संपादकीय

एक नया क्वाड!

Aditya Chopra
बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों में वैश्विक स्तर पर नए समीकरण बन रहे हैं। समय-समय पर अपने हितों की रक्षा के लिए देश एकजुट होते रहे हैं। भारत ने भी वैश्विक स्तर पर देशों के साथ नए रिश्ते बनाने, संबंधों को मजबूत बनाने में काफी सफलता प्राप्त की है। इस दृष्टि से देखा जाए तो भारत की विदेश नीति और कूटनीति काफी कामयाब रही है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चार देशों अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया के क्वाड संगठन के बाद भारत और अमेरिका अब पश्चिमी एशिया में एक नए तरह के क्वाड को परवान चढ़ा रहे हैं। इस नए समीकरण में दोनों देशों के अलावा इस्राइल और संयुुक्त अरब अमीरात सदस्य हैं। इसे आई-2 यू-2 नाम दिया गया है यानि इंडिया-इस्राइल और यूएसए-यूएई। 
इस नए क्वाड की बैठक पहली बार अगले महीने हो रही है। बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, इस्राइल के प्रधानमंत्री एन. बेनेट और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जावेद शामिल होंगे। गठबंधन की इस बैठक से पश्चिम एशियाई देशों की राजनीति प्रभावित होगी। इस नए समीकरण के विदेश मंत्रियों की एक वर्चुअल बैठक पहले ही हो चुकी है। अब यह बैठक आमने-सामने हो रही है। चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने आर्थिक सहयोग पर एक अन्तर्राष्ट्रीय फोरम बनाने का फैसला किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस गठजोड़ का एजैंडा भी कुछ हद तक हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चल रही समस्याओं पर केन्द्रित है। इस वजह से यह गठजोड़ आने वाले समय में चीन की नाक में दम भी कर सकता है। मध्य एशिया में पिछले कुछ समय से कई ऐसे घटनाक्रम हुए हैं जो भारत के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। चाहे वह अफगानिस्तान में तालिबान का शासन हो या फिर चीन का  बढ़ता प्रभुत्व। विदेश मंत्री एस. जयशंकर जब तेल अबीब की यात्रा पर गए थे तो इस्राइल के विदेश सचिव एलोन उश पिज ने कहा था कि इस्राइल इस बात पर जोर देना चाहता है कि मध्यपूर्व एशिया में बन रही नई परिस्थितियों में भारत का परिदृश्य कैसा रहेगा और इस्राइल इस बात की कोशिश कर रहा है कि इस क्षेत्र में उभर रहे नए अवसरों में भारत को कैसे शामिल किया जाए। भारत और इस्राइल की मजबूत दोस्ती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और इस्राइल के पूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू के समय से है। हालांकि भारत और इस्राइल की दोस्ती दशकों से है। इस्राइल ने कारगिल युद्ध के दौरान और समय-समय पर भारत को हथियार और गोला बारूद देकर मदद की है, जब सारी दुनिया ने हाथ खड़े कर दिए थे। अब भारत और इस्राइल की दोस्ती पूरी तरह से सार्वजनिक हो चुकी है और अब संबंधों को छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है। नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आने के बाद दोनों देशों की दोस्ती को नया आयाम मिला है। यद्यपि अब इस्राइल के प्रधानमंत्री बेनेट हैं लेकिन संबंधों को मजबूत बनाने की प्रक्रिया जारी है।
भारत को इस नए क्वाड में काफी संतुलित रहकर चलना होगा। दरअसल इस्राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात इन तीनों देशों के लिए ईरान का मुद्दा बेहद खास है। ईरान जिस तरह अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखे हुए है उससे तीनों देशों की नजर में ईरान उनके लिए वैश्विक चुनौती है लेकिन भारत और ईरान के संबंध इतिहास के समय से ही अच्छे रहे हैं। जब अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाया था तो उसके बाद भी भारत-ईरान के संबंध जस से तस बने रहे थे। भारतीय विदेशी मंत्री एस.  जयशंकर उन ​चुनींदा नेताओं में से एक हैं जिन्होंने प्रतिबंध के बावजूद ईरान की यात्रा की। ऐसी स्थिति में भारत के सामने एक बड़ा सवाल यह भी है कि वह इस तरह के किसी गठबंधन में संतुलन बनाकर आगे कैसे बढ़ेगा जिसका बहुमत ईरान के खिलाफ होने वाला है। दरअसल ईरान परमाणु सम्पन्न देश बनना चाहता है और इसके लिए वह तेजी से काम भी कर रहा है। अमेरिका और इस्राइल नहीं चाहते कि ईरान परमाणु शक्ति बने। यही कारण है कि ईरान पर अमेरिका समय-समय पर प्रतिबंध लगाता रहता है। 
मध्यपूर्व एशिया में स्थिति​ जिस तरह की है उनमें कहीं न कहीं चीन बढ़त लेने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में अमेरिका जानता है कि अगर कोई देश एशिया में चीन को रोक सकता है तो वह सिर्फ भारत है। विश्लेषकों को ऐसा लगता है​ कि अमेरिका भारत के कंधे पर बंदूक रखकर चीन पर अपना निशाना साधना चाहता है। ऐसी स्थिति में भारत को सतर्क होकर गठबंधन में चलना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह नया गठबंधन भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंधों को नई मजबूती देगा। भारत को भी इस बात का अहसास है कि अगर एशिया में उसे अपनी​ स्थिति मजबूत करनी है तो खाड़ी देशों को साथ लेकर चलना होगा। भारत के यूएई और अन्य खाड़ी देशों के साथ संबंध पहले से ही काफी मधुर हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com