देश में एक बार फिर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की चर्चा तेज हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बीती 15 िसतम्बर को अपने तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार 2029 तक देश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव, यानी 'वन नेशन वन इलेक्शन' करवा सकती है। भाजपा के घोषणापत्र में भी इसका जिक्र है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए अपनी स्पीच में भी प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रहे हैं। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में एक देश, एक चुनाव को प्रमुख वादों के रूप में शामिल किया था।
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। भारत में वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं। इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों। इसके पीछे विचार है कि ये चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जा सकते हैं। कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराने पर जोर देते रहे हैं।
लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने कहा था कि राष्ट्र को एक देश, एक चुनाव के लिए आगे आना होगा। प्रधानमंत्री ने राजनीतिक दलों से लाल किले से और राष्ट्रीय तिरंगे को साक्षी मानकर राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित करने का आग्रह किया था। निस्संदेह, एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिये भाजपा द्वारा नई पहल किए जाने के निहितार्थ समझना कठिन नहीं है। सर्वविदित है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा जनाधार बढ़ाने के बावजूद भाजपा देश का प्रमुख राजनीतिक दल बना हुआ है। ऐसे में अगर मतदाता दो साल के बजाय पांच साल में अपने मताधिकार का प्रयोग करता है तो इसका भगवा पार्टी को सबसे ज्यादा लाभ मिल सकता है। राजनीतिक पंडित राजग सरकार की एक राष्ट्र,एक चुनाव की मुहिम के पीछे ऐसी ही सोच बताते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है। पैनल का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। यह रिपोर्ट स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद 191 दिन की रिसर्च का नतीजा है। कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है। कमेटी ने जो पांच प्रमुख सुझाव दिये हैं उनमें सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं। चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा। कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।
भारत में चुनाव का एक ऐसा चक्र बना हुआ है, जिससे ऐसा लगता है कि देश में चुनाव होते ही रहते हैं। आजादी के बाद से देश में कई चुनाव हुए हैं, जिससे अक्सर संसाधनों और प्रशासनिक मशीनरी पर काफी दबाव पड़ता है। 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा नई नहीं है। जानकारों का मानना है कि यह प्रक्रिया उतनी की पुरानी है जितना हमारा संविधान। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं। इसीलिए इस पर एक राय नहीं बन पा रही है। राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा। इसीलिए खासकर क्षेत्रीय दल इस तरह के चुनाव के लिए तैयार नहीं होते। इनका यह भी मानना है कि अगर वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे। इससे राज्यों का विकास प्रभावित होगा।
जहां तक दूसरे देशों में वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की बात है, तो इस सूची में अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा आदि शामिल हैं। अमेरिका में हर चार साल में एक निश्चित तारीख को ही राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव कराए जाते हैं। यहां एकीकृत चुनावी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए देश के सभी सर्वोच्च कार्यालयों के चुनाव एक साथ होते हैं। इसके लिए संघीय कानून का सहारा लिया जाता है।
भारत की ही तरह फ्रांस में संसद का निचला सदन यानी नेशनल असेंबली है। वहां नेशनल असेंबली के साथ ही संघीय सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति के साथ ही राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों का चुनाव हर पांच साल में एक साथ कराया जाता है। स्वीडन की संसद और स्थानीय सरकार के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं। यहां तक कि नगरपालिका और काउंटी परिषद के चुनाव भी इन्हीं चुनावों के साथ होते हैं। वैसे तो कनाडा में हाउस ऑफ कॉमंस के चुनाव हर चार साल में कराए जाते हैं, जिसके साथ कुछ ही प्रांत स्थानीय चुनाव को संघीय चुनाव के साथ कराते हैं।
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा। अलग-अलग चुनाव कराने पर हर बार भारी-भरकम राशि खर्च होती है। बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर बार चुनाव ड्यूटी करनी पड़ती है। एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर फोकस कर सकेंगी। बार-बार वह इलेक्शन मोड में नहीं जाएंगी और विकास के कामों पर ध्यान दे सकेंगी।
– रोहित माहेश्वरी