संपादकीय

अनुच्छेद 370 : नजरें सुप्रीम कोर्ट पर

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुुप्रीम कोर्ट ने 16 दिन तक चली बहस के बाद सुनवाई पूरी कर ली है।

Aditya Chopra
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुुप्रीम कोर्ट ने 16 दिन तक चली बहस के बाद सुनवाई पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल किया जाए और उसका पूर्ण राज्य का दर्जा भी लौटाया जाए। चीफ जस्टिस के नेतृत्व में पांच सदस्यीय पीठ यह पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वह केवल संवैधानिक मुद्दों पर ही सीमित रहेगी। शीर्ष अदालत केवल यह देखेगी कि कोई संवैधानिक उल्लंघन हुआ है या नहीं। यदि कोई संवैधानिक उल्लंघन हुआ है तो अदालत निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगी। अदालत 370 निरस्त करने के फैसले के अन्तर्निहित विवेक की जांच करेगी। सुप्रीम कोर्ट को जिन मुद्दों पर फैसला देना है उनमें से एक यह है कि क्या केन्द्र सरकार को अनुच्छेद 370 हटाने का अधिकार है या नहीं। दूसरा केन्द्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बांटना और उन्हें केन्द्र शासित प्रदेश बनाना क्या सही है या गलत। और किसी राज्य को लम्बे समय तक राज्यपाल शासन के अधीन रखना सही है या गलत। सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण रहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को अंतिम माना। इससे स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसका विलय भारत में बिना शर्त हुआ है।
अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर लगी हुई हैं और उसके फैसले से यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि धारा 370 को ​निरस्त करना राष्ट्रीय हित में था या नहीं। सर्वविदित है कि अनुच्छेद 370 अस्थाई प्रावधान था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता नैशनल कांफ्रैंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन द्वारा 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने का मुद्दा भी उठा। केन्द्र सरकार ने मांग की कि अकबर लोन माफी मांगें और भारतीय संविधान में​ निष्ठा संबंधी शपथपत्र दायर करे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अकबर लोन को शपथपत्र देने को कहा। कश्मीरी पंडितों के संगठन रूट्स इन कश्मीर ने याचिका दायर कर दावा किया था कि अकबर लोन घोषित तौर पर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। यद्यपि अकबर लोन ने हल्फनामा दे दिया है, इस पर महा​अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि नैशलन कांफ्रैंस के सांसद अकबर लोन द्वारा दायर किया गया हल्फनामा एक तमाशा है। यह हल्फनामा जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है जिससे देश की छवि को नुक्सान पहुंचा है। उन्होंनेअदालत से यह भी कहा है कि वह यह भी देखें कि अकबर लोन ने इस हल्फनामे में क्या नहीं लिखा है। 
लोन ने हल्फनामे में लिखा है कि ''मैं भारत का एक जिम्मेदार नागरिक हूं। सांसद के रूप में ली गई शपथ को दोहराता हूं। मैंने भारत के संविधान को बनाए रखने और भारत की अखंडता  बनाए रखने की शपथ ली है। सुप्रीम कोर्ट उनके हल्फनामे की समीक्षा कर फैसला करेगी। सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और वहां कभी भी चुनाव कराए जा सकते हैं। चुनावों की तिथियों का फैसला निर्वा​चन आयोग को करना है। हालांकि केन्द्र ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के संबंध में कोई समय सीमा नहीं बताई। इसमें कोई संदेह नहीं  कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और घुसपैठ की घटनाओं में काफी कमी आई है और पत्थरबाज अब कहीं दिखाई नहीं देते। जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली होने के साथ ही देशभर के पर्यटक जम्मू-कश्मीर की ओर आकर्षित हुए हैं और कई वर्षों से बंद ​सिनेमाघर भी खुलने लगे हैं।
श्रीनगर के लालचौक पर पहले की तरह धार्मिक उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं और जगह-जगह तिरंगे फहर रहे हैं और कश्मीरी आवाम देश की मुख्यधारा से जुड़ने लगी है। जब हालात पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगे तो फिर उसे राज्य का दर्जा भी दिया जाएगा। यह सभी नीतिगत मुद्दे हैं। जब किसी राज्य का पुनर्गठन होता है तो इस सम्बन्धित योजना में केन्द्र यह भी तय करता है कि राज्य के पुनर्गठन के बाद क्या किया जाएगा। किसी तरह से राज्य के युवाओं को मुख्य धारा में लाया जाएगा। सभी को कैसे रोजगार मुहैया कराया जाएगा। सरकार जम्मू-कश्मीर में अपनी योजनाओं के अनुरूप काम कर रही है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है। देखना होगा कि शीर्ष अदालत क्या फैसला लेती है और उस फैसले के बहुत दूरगामी परिणाम होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com