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बदलनी होगी मदरसों की छवि

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भारत में मदरसों में शिक्षा के स्वरूप को लेकर बहुत बहस हो चुकी है। ऐसे आरोप कई बार उछले हैं कि मदरसे जेहाद की शिक्षा देते हैं जिससे मुस्लिम समाज में कट्टरवाद बढ़ रहा है। ऐसा भी कहा गया कि मदरसों में आतंकी तैयार किए जाते हैं। ऐसा माहौल इसलिए बना क्योंकि लादेननुमा लोगों की अमानवीय करतूतों और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के चलते इस्लाम आतंक का पर्याय बनकर रह गया। इस्लाम और आतंक न सिर्फ एक-दूसरे से अलग हैं बल्कि एक-दूसरे के विरोधी हैं। वास्तव में इस्लाम सख्ती के साथ सभी प्रकार के दमन, हिंसा और आतंकवाद का कड़ा विरोध करता है और इस्लाम के तहत शरारत, फसाद और हत्या बहुत बड़ा गुनाह है। मदरसे इस्लामी जीवन की शिक्षा देते हैं लेकिन वातावरण ऐसा सृजित हो गया कि यहां हत्याओं का पाठ पढ़ाया जाता है।

किसी भी शिक्षा संस्थान की ऐसी छवि न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी घातक है। देवबन्द के उलेमा कई बार कह चुके हैं कि दुनिया में कहीं भी बेकसूरों को निशाना बनाने वाली कार्रवाई, भले ही वह किसी भी व्यक्ति या किसी संगठन ने की हो, वह इस्लाम के मुताबिक आतंकवाद की कार्रवाई है। इस्लामी विद्वानों की राय तो सराहनीय है लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि दुनियाभर में इस्लाम के नाम पर आतंकवादी संगठन लोगों का खून बहा रहे हैं, उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम की छवि प्रभावित हुई है।

दुःखद बात यह रही कि इस छवि ने मदरसों को भी अपनी चपेट में ले लिया लिहाजा इस्लामी विद्वानों को चाहिए कि मदरसा शिक्षा को लेकर दुनिया में बेहतर संदेश पहुंचाएं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस बात की मंजूरी दी गई कि मदरसों में दीनी तालीम के साथ-साथ एनसीईआरटी पाठ्यक्रम की पढ़ाई कराई जाए। अब मदरसों में उर्दू के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम से भी पढ़ाई होगी। मदरसा बोर्ड ने मदरसों के बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए दीनी तालीम के साथ-साथ विषयवार व कक्षावार एनसीईआरटी की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करने और उर्दू के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम से भी पढ़ाई का प्रस्ताव दिया था। इससे मदरसा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा का स्तर सुधरेगा और वे राष्ट्र की मुख्यधारा में आ सकेंगे।

सरकार के इस फैसले से बच्चों को अपनी मंजिल तलाश करने में आसानी होगी। इसके अलावा छात्रों को अब सरकारी नौकरियां प्राप्त करने में परेशानी नहीं होगी। उनके लिए आगे की तालीम के लिए राहें हमवार होंगी। अधिकांश मदरसा संचालकों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। मदरसा के बच्चे भी मेधावी होते हैं लेकिन उन्हें अंग्रेजी आैर ​हिन्दी का ज्ञान नहीं होने के कारण परीक्षा में कामयाब नहीं होते। सरकार के फैसले को लागू करने के लिए इसे धरातल पर उतारना जरूरी है। इसके लिए न केवल सरकार को पाठ्य-पुस्तकों की व्यवस्था करनी होगी बल्कि इसके लिए अच्छी शिक्षा देने वाले शिक्षकों की व्यवस्था भी करनी होगी।मदरसों में अंग्रेजी और ​हिन्दी की शिक्षा को अनिवार्य किए जाने को लेकर मुस्लिम वर्ग के लोग उत्साहित तो हैं लेकिन कुछ कट्टरपंथी विद्वानों को डर है कि कहीं मॉडल शिक्षा के नाम पर उनके साथ कोई साजिश तो नहीं है।

कुछ ने कहा है कि अगर साजिश के तहत इस तरह की सरकार नीयत रखती है तो वह लोग ऐसा कतई नहीं होने देंगे। मदरसों की शिक्षा का जो बेसिक स्वरूप है, उस पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए। इस देश की विडम्बना है कि जब भी कोई तब्दीली की जाती है, कट्टरपंथी ऐसा माहौल सृजित करने का प्रयास करते हैं जैसे इससे इस्लाम खतरे में है। कुछ मौलाना मदरसा पाठ्यक्रम के आधुनिकीकरण का विरोध कर रहे हैं आैर यह झूठ फैला रहे हैं कि भाजपा एक मजहब विशेष का विरोध करती है और डराकर वोट बैंक की राजनीति और तुष्टिकरण की राजनीति करती है जबकि मदरसों के पाठ्यक्रम में बदलाव मुस्लिम बच्चों के हित में है।

मुस्लिम भी अपने बच्चों काे अंग्रेजी पढ़ाने के लिए कान्वेंट स्कूलों में भेजते हैं। अगर मदरसों में अंग्रेजी और हिन्दी की पढ़ाई मिल जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। सभी को आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। आधुनिक शिक्षा तर्कशक्ति विकसित करेगी, जो आर्थिक, सामाजिक पिछड़ापन भी दूर करेगी आैर राजनीतिक नेतृत्व को भी विक​िसत करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संदेश है कि मु​स्लिम युवाओं के एक हाथ में पवित्र कुरान और दूसरे में कम्प्यूटर हो। योगी सरकार बनते ही इसने मदरसा बोर्ड पोर्टल बनाकर मदरसों का पंजीकरण अनिवार्य करने से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई। 2 लाख फर्जी नाम स्वतः बाहर हो गए जिनके नाम पर छात्रवृत्ति की बंदरबांट बन्द हुई। यह दुर्भाग्य है कि कट्टरपंथी मौलानाओं आैर संकीर्ण सोच रखने वाले लोगों को विकास के इस निर्णय में खामी नजर आती है। मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन का कारण शिक्षा ही है। जिस दिन मुस्लिम समाज शिक्षा के प्रति जागरूक हो गया, उसी दिन से आतंक के वायरस फैलने बन्द हो जाएंगे।

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