समाजसेवक अन्ना हजारे ने लोकपाल कानून के क्रियान्वयन को लेकर सरकार की उदासीनता पर निराशा जाहिर करते हुए आज कहा कि उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प से भरोसा उठ गया है और वह अगले वर्ष जनवरी/फरवरी में दिल्ली में आंदोलन आरंभ करेंगे।
अन्ना हजारे ने सरकार की आलोचना करते हुए सवाल किया, सरकार या प्रधानमंत्री ही जनता के साथ धोखाधड़ी करने लगे तो इस देश और समाज का क्या उज्ज्वल भविष्य रहेगा ? उन्होंने कहा कि लोकपाल, लोकायुक्त जैसे कानून तुरंत अमल में लाए जाएं जो जनता को शीघ्रता से किफायती न्याय दे सके, शासन-प्रशासन मे बढ़ते भ्रष्टाचार को नियंत्रण में लाये,बढ़ती अनियमितताओं और मनमानी पर प्रतिबंध लगा सके, स्वच्छ प्रशासन का निर्माण हो तथा शासन और प्रशासन की जनता के प्रति जवाबदेही तय हो।
उन्होंने कहा कि जनता इस देश की मालिक है। शासन-प्रशासन में बैठे सभी लोग जनता के सेवक हैं। इसलिए प्रशासनिक व्यवस्था लोकतांत्रिक हो तथा लोगों के काम में सरकार का सहयोग हो। यह परिवर्तन लाने की शक्ति लोकपाल और लोकायुक्त कानून में हैं
अन्ना हजारे ने कहा कि लोकपाल, लोकायुक्त पर सरकार का नियंत्रण न रहते हुए जनता का नियंत्रण रहे। इसलिए प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्री, सांसद, विधायक, सभी अधिकारी, कर्मचारी लोकपाल, लोकायुक्त के दायरे में होने चाहिए। अगर जनता सबूत के साथ शिकायत करे तो लोकपाल इन सबकी जाँच कर सकता है। दोषी पाए जाने पर सजा हो सकती है। इसलिए कोई भी पक्ष लोकपाल, लोकायुक्त कानून लाना नहीं चाहता।
उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने लोकपाल, लोकायुक्त कानून का बहुत अच्छा मसौदा बनाया था। उससे देश के भ्रष्टाचार पर सौ प्रतिशत नहीं लेकिन 80 प्रतिशत से ज्यादा रोक लग जाती। इसलिए 2011 में पूरी देश की जनता लोकपाल, लोकायुक्त कानून की मांग को लेकर सड़कों पर उतर गई थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और संसद ने जनता को लिखित आश्वासन दिया था कि हम लोग जल्द ही एक सशक्त लोकपाल, लोकायुक्त कानून पारित करेंगे। इस आशय का एक संकल्प संसद से पारित किया गया था। उसके बाद ही देश की जनता ने आंदोलन वापस लिया और उन्होंने (श्री हजारे ने) अपना अनशन तोड़ा था।
अन्ना हजारे ने कहा कि उसके बाद सरकार जाग गयी। और दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित भी किया गया लेकिन विधेयक को सदन में रखते हुए राज्यों में लोकायुक्त स्थापना से संबंधित सभी धारायें हटा दी गई और सरकार ने लोकायुक्त कानून को कमजोर कर दिया। यह देश की जनता के साथ धोखाधड़ी थी। क्या यह संसद का अपमान नहीं है? उन्होंने भी जनता से बार-बार कहा था कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए सरकार प्रतिबद्ध है फिर भी जनता के साथ धोखाधड़ी की गयी।
उन्होंने कहा कि 2014 में नयी सरकार सत्ता में आई। पहले सरकार ने लोकपाल, लोकायुक्त कानून कमजोर किया था। लेकिन जो कुछ बचा हुआ कानून था वह नई सरकार लागू करेगी ऐसे लगा था। लेकिन इस सरकार ने भी 18 दिसंबर 2014 को और एक संशोधन विधेयक संसद में पेश किया। वह प्रवर समिति के पास भेजा गया। प्रवर समिति ने अच्छे सुझाव देने के बाद भी इसे अब तक प्रतीक्षित रखा गया हैं। उसे तुरन्त पारित करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। प्रवर समिति के अच्छे सुझावों को छोड़ दिया गया और सिर्फ धारा 44 में बदलाव किया गया।
अन्ना हजारे ने कहा कि 27 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने विशेषाधिकार के जरिए लोकसभा में लोकपाल, लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक 2016 पेश किया। कानून की धारा 44 में बदलाव करके इस कानून को कमजोर करने की और एक कोशिश की गयी। विधेयक 27 जुलाई को लोकसभा में रखा और कोई बहस न करते हुए केवल ध्वनि मत से एक दिन में पारित किया गया। दूसरे दिन 28 जुलाई 2016 को इसे राज्यसभा में रखा और फिर बिना बहस ध्वनिमत से पारित किया गया। 29 जुलाई 2016 को राष्ट्रपति के पास भेजा और राष्ट्रपति ने तुरन्त उसी दिन विधेयक पर हस्ताक्षर किए। इस तरह लोकपाल, लोकायुक्त कानून को तोड़मोड़ करने वाला कानून सिर्फ तीन दिन में बनाया
गया।
उन्होंने कहा कि लोकपाल, लोकायुक्त कानून बनाने में पांच साल लग गए लेकिन इस कानून को तोड़मोड़ करने वाला विधेयक तीन दिन में बनता है। यह देश के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी है। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार मुक्त भारत के संकल्प पर कैसे विश्वास किया जाए। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत भ्रष्टाचार में एशिया में पहले स्थान पर हैं। इससे प्रधानमंत्री की बातों पर विश्वास उठ गया है। प्रख्यात समाजसेवी ने कहा, बड़ी आशा से मैं इनकी तरफ देख रहा था। इसलिए तीन साल में इनके बारे में कुछ बोला नहीं। सिर्फ चिट्ठी लिखते रहा। याद दिलाते रहा। इन सभी बातों को देशवासियों के सामने रखने के लिए मैं नए साल में जनवरी के आखरी सप्ताह में या फरवरी के पहले सप्ताह में दिल्ली में आंदोलन करने जा रहा हूँ।