी का एक दिन कम हो रहा है और यह उस दिन से कम हो रहा है जिस दिन से हमारा जन्म हुआ था। लोग खुशियों में जीते हैं लेकिन मौत को याद रखना चाहिए कि उसे एक दिन आना है और सब कुछ वहीं का वहीं रह जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि श्मशान घाट नगर से दूर नहीं, नगर के अन्दर होना चाहिए ताकि लोग यह बात याद रखें कि उन्हें भी एक दिन इस दुनिया से जाना है। वाकयी हम सब यह सच्चाई जानते हैं परन्तु फिर भी इससे दूर भागते हैं या भूल जाते हैं। हम जब भी किसी के दाह-संस्कार में जाते हैं तो सब यही सोचते हैं हम सबने एक दिन यहां आना है। किसी ने आगे, किसी ने पीछे या थोड़े समय के बाद आएगा। सब रिश्तेदारी, सब समाज, सब कुछ यहीं रह जाएगा इसलिए अब से दुनियावी मोह-माया में नहीं पड़ेंगे। अच्छे कर्म करेंगे ताकि लोग हमें हमारे कर्मों से याद रखें परन्तु जैसे ही श्मशान घाट से बाहर निकलते हैं, 10 मिनट के अन्दर हम फिर अपनी दुनिया में होते हैं। सब भूल जाते हैं, फिर वही मोह-माया के बन्धन, यह मेरा, यह तेरा, यह अपना, यह पराया, जो श्मशान घाट से सीख लेकर आते हैं, मिनटों में फुर्र हो जाती है।
यही हाल संतों के समागमों का है। आज दुनिया में हर समाज में बड़े से बड़े संत हैं और कहते हैं कि नानक दुखिया सब संसार। हर इन्सान किसी न किसी तरीके से दु:खी है। कोई धन न होने की वजह से, कोई अपनों से ठगे होने की वजह से, कोई बीमारी से, कोई अपने से धोखाधड़ी से, कोई बच्चों से, कोई माता-पिता से, कोई भाई से, कोई चाचा से, कोई भतीजे से। कहने का भाव है कि हर इन्सान अपने अन्दर छोटा-बड़ा दु:ख लेकर चल रहा है इसीलिए वह शांति या सुख पाने या मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए अपने-अपने गुरु ढूंढता है इसीलिए आज गुरुओं की भी भरमार है और शिष्यों की भी। किसी भी संत के पास चले जाओ आपको अथाह दुनिया मिलेगी, कोई सिर्फ तनिक शांति के लिए आते हैं, कोई पूरी तरह उन्हें अनुसरण करते हैं।
क्योंकि संत बनना आसान नहीं, बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। बहुत त्याग और तपस्या से कोई संत बन पाता है। अभी बहुत से नकली ढोंगी बाबाओं ने बदनामी दी है परन्तु महान तरुण सागर जैसे महान संत विरले ही होते हैं जो वस्त्र तक त्यागकर पैदल चलकर जगह-जगह घूमकर कड़वे वचन बोलकर सिर्फ समाज को नहीं बल्कि पूरे देश को एक नई दिशा दे रहे हैं। आज गुरु पूर्णिमा है, आओ सब छोटे-बड़े संतों व गुरुओं को प्रणाम करें, उनका आशीर्वाद लें, उनकी जो बात अच्छी लगती है, मन को भाती है उसे ग्रहण करें, लोगों में फैलाएं फिर चाहे वे गुरु भद्रमुनि जी, शिवमुनि जी, तरुण सागर जी, श्रमण जी महाराज, रामशरणम् की मां हों, गुरु परशुराम हों या बड़े मन्दिर के गुरु जी हों। बहुत से ऐसे संत और गुरु जी हैं, सबका नाम लेना भी मुश्किल है पर आज गुरु पूर्णिमा पर सबको चरण वन्दना।