1965 के भारत-पाक युद्ध को 52 वर्ष हो चुके हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी को भारत के युद्ध नायकों के बारे में अधिक जानकारी नहीं होगी। 1965 युद्ध के नायक मार्शल अर्जन सिंह का शनिवार को निधन हो गया। इस युद्ध में उन्होंने भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया और पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए जबकि अमेरिकी मदद से उसकी वायुसेना ज्यादा बेहतर सुसज्जित थी। वह अद्भुत विवेक वाले सैन्य नेतृत्व के महारथी थे इसलिए उन्हें वायुसेना में मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया। सन् 2002 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर उन्हें मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया था। सैम होरमुसजी जमशेदजी मानेक शॉ और के.एम. करियप्पा ही केवल दो जनरल थे जिन्हें मार्शल के रैंक से सम्मानित किया गया था।
राष्ट्रपति द्वारा दिए गए ‘एट होम’ में मुझे उनके दर्शन करने का अवसर मिला तो मैंने उनसे हाथ मिलाकर खुद को गौरवान्वित महसूस किया था। मार्शल ने अदाकान अभियान के दौरान 1944 में जापान के खिलाफ एक स्क्वाड्रन का नेतृत्व भी किया था। इम्फाल अभियान के दौरान हवाई अभियान को अन्जाम दिया था और बाद में यंगून में अलायड फोर्सेज का काफी सहयोग किया था। वे एक ऐसे अद्भुत पायलट थे जिन्हें 60 विभिन्न तरीके के विमान उड़ाने का अनुभव था। उन्होंने तीन दिन में 65 युद्ध का नक्शा बदल दिया था। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल अयूब खां ने 1962 में चीन के हाथों भारत की हार का फायदा उठाते हुए सितम्बर के महीने में कच्छ के रण और फिर जम्मू-कश्मीर में घुसपैठिये भेजने शुरू कर दिए। भारतीय गणतंत्र पर चोट पहुंचाने के लिए पाक की फौज भी खुलकर सामने आ गई थी। एक बार तो पाक सेना जम्मू के अखनूर सैक्टर तक पहुंच गई थी। इस सैक्टर में पाकिस्तान भारी पड़ता दिखाई दे रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री काफी साहसी थे और स्थिति से बेहतर ढंग से निपट रहे थे। समूचा राष्ट्र भारतीय सेना की मदद करने के लिए उतर रहा था।
जब सेना के काफिले जालन्धर की सड़कों से गुजरते तो मैं भी अपने पिता श्री रमेश चन्द्र जी के साथ सैनिकों को ब्रैड और अन्य खाद्य सामग्री देने पहुंचता था। तब आकाश भारत माता की जय के उद्घोष से गूंज उठता था। पाकिस्तान अखनूर सैक्टर में हमला कर जम्मू एवं कश्मीर को काट देना चाहता था। तत्कालीन जनरल जे.एन. चौधरी का मानना था कि अगर भारतीय वायुसेना को युद्ध में शामिल नहीं किया गया तो पाकिस्तान को छम्ब जौडिय़ां में रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा। तब जनरल चौधरी और अर्जन सिंह तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चव्हाण से मिले तब पाकिस्तान पर हवाई हमलों का फैसला लिया गया। जब पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने पठानकोट एयरबेस पर बम गिराये तो पूरा शहर पाक के प्रति आक्रोश में था।
अर्जन सिंह के नेतृत्व में भारतीय वायुसेना ने तीन दिन में ही पाकिस्तान पर कहर बरपा दिया। पठानकोट, अम्बाला और आदमपुर के लड़ाकू विमान पाकिस्तान के प्रमुख हवाई ठिकानों जैसे सरगोधा, पेशावर, कोहाट आदि पर धावा बोलने में सफल रहे। इन हमलों को ऐसे अन्जाम दिया गया कि भारतीय विमान कश्मीर घाटी से उड़ते थे और ये पाकिस्तानी राडार से बचने के लिए कवर का काम करते थे। भारतीय वायुसेना पाकिस्तान के लगभग सभी शहरों की बिजली सप्लाई व्यवस्था को ध्वस्त करने और महत्वपूर्ण ठिकानों को तबाह करने में कामयाब रही।
पाकिस्तानी वायुसेना को मजबूर होकर अपने विमान अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकानों पर भेजने पड़े। दूसरी तरफ भारत की थलसेना ने पाक को ऐसे घेरा कि उनके टैंकों के कब्रिस्तान बना डाले। अगर युद्ध कुछ दिन और जारी रहता तो पाकिस्तान का विध्वंस हो जाता। लाल बहादुर शास्त्री कमजोर इन्सान नहीं थे लेकिन वह शांति के पुजारी थे। वह युद्ध 1966 में ताशकंद समझौते के साथ खत्म हुआ और वहीं लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था। अर्जन सिंह भारतीयों के लिए मिसाल बन गए। वह अपने काम में दक्ष होने के साथ-साथ सक्षम नेतृत्व के धनी थे। वह बेहतरीन इन्सान थे। उनका जीवन हमारे लिए एक आदर्श है। मार्शल कभी रिटायर नहीं होते। भले ही मार्शल इस संसार को अलविदा कह चुके हैं लेकिन हमें उन पर गर्व रहेगा। उनके बल पर ही राष्ट्र का स्वाभिमान टिका हुआ है। मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। हम देश के लिए उनके योगदान को याद रखकर युवाओं को प्रेरणा देते रहेंगे।