हरियाणा में आगामी 5 अक्तूबर को एक ही चरण में 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। यह राज्य देश की राजधानी दिल्ली से सटा हुआ है अतः इसकी राजनीति कहीं न कहीं देश की राजनीति से भी तय होती है परन्तु यह किसान या खेती प्रमुख राज्य भी है इसलिए जमीनी स्तर पर यहां की राजनीति दिल्ली जैसे महानगर की राजनीति से अलग ही रहती है। जब 1966 में पंजाब को विभाजित कर हरियाणा राज्य का गठन हुआ था तो इस राज्य में पानी की खासी कमी थी क्योंकि हरियाणा में केवल एक यमुना नदी ही कृषि की सहायता करती है। परन्तु कांग्रेस नेता बंसीलाल ने अपने लम्बे शासन के दौरान जिस प्रकार इस राज्य का विकास किया वह अन्य छोटे राज्यों के लिए एक उदाहरण बना। यदि सच पूछा जाये तो बंसीलाल के बाद इस राज्य में जितने भी मुख्यमन्त्री हुए वे सभी स्व. बंसीलाल के विकास के माॅडल का अनुसरण करते हुए अपने शासन का ढोल पीटते रहे। राज्य में विरोधी पार्टी के रूप में जनसंघ (भाजपा) शुरू से ही स्थापित पार्टी रही मगर यह ग्रामीण किसानों में अपनी पैठ नहीं बना सकी और 2014 तक केवल शहरों की पार्टी के रूप में ही जानी जाती रही। मगर 2014 के लोकसभा चुनावों में श्री नरेन्द्र मोदी के भाजपा के प्रधानमन्त्री प्रत्याशी घोषित होने पर इसमें बदलाव आया और भाजपा की पहुंच गांवों में भी हो गई। परन्तु 2024 के लोकसभा चुनावों में पुनः इस धारा में बदलाव आया और कांग्रेस पार्टी ने पुनः अपनी खोई हुई जगह राज्य की दस में से पांच सीटें जीतकर पाई।
बेशक पिछले दस सालों से राज्य में भाजपा की ही सरकार है मगर इस सरकार के विरुद्ध अब लोगों में गुस्सा भी देखा जा सकता है। परन्तु हरियाणा एेसा राज्य है जहां की राजनीति पर कभी भी क्षेत्रीय मुद्दे प्रभावी नहीं रहे। इस राज्य के लोग राष्ट्रीय मुद्दों को 1967 के चुनावों से ही तरजीह देते रहे हैं जिसकी वजह से यहां कभी भी कोई क्षेत्रीय पार्टी पनप नहीं सकी। इस मामले में सबसे बड़ा नाम स्व. राव वीरेन्द्र सिंह का लिया जा सकता है जिन्होंने 1967 में कांग्रेस से बाहर आकर अपनी पृथक विशाल हरियाणा पार्टी बनाई थी। आजकल उनके पुत्र राव इन्द्रजीत सिंह केन्द्र की सरकार में राज्यमन्त्री हैं। मगर विशाल हरियाणा पार्टी ने 1971 के लोकसभा चुनाव आते- आते दम तोड़ दिया और हालत यह हो गई थी कि इन चुनावों में इस पार्टी के गुड़गांव लोकसभा सीट से प्रत्याशी क्रिकेट के बादशाह माने जाने वाले पटौदी के नवाब मंसूर अली खां की कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध जमानत जब्त हो गई थी। वह बात और है कि बाद में नवाब पटौदी कांग्रेस में आ गये थे। अतः 5 अक्तूबर को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी व आम आदमी पार्टी (आप) में मिलकर चुनाव लड़ने की खबर तेजी से फैल रही है और यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस 'आप' पार्टी को पांच सीटें देने के लिए तैयार है। जबकि पहले आप ने घोषणा कर दी थी कि वह राज्य की सभी 90 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।
समझा जा रहा है कि कांग्रेस ने आप की तरफ दोस्ती का यह हाथ इंडिया गठबन्धन की एकता को देखते हुए बढ़ाया है और इसके पीछे लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी का दिमाग है। राहुल गांधी चाहते हैं कि विपक्षी मतों में किसी प्रकार का बंटवारा न हो जिससे भाजपा को राज्य में करारा सबक सिखाया जा सके। बिना हिचक यह कहा जा सकता है कि राज्य में भाजपा के लगातार दस वर्षों के शासन के विरुद्ध लोगों में सत्ता विरोधी भावनाएं प्रबल हैं जिनके तार कुछ एेसे मुद्दों से जुड़े हैं जो हरियाणावासियों के लिए जीवन-मरण के माने जाते हैं। पहला मुद्दा किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी छाता दिये जाने का है और दूसरा सेना में अग्निपथ स्कीम का है जिसमें चार वर्ष के लिए ही सैनिकों की भर्ती होती है। हरियाणा में सेना में भर्ती होने का नौजवानों में जुनून होता है। यहां के गांवों के किसानों का एक बेटा खेत में हल जोतता है तो दूसरा देश की सरहदों पर खड़े होकर उसकी रक्षा करता है। सेना में भर्ती जवानों का इस राज्य का प्रतिशत आठ से अधिक माना जाता है जबकि इस राज्य की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या के मुकाबले दो ही है। बेशक ये दोनों मुद्दे राष्ट्रीय हैं मगर हरियाणा के लोगों के लिए ये उनकी जीवन शैली से जुड़े हुए हैं। भाजपा की दिक्कत यह है कि इसकी राज्य में पिछले दस साल से सरकार जरूर है मगर इसके पास कोई एेसा सर्वमान्य नेता नहीं है जिसकी पकड़ राज्य की सभी बिरादरियों और गांव व शहरों में है। स्व. डा. मंगल सेन के बाद भाजपा अभी तक कोई उनके कद का नेता पैदा नहीं कर पाई है। फिर भी यह पिछले चुनाव प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता की वजह से जीतती रही है। अतः राष्ट्रीय राजनीति में 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए परिवर्तन का असर विधानसभा चुनावों पर पड़ना लाजिमी माना जा रहा है।
राज्य में कांग्रेस यदि आप पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो निश्चित रूप से विपक्ष के वोटों का बंटवारा रुक सकता है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी का राज्य के मतदाताओं में कोई बड़ा जनाधार है। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस व भाजपा के मत प्रतिशत में बहुत बड़ा अंतर नहीं था जिसकी वजह से भाजपा की 40 सीटें आयी थीं और कांग्रेस की 31 जबकि क्षेत्रीय दल जजपा की 10 सीटें आ गई थीं। राज्य में कहने को तो एक और क्षेत्रीय दल भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (इनेलो) भी है मगर इसका परिवारवादी प्रभाव बहुत सीमित हो चुका है। अतः मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच में ही होना है।