इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मदरसों में राष्ट्रगान में छूट दिए जाने वाली याचिका को खारिज किए जाने के मामले में देवबंदी उलेमा का कहना है कि जो मदरसे सरकारी अनुदान पर चलते हैं उनके लिए सरकारी फरमान मानना मजबूरी है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सरकार अपने फैसले को मदरसों पर जबरदस्ती क्यों थोप रही है।
आपको बता दे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में योगी आदित्यनाथ सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है। इसलिए राष्ट्रगान करना और राष्ट्रध्वज फहराना सभी शिक्षण संस्थाओं व अन्य संस्थानों में अनिवार्य है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने मऊ के अलाउल मुस्तफा की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना सभी नागरिक का सवैधानिक कर्त्तव्य है। लिहाजा जाति, धर्म और भाषा के आधार पर इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता अलाउल मुस्तफा ने मदरसों को राष्ट्रगान गाने से छूट की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी। इसमें छह सितंबर 2017 के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीबी भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खण्ड पीठ ने आदेश दिया कि मदरसों को राष्ट्रगान गाने से छूट नहीं है।
इससे पहले मामले मेें इलाहाबाद हाई कोर्ट यूपी सरकार से जवाब तलब किया था. दरअसल, सूबे के सभी मदरसों को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की तरफ से एक आदेश जारी किया गया था। आदेश के मुताबिक सभी मदरसों को 15 अगस्त के दिन राष्ट्र ध्वज फहराने और राष्ट्रगान गाने का आदेश दिया गया था। साथ ही पूरे समारोह की वीडियोग्राफी का भी आदेश दिया गया था।