चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और बड़ी सैन्य शक्ति होने के बावजूद कई मामलों में भारत की तरक्की से परेशान रहता है। बीते कुछ वर्षों में जिस तरह भारत ने विदेशी निवेश आकर्षित करने और टेक्नोलॉजी और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं वह चीन के लिए परेशानी का सबब है।
इसके अलावा भारत का अमेरिका के साथ लगातार मजबूत होता सैन्य रिश्ता भी चीन की परेशानी को बढ़ा रहा है। भारत की इन उपलब्धियों के चलते चीन सरकार को समझ आ रहा है कि आने वाले दिनों में यदि वह भारत से संबंध अच्छे नहीं करता तो उसे भारत के रूप में एक बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
विदेशी निवेश
2015 में पहली बार भारत ने चीन को विदेशी निवेश के मामले में पीछे छोड़ दिया था। जहां भारत को 63 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला था वहीं चीन को महज 56 बिलियन और अमेरिका को महज 59 बिलियन डॉलर मिला था। इन आंकड़ों के बाद चीन ने मेड इन चीन 2025 कार्यक्रम के तहत विदेशी निवेशकों को घरेलू निवेशक जैसे अधिकार देने का ऐलान किया था। चीन की कोशिश एक बार फिर विदेशी निवेश के मामले में भारत को पछाड़कर नंबर एक बनने की है लेकिन उसे डर मेक इन इंडिया और ईज ऑफ डुईंग बिजनेस जैसे भारतीय कार्यक्रमों से है।
मैन्यूफैक्चरिंग हब
भारत सरकार ने दो साल से मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत को दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने का प्रयास किया है। इसके चलते दुनियाभर से की कंपनियों ने डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर फार्मा और मोबाइल से लेकर ऑटो मैन्यूफैक्चरिंग में भारत का रुख करने में अपना फायदा बताया है। चीन को डर है कि भारत की यह कोशिशें रंग लाईं तो ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब का उसका कीर्तिमान भी भारत के नाम हो जाएगा।
टेक्नोलॉजी एंड साइंस टैलेंट
चीन सरकार अब इस बात को मान रही है कि बीते कई दशकों में भारत ने साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धिया हासिल की है। भारत की इस महारत को उसने हाल में इसरो द्वारा एक साथ की गई 104 सैटेलाइट लॉन्च के समय खुलकर कहा था। चीन सरकार ने माना था कि भारत ने दुनियाभर में अपने इंजीनियर और साइंटिस्ट के लिए बड़ी मांग पैदा की है और चीन इस मामले में भारत से काफी पीछे है। चीन सरकार पर दबाव है कि वह भी आने वाले दिनों में भारत से टॉप स्तर के टेक्नोलॉजी और साइंटिफिक ब्रेन को अपने यहां खींचने की कोशिश करे।
भारत-अमेरिका सैन्य संबंध
भारत और अमेरिका ने 2015 में अपनी सेनाओं द्वारा लॉजिस्टिकल सपोर्ट, सप्लाई और सेवाओं के आदान-प्रदान पर समझौता करते हुए इसे अमलीजामा पहनाया और इसे संचालित करने के लिए फ्रेमवर्क को स्थापित किया। इस समझौते से अमेरिका और भारत के सैन्य मंत्रालय एक-दूसरे के साथ तालमेल में काम करने के लिए सक्षम हैं। दोनों देशों के इस बढ़ते रिश्तों से चीन की परेशानी स्वाभाविक है.।साउथ चाइना समुद्र में उसकी पकड़ इस दोस्ती के चलते कमजोर पड़ सकती है।