शिरोमणि अकाली दल के साथ जब सः प्रकाश सिंह बादल ने बादल शब्द जोड़ दिया तब से वह इसे पारिवारिक पार्टी समझने लगे। जब उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दिया तो असूलन नए प्रधान का चुनाव वोटिंग करके लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए था मगर उन्होंने मौजूद सदस्यों से हाथ खड़े करवाकर नए प्रधान के रूप में सुखबीर सिंह बादल को चुनते हुए प्रधानगी घर में ही रखी। चुनावों में निरन्तर हो रही हार के कारण जब सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे की बात उठी तो उस समय बादल साहिब ने इसे सिरे से नकार दिया। आज एक बार फिर से परिस्थितियां ऐसी बन चुकी हैं कि पार्टी के ज्यादातर लोग बादल परिवार की पंथ विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी को अलविदा कह चुके हैं, जिन्हें बागी कहकर पुकारा जा रहा है और इन बागियों की शिकायत पर ही बीते दिनों श्री अकाल तख्त साहिब से पांच सिंह साहिबान के द्वारा सुखबीर सिंह बादल को तनखाईया करार दिया गया। तब से निरन्तर सुखबीर सिंह बादल अपने चहेतों से जत्थेदार अकाल तख्त साहिब पर तनखाईया मुक्ति करने के लिए दबाव बनाते आ रहे हैं। हाल ही में उनके द्वारा दिया गया इस्तीफा भी मात्र एक ड्रामे से अधिक कुछ नहीं था क्योंकि जिस प्रकार उन्हांेेने वर्किंग कमेटी को इस्तीफा सौंपा उससे ही यह साफ हो गया था कि वर्किंग कमेटी में बैठे बलविन्दर सिंह भुन्दड़, दलजीत सिंह चीमा जैसे लोग जो उनके अंधभक्त हैं वह इस्तीफा मंजूर करेंगे ही नहीं। हालांकि क्यास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अगर सुखबीर सिंह बादल का इस्तीफा मंजूर हो भी जाता तो प्रधानगी की कुर्सी पर अपनी धर्मपत्नी हरसिमरत कौर बादल को बिठाया जाएगा क्योंकि बादल परिवार किसी भी सूरत में शिरोमिण अकाली दल से अपना कब्जा छोड़ना नहीं चाहता। शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार से अपील की है कि जत्थेदार साहिब सभी अकाली दलों को एकत्र कर मजबूती के साथ शिरोमणि अकाली दल के नए अध्यक्ष का चुनाव वोटिंग के माध्यम से करवाएं जिससे बिखर चुका शिरोमणि अकाली दल पुनः एकजुट होकर पंथ और पंजाब की खुशहाली और तरक्की के लिए कार्य करें।
सिन्धी भाईचारे को सिख मर्यादा समझाने की जरूरत
सिन्धी भाईचारा गुरु नानक देव जी को अपना ईष्ट मानते हुए उनकी अराधना करता आया है मगर कई बार देखने में आता है कि उनसे अन्जाने में कई तरह की भूल हो जाती है क्योंकि उन्हें सिख मर्यादा की जानकारी पूरी तरह से नहीं होती। ऐसे में सिखों का फर्ज बनता है कि उन्हें प्रेमपूर्वक मर्यादा की जानकारी दी जाये। हाल ही में महाराष्ट्र के उल्लास नगर से एक ऐसी ही घटना देखने को मिली जिसमें सिन्धी भाईचारे के लोगों के द्वारा गुरु नानक देव जी का स्वरूप बनाकर एक महिला को गुरु ग्रन्थ साहिब के बराबर बिठा दिया गया जबकि सिख मर्यादा के यह पूरी तरह से विपरीत है। सिख धर्म में किसी भी इन्सान को गुरुओं, पीरों का स्वरूप नहीं दिया जा सकता, यहां तक कि मूर्ति पूजा की भी मनाही है। इसकी वीिडयो सोशल मीिडया पर वायरल होने के बाद स्वयं को सिख कहलाते कई लोगों ने इसकी आड़ में अपनी पहुंच यूट्यूब पर बढ़ाने के लालच में तरह-तरह की प्रतिक्रिया देते हुए समूचे सिन्धी समाज को इसके लिए कसूरवार ठहरा दिया। अमृतवेला ट्रस्ट के रिंकू वीरजी जिनके माध्यम से आज लाखों गैर सिख लोग अमृत वेले उठकर गुरुबाणी पाठ करने लगे हैं, कई तो सिख भी सज चुके हैं, उन्हें भी इसके लिए दोषी माना गया। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी धर्म प्रचार के मुखी जसप्रीत सिंह करमसर की माने तो सिख प्रचारकों, रागी-ढाडी जत्थों की जिम्मेवारी बनती है कि वह उन इलाकों में जाकर जहां गैर सिख लोग खासकर सिन्धी भाईचारे को गुरु नानक के आदर्श और सिख मर्यादा की जानकारी दें तभी इस तरह के मामलों को रोका जा सकता है।
