एक अनोखे मामले में बेंगलूरू के एक मानव संसाधन प्रबंधक ने आज सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर यूआईडीएआई को यह निर्देश देने की मांग की कि वह उन्हें उनके दिवंगत पिता का बायोमीट्रिक डाटा सौंपे। यह डाटा आधार कार्ड बनाने के लिए लिया गया था। संतोष मिन बी ने कहा कि वह बायोमीट्रिक विवरण चाहते हैं क्योंकि उनके पिता की मृत्यु के मद्देनजर इसकी यूआईडीएआई के लिए कोई उपयोगिता नहीं होगी और इसका दुरुपयोग हो सकता है।
संतोष एक आयुर्वेदिक क्लिनिक में काम करते हैं। उन्होंने शीर्ष अदालत से कहा कि उनके पिता की बेंगलूरू में प्रोविडेंट फंड कार्यालय में जीवन प्रमाण पत्र दाखिल करने के दौरान अपमानित होने के बाद मृत्यु हो गई थी। उनके पिता का वृद्धावस्था और आंखों की मोतियाबिंद की सर्जरी के कारण बायोमीट्रिक प्रमाणन नहीं हो पाया था, जिसकी वजह से उन्होंने अपमानित महसूस किया था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने संतोष को मामले में अपनी दलील रखने के लिए दो मिनट का वक्त दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आधार योजना ‘अघोषित आपातकाल’ की तरह है। उन्होंने कहा, ‘‘यह अदालत भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को मेरे पिता का बायोमीट्रिक प्रिंटेड रूप में सौंपने का निर्देश दे सकती है ताकि मैं इसे भावी पीढ़ी के लिए रख सकूं।’’
पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल हैं। उन्होंने आधार योजना को समाप्त करने की मांग की। पीठ ने उनकी दलीलों को रिकार्ड में रख लिया और मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 20 मार्च निर्धारित कर दी।
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