संपादकीय

अमरीकी दोस्त ट्रम्प

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत किया था और उनके पुनर्निर्वाचन के लिए समर्थन भी जताया था।

Kumkum Chaddha

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत किया था और उनके पुनर्निर्वाचन के लिए समर्थन भी जताया था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ही अभियान के नारे ‘अबकी बार मोदी सरकार’ को बदलकर ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ कर दिया था। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप ह्यूस्टन में एक भव्य कार्यक्रम में मोदी के साथ शामिल हुए थे। हालांकि केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मोदी पर ट्रंप का प्रचार करने के आरोप का खंडन किया था। या यह कि ट्रंप उस चुनाव में जीत नहीं पाए थे। जयशंकर ने यह भी कहा था कि भारत का विदेशी नेताओं के प्रति ‘गैर पक्षपाती’ दृष्टिकोण है लेकिन वह अतीत की बात हो चुकी है। वर्तमान में स्थिति यह है कि ट्रंप ने चुनाव जीत लिया है और अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल शुरू हो गया है।

जहां तक विदेशी नेताओं के प्रति भारत की तटस्थ नीति का सवाल है, जैसा कि जयशंकर ने बताया है, इसके विपरीत कई प्रमाण मौजूद हैं। पास के पड़ोसी देश बांग्लादेश में भारत ने शेख हसीना की सरकार के प्रति खुलेआम मित्रता दिखाई थी। विश्लेषकों के अनुसार भारत ने ‘हसीना पर अधिक निवेश’ किया, जिसने प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई सरकार के तहत दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर असर डाला है।

इसके अलावा शेख हसीना की भारत में निरंतर उपस्थिति के कारण ढाका में नई सरकार के साथ मजबूत संबंध बनाने में भारत के सामने एक विशेष कूटनीतिक चुनौती भी खड़ी हो गई है। अब अमेरिका का रुख करें, तो मोदी और ट्रंप के बीच की दोस्ती सभी के सामने है। 2020 में गुजरात के एक क्रिकेट स्टेडियम में भारत और अमेरिका के नेताओं की दोस्ती पर सबकी नजरें थीं। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना ‘दोस्त’ कहा था। दिनभर में दोनों ने अपनी दोस्ती दिखाते हुए एक-दूसरे को कई बार गले भी लगाया था। ट्रम्प ने फिर मोदी के बारे में ऐसा भी कहा ‘ऐसा व्यक्ति जिसे दोस्त बुलाने पर मुझे गर्व है’

2024 की बात करें तो ट्रंप ने एक रोमांचक और कांटे के मुकाबले में कमला हैरिस को हराकर व्हाइट हाउस में वापसी की है। ट्रंप की जीत के कुछ ही घंटों के भीतर मोदी ने अपने ‘दोस्त’ ट्रंप को जीत की बधाई दी। संयोग से मोदी उन पहले विश्व नेताओं में से एक थे जिन्होंने ट्रंप को अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में निर्णायक जीत के बाद फोन किया।

ट्रंप ने मोदी को ‘शानदार व्यक्ति’ बतायाऔर यह भी कहा कि ‘सारा विश्व पीएम मोदी से प्रेम करता है।’ हाल ही में उन्होंने मोदी को ‘टोटल किलर’ कहा। तारीफों की झड़ी लगाते हुए उन्होंने मोदी को ‘सबसे अच्छा इंसान’ भी बताया। अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि यह दोस्ती कैसे आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करेगी।

यह सर्वविदित है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल (2016 से 2020) के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में उल्लेखनीय सुधार हुआ था। दोनों देशों ने एक रणनीतिक साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ाए थे। चीन के वैश्विक प्रभाव को संतुलित करना दोनों देशों का एक साझा उद्देश्य बन गया था। ट्रंप के राष्ट्रपति के पहले कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के संबंधों में गहरी मजबूती आई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार से बढ़कर एक अपरिहार्य सहयोगी बन गया। जब 2017 में मोदी ने व्हाइट हाउस का दौरा किया तो ट्रंप ने वादा किया कि वे अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भारत का दौरा करेंगे और तीन साल बाद उन्होंने यह वादा पूरा किया।

इस बीच ट्रंप प्रशासन ने आतंकवाद के मुद्दों पर भारत का समर्थन किया। यहां तक कि उन्होंने जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित कराने में भी भारत का साथ दिया। रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा। निश्चित ही कुछ चुनौतियां थीं लेकिन समग्र दृष्टिकोण यह था कि दोनों देशों के बीच सहमति अधिक थी और मतभेद कम। इसलिए ट्रंप की जीत को भारत के लिए अनुकूल कहा जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हालांकि ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में दूसरे कार्यकाल में चीजें कैसे आकार लेंगी इस पर संदेह बना हुआ है।

दोनों नेताओं के बीच की मित्रता शायद जारी रहे, लेकिन रणनीतिक साझेदारी के मामले में प्रमुख सिद्धांत राष्ट्र पहले रहता है। वैसे भी विदेश नीति के मामलों में ट्रंप ने हमेशा ‘अमेरिका पहले’ का दृष्टिकोण अपनाया है।

इसलिए मोदी-ट्रंप की मित्रता को भारत के लिए महत्वपूर्ण लाभों में बदलने की उम्मीद करना जल्दबाजी हो सकती है। यह चर्चित दोस्ती एक अनुकूल कारक हो सकती है, लेकिन क्या इससे भारत के पक्ष में फैसले होंगे, यह फिलहाल अनिश्चित है। हालांकि देखने में दोनों नेताओं की इस निकटता से आर्थिक संबंधों में निरंतरता और गहराई आ सकती है, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा। इसलिए ‘इंडिया फर्स्ट’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति एक-दूसरे के विरोध में नहीं बल्कि सहयोग में काम कर सकती है। फिर भी अतीत जरूरी नहीं कि भविष्य का मार्गदर्शन करे। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए एक महत्वाकांक्षी एजेंडा है, जो भारत की अपेक्षाओं के अनुरूप हो भी सकता है और नहीं भी।

ट्रंप का अपने देश में औद्योगिक गतिविधियों को वापस लाने का इरादा है, जिससे उसके व्यापारिक साझेदार जिनमें भारत भी शामिल है, प्रभावित हो सकते हैं। साथ ही, ट्रंप की अवैध आव्रजन पर सख्त नीति समस्या बन सकती है, क्योंकि हज़ारों भारतीय कनाडा और मैक्सिको की सीमाओं से अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश कर चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीयों का सामूहिक निर्वासन एक बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है। लेकिन ये ठोस मुद्दे हैं और इनमें समाधान की गुंजाइश है। असल चुनौती ट्रंप की अपनी अनिश्चितता है। इस संदर्भ में, भारत को कुछ रुकावटों के लिए तैयार रहना चाहिए और ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का स्वागत करने से पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए।

इसके बावजूद वर्तमान में ट्रंप भारत के लिए काफी फायदेमंद माने जा सकते हैं। अगर उनकी तुलना कमला हैरिस से की जाए तो जो नकारात्मक पहलू सामने आता है, वह है प्रधानमंत्री मोदी के साथ हैरिस के संबंधों की कमी। कमला हैरिस ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मोदी के कदम की आलोचना की है। हालांकि उन्होंने जब-जब जरूरत पड़ी, अपने भारतीय मूल का जिक्र जरूर किया है लेकिन भारत के प्रति कोई स्पष्ट नीतिगत पहल करने में उनकी भूमिका सीमित रही है। कुल मिलाकर ट्रंप मोदी सरकार के एक स्वाभाविक मित्र हैं, जिनके साथ वे सहजता से साथ काम कर सकते हैं।