पंजाबी सिंगर से सिख प्रचारकों को सीख लेने की जरूरत
सिख जत्थेबंिदयों और सिख प्रचारकों का फर्ज बनता है कि गुरु साहिबान के उपदेशों का प्रचार करें। वास्तव में इन लोगों ने अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह बाखूबी किया होता तो शायद आज सिखी का ऐसा हश्र ना हुआ होता। आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि सिख समाज खासकर युवा वर्ग पूरी तरह से सिखी से दूर होता चला जा रहा है। सिख लड़कियां गुरसिख के बजाए गैर सिख लड़कों से शादियां करने की ज्यादा इच्छुक रहती हैं जिसके चलते यह तय है कि जब किसी सिख लड़की की शादी गैर सिख से हो गई तो उनकी अगली पीढ़ी सिख नहीं हो सकती। पहले समय में कहीं कोई एक आध व्यक्ति सिखी स्वरूप से निकलकर केशों की बेदबी करते या फिर उन नशों का सेवन करता दिखता था जिनकी सिख धर्म में पूर्णतः मनाही है। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने जब सिख धर्म की स्थापना की तो उन्होंने सिखी के कुछ असूल बनाए और साफ कहा था कि रहत प्यारी मुझको सिख प्यारा ना ही, अर्थात जो व्यक्ति सिख मर्यादा का पालन नहीं करता उसे सिख नहीं कहा जा सकता। यहां तक कि गुरु साहिब का घोड़ा भी उस स्थान से नहीं गुजरा जिसके नीचे तंबाकू की खेती की हो पर बहुत दुख होता है जब आज सिखी स्वरूप में सिख युवक, युवतियां खुलेआम हुक्का पीते हुए दिखाई देते हैं। कोई प्रचारक, कोई निहंग जत्थेबंदी इसके खिलाफ अभियान नहीं चला रही मगर वहीं मशहूर पंजाबी सिंगर जसबीर जस्सी जो कि एक परिवार के निजी कार्यक्रम में गाना गाने पहुंचे और वहां उन्होंने सिख युवाओं को दस्तार सजाकर हुक्का पीते देखा तो उन्होंने तुरन्त उन्हें रोका, मंच से समझाया और गुरबाणी की पंक्तियां भी सुनाई ‘‘पान सुपारी खादियां मुख बीड़ीयां लाईयां’’ भाव ऐसा करने वाला व्यक्ति सिख नहीं हो सकता। समाज सेवी गुरमीत सिंह बेदी का मानना है कि सिखी का प्रचार-प्रसार करते हुए जो व्यक्ति गलत रास्ते पर चलें उन्हें समझाकर सही रास्ता दिखाने का काम धार्मिक कमेटियांें का होता है, पर जब इनके अपने सदस्यों ने ही हुक्काबार खोले हों तो वह दूसरों को क्या ही समझायेंगे। उनका मानना है कि पहले हमें अपने घरों, रिश्तेदारों से इसकी शुरुआत करते हुए भूले-भटकों को सही मार्ग दिखाना होगा। जसबीर जस्सी की जितनी तारीफ की जाए कम है, नहीं तो गायक समझता कि मुझे क्या लेना वह गाना गाता, अपनी पेमेंट लेता और चलता बनता। इससे हमारी कौम के प्रचारों को शिक्षा लेनी चाहिए और अपनी जिम्मेवारी को निभाना चाहिए।
यूके में सिख को सम्मान
वैसे तो यूके में एक सिख पत्रकार को उसके द्वारा दी जा रही सेवाओं के लिए सम्मान मिला, पर इससे संसारभर में सिखों का सिर गर्व से ऊंचा हुआ है। इतिहास में पहली बार है जब कि किसी सिख का चित्र हाउस ऑफ लॉर्ड्स की गैलरी में प्रदर्शित किया जा रहा है। ब्रिटिश संसद के उच्च सदन में पहले सिख सांसद के रूप में यह मान्यता ब्रिटिश समाज, सिख समुदाय और अंतर-धार्मिक सद्भाव में उनके महत्वपूर्ण योगदान का प्रमाण है। ‘बैरन सिंह ऑफ विंबलडन’ की उपाधि प्राप्त करने वाले लॉर्ड इंद्रजीत सिंह को धार्मिक समुदायों के लिए उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित टेम्पलटन पुरस्कार और इंटरफेथ मेडल भी मिला है। लॉर्ड इंद्रजीत सिंह वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फेथ्स के संरक्षक और इंटर-फेथ नेटवर्क यूके की कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं। सिख मैसेंजर के संपादक के रूप में और बीबीसी रेडियो के दो विशेष कार्यक्रमों ‘थॉट फॉर द डे’ और ‘पॉज फॉर थॉट’ पर लॉर्ड सिंह की दैनिक प्रस्तुति में सिख मुद्दों को उठाने की भरपूर सराहना की जाती है।