नई दिल्ली : लगभग बीस साल पहले भारतीय फुटबॉल फेडरेशन के अध्यक्ष स्वर्गीय प्रिय रंजन दास मुंशी ने दिल्ली के अंबेडकर स्टेडियम में हुंकार भरते हुए कहा था कि भारत 2030 के फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में भाग लेगा। हालांकि वह यह नहीं बता पाए कि आख़िर किस आधार पर भारत के लिए दावा कर रहे हैं। फिर यह मान लिया गया कि नेताओं के मुंह से कभी कभार ऐसा कुछ निकल जाता है जिसके सच होने की कोई गारंटी नहीं होती। दास मुंशी से पहले और बाद के फुटबॉल कर्णधारों ने भी खूब झूठे सच्चे-नारे लगाए लेकिन भारतीय फुटबॉल ने तो नहीं सुधरने की कसम खाई है और इस कसम का आज तक निर्वाह किया जा रहा है।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अगले महीने रूस में वर्ल्ड कप का आयोजन हो रहा है और भारतीय फुटबॉल प्रेमी पूछ रहे हैं कि क्या भारत भी खेलेगा ? अब उन्हें कौन समझाए कि वर्ल्ड कप मे दुनिया के चैम्पियन राष्ट्र खेलते हैं और फिसड्डियों के लिए वहां कोई जगह नहीं है। जी हाँ, क्रिकेट के रंग में रंगा पुता और राष्ट्रमंडल जैसे फिसड्डी खेलों में पदकों का जखीरा लूट कर इतराने वाला अपना देश फुटबॉल में कोई हैसियत नहीं रखता। वर्ल्ड कप खेलने का मौका तब ही मिलता है जब भारत कम से कम एशियाई देशों में सम्मानजनक स्थान हासिल करे।
भारतीय फुटबॉल लाख दावे करने के बाद भी आज वहीं खड़ी है जहां से कोई भी रास्ता ओलंपिक या वर्ल्ड कप की तरफ नहीं जाता। आईएसएल और आई लीग के आयोजन के बावजूद भी भारतीय फुटबॉल मे कहीं कोई सुधार नज़र नहीं आता। विश्वास ना हो तो आगामी एशियाई खेलों में सारी कहानी स्पष्ट हो जाएगी। फुटबॉल एक्सपर्ट्स और पूर्व खिलाड़ी अपनी टीम को लेकर ज़रा भी आशावान नहीं हैं। खिताब जीतना तो दूर, भारत यदि पहली आठ टीमों में भी जगह बना ले तो काफ़ी रहेगा।
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(राजेंद्र सजवान)