दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू से पूछा कि इसमें राजनीतिक दल को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया है। राजू पीएमएलए मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अदालत ने ईडी से गुरुवार को जवाब देने को कहा। यहां जिस राजनीतिक दल की बात हो रही है वह आम आदमी पार्टी (आप) है।
उत्पाद शुल्क नीति कई स्तरों पर लिया गया
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एस.एन.वी. भट्टी की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और ईडी से संबंधित दो याचिकाओं में सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई की। शीर्ष अदालत में सिसोदिया की जमानत याचिकाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बुधवार को उनके पक्ष में काफी दलीलें दीं। सिसोदिया की ओर से पेश होते हुए सिंघवी ने पीठ से कहा कि उत्पाद शुल्क नीति कई स्तरों पर लिया गया एक संस्थागत और सामूहिक निर्णय था। उन्होंने नीतिगत निर्णय से पहले मंत्रियों के समूह की सात बैठकों का हवाला दिया। सिंघवी ने अदालत को बताया कि पुरानी नीति के चलते प्राइवेट मैनुफैक्चरर्स के गुटबंदी के कारण प्रॉफिट मार्जिन 70 प्रतिशत तक बढ़ गया था। नई नीति रवि धवन समिति के सुझाए गए सुधारों पर आधारित थी।
हालांकि पुरानी नीति में निर्माता खुदरा विक्रेता हो सकते
सिंघवी ने अदालत को बताया कि नई नीति में निर्माताओं को खुदरा विक्रेताओं के रूप में नहीं जोड़ा गया था, हालांकि पुरानी नीति में निर्माता खुदरा विक्रेता हो सकते हैं। सिंघवी ने आगे कहा कि सीबीआई मामले में एक मुख्य आरोप पत्र और दो पूरक आरोप पत्र और 31,423 दस्तावेज और कुल 294 गवाह हैं। उन्होंने कहा, पीएमएलए मामले में अभियोजन की एक शिकायत है, साथ ही 21,465 दस्तावेजों और 162 गवाहों के साथ 4 पूरक शिकायतें भी हैं। सिंघवी ने कहा कि सिसोदिया के खिलाफ मामलों में कुल मिलाकर 50,000 दस्तावेज और 500 से अधिक गवाह हैं। इस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया कि कुछ गवाह दोनों में होंगे।
अदालत पॉलिसी मैटर पर नहीं जा रही
सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने टिप्पणी की कि इस बात को देखते हुए कि अदालत पॉलिसी मैटर पर नहीं जा रही है, लेकिन यह एक हाथ से ले और दूसरे से दे वाला सवाल बन जाता है, यानि क्विड प्रो क्वो का मामला।
इसलिए, जिस प्रश्न पर पीठ फैसला करेगी वह यह है कि क्या नीति सरकार को नुकसान पहुंचा रही थी या तीसरे पक्ष को लाभ पहुंचा रही थी। जस्टिस खन्ना ने सिंघवी से इन बिंदुओं पर बहस करने को कहा। सिंघवी ने गवाहों की विश्वसनीयता पर भी तर्क दिया और कहा कि वास्तव में यह जांच का विषय है कि उनके बयान कैसे लिए गए। उन्होंने कहा, इस न्यायालय ने माना है कि एक गवाह जो जांच एजेंसी का अप्रूवर बन जाता है, उसके बयान को अधिक विश्वसनीयता नहीं दी जानी चाहिए।
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