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विनाशक क्यों हुआ तूफान?

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132 किलोमीटर की रफ्तार से आए तूफान से उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित सात राज्यों में मरने वालाें का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इस तूफान ने भयंकर आर्थिक क्षति भी पहुंचाई है। उत्तर प्रदेश आैर राजस्थान में सबसे ज्यादा क्षति हुई है। जिनकी भरपाई कब होगी, कहना मुश्किल है। इस तूफान ने एक बार फिर मौसम विभाग को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है, क्योंकि इस जबरदस्त तूफान का उन्हें जरा भी अनुमान नहीं था, जिसकी वजह से वो अलर्ट जारी कर सके। मौसम विभाग ने मई के पहले सप्ताह में एक मई से चार मई के दौरान पूर्वी भारत और उत्तर पूर्वी भारत में तूफान की स्थिति बनने की बात कही गई थी लेकिन इस अनुमान में राजस्थान समेत उत्तर भारत में किसी तरह के रेतीले तूफान और बारिश की बात नहीं की गई थी। इससे साफ है कि मौसम विभाग के तूफान और आंधी को लेकर सारे विज्ञान फेल हो गए हैं। हालांकि निजी मौसम एजैंसी स्काईमेट ने उत्तर भारत में आंधी की आशंका जाहिर की थी। उच्च तापमान की वजह से उत्तर भारत में तूफान और धूल भरी आंधियां आम बात है। भारतीय मौसम विभाग ने 40-50 प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले तूफान का अलर्ट तो जारी किया था लेकिन हवाओं की रफ्तार इससे कहीं ज्यादा तेज और कहीं-कहीं तो 132 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक देखने को मिली। सामान्य तौर पर ऐसा स्वीकार किया जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ऐसी आपदाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। दरअसल भारत में तूफान की तीव्रता और फ्रीक्वैंसी पर वार्मिंग के असर को लेकर अब तक अलग से कोई अध्ययन नहीं किया गया। अब मौसम विभाग का कहना है कि प्रचंड तूफान के लिए एक साथ चार परिस्थितियां होना जरूरी हैं, पर्याप्त मात्रा में धरती का गर्म होना, हवा में नमी, वातावरण का अस्थिर होना और इसके शुरू होने का मैकेनिज्म होना चाहिए। बुधवार को इन चारों परिस्थितियों का मेल हो गया। जमीन का तापमान ज्यादा था, हिमाचल से नमी भरी पुरवाई चल रही थी, वातावारण अस्थिर आैर हरियाणा के आसपास साइक्लौजिक सर्कुलेशन ने तूफान की शुरूआत कर दी।

राजस्थान में तो मौसम विभाग की लापरवाही भी सामने आई। राज्य का मौसम विभाग तूफान आने से पहले सरकार, आपदा प्रबंधन और सभी कलैक्टरों को अलर्ट भेज कर सचेत कर सकता था लेकिन विभाग ने अलर्ट अपनी वेबसाइट पर डालकर औपचारिकता पूरी कर दी। जबकि नियमों के अनुसार खतरे का यह पुर्वानुमान सरकार सहित सभी संबंधित ​विभागों को भेजना होता है लेकिन जयपुर स्थित मौसम विभाग के केन्द्र का राडार ही काम नहीं कर रहा था। इसलिए पूर्वानुमान का वो चार्ट ही तैयार नहीं हो पाया जो कलैक्टरों को भेजा जाता। अगर लोग पहले से सतर्क होते तो शायद इतनी जान-माल की क्षति नहीं होती। सूचनाएं दबाने से नहीं, ज्यादा से ज्यादा शेयर करने पर खतरे टाले जा सकते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में तो मौसम संबंधी जानकारियां सार्वजनिक स्थलों, एयरफोर्स, मैट्रो स्टेशन पर रेडियो आैर टी.वी. के जरिए जारी की जाती हैं। आपदा आैर तीव्रता की चेतावनी के तौर पर ट्रैफिक सिग्नल की तरह अलग-अलग रंगों की लाइट्स जलाई जाती हैं। हमारे यहां तो आंधी, तूफान में सबसे पहले लाइट जाती है आैर साथ ही ट्रैफिक सिग्नल बंद हो जाते हैं। आंधी-वर्षा की बात तो छोड़िए राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक सिग्नल अधिकांश जगह खराब देखे जा सकते हैं। लोगों के घर बर्बाद हो गए, पशु भी मारे गए। तूफान के बाद बचे सिर्फ तबाही के निशान। लोग सड़कों पर रात बिताने काे मजबूर हैं, उन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं हुआ। आपदा प्रबंधन कहीं नज़र नहीं आया। न तो उत्तर प्रदेश में आैर न ही राजस्थान में और न ही कहीं अन्य राज्य में।

तटीय क्षेत्रों में तूफान आते रहते हैं। पिछले वर्ष तूफान की जानकारी देकर मौसम प्रशासन ने गुजरात आैर महाराष्ट्र आदि में एहतियातन उपाय करके लोगों की जानें बचाई हैं लेकिन मौसम विभाग इस बार सटीक आकलन करने में विफल रहा। मानसून में हमेशा परिवर्तन होता रहा है और भविष्वाणी करना और भी पेचीदा होता जा रहा है। भविष्य के मौसम वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन के साथ-साथ ही धुएं के विभिन्न रूपों के जरिए वायु प्रदूषण पर निर्भर करेगा। इन सबकी वजह से भविष्य में भविष्यवाणी और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी लेकिन भविष्यवाणी को दुरुस्त करने की जरूरत को कतई कम करके आंका नहीं जा सकता। मौसम की जानकारी देने वाले भारत उपग्रह अंतरिक्ष में लेकिन मौसम विभाग को भी दुरुस्त बनाना होगा। विभाग को आैर शोध करने की जरूरत है।

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