रायपुर : छत्तीसगढ़ में नक्सल गतिविधियों पर शिकंजा कसने नए सिरे से प्रशासनिक स्तर पर कवायदें हो सकती है। चुनावी वर्ष में बस्तर में नक्सली गतिविधियों को बैक फुट पर धकेलने राज्य सरकार वहां फिर से तेज तर्रार अफसर की तैनाती कर सकती है।
पूर्व में बस्तर आईजी रहे एसआरपी कल्लूरी को फिर से बस्तर भेजे जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा हुआ है। इससे पहले बस्तर में आईजी रहते हुए कल्लूरी ने माओवादियों पर शिकंजा कसा था। वहीं मुठभेड़ के कुछ मामलें में लगातार विवादों में रहने और राजनीति गरमाने के बाद सरकार ने उन्हें पीएचक्यू वापस बुला लिया था। उस अब फिर से बस्तर में चुनावी साल आते ही नक्सल गतिविधियां बढ़ते ही इस तरह की अटकलें लगाई जा रही है।
बस्तर में लगातार नक्सल आपरेशन की वजह से फोर्स भी काफी हद तक बीहड़ों में आगे बढऩे में सफल हुई है। बीहड़ों में बेहद सफल नक्सल आपरेशन अभियान भी चलाए गए थे। इधर बस्तर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई को भी अहम माना गया था। हालांकि इस पर काफी विवाद भी हुआ लेकिन सरकार की ओर से आईजी को क्लीन चिट मिलने से विरोध केवल बयानों तक ही सिमटा रहा।
कल्लूरी के बस्तर में बीते कार्यकाल को राजनीतिक नजरिए से भी अहम माना जा रहा है। बस्तर में पदस्थापना के दौरान उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। वहीं कई संवेदनशील क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियां धीमी पड़ गई है। सूत्रों का दावा है कि उस दौरान माओवादी बीहडों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे थे। इसे भी नक्सल मोर्चे पर सरकार की सफलता से जोड़ा गया था।
अब चुनावों के मद्देनजर वहां नए सरे से लगाम कसना भी कल्लूरी के लिए चुनौती हो सकती है। सरकार इस मामले में निर्णय से पहले खुद कल्लूरी को बुलाकर उनसे चर्चा कर सकती है। चर्चा के बाद ही इस मामले में कोई निर्णय लिया जाएगा।
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