वापिस लिए जा चुके तीनों कृषि कानूनों के विरोध में हुए किसान आंदोलन को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। इतने लम्बे आंदोलन के दौरान पूरे घटनाक्रम से राहगीरों से लेकर राजनेता तक वाकिफ हैं। तब हरियाणा की तरफ से दिल्ली की तरफ बढ़ रहे किसानों को रोकने के लिए सड़कें खुदवा दी गई थीं, सड़कों पर कीलें िबछवा दी गई थीं और कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा के बाद दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान अपने घरों को लौट गए थे और एक साल तक कुंडली बार्डर पर बसा किसानों का गांव खाली कर दिया गया था। तब किसानों ने अपना संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया था। तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेते समय केन्द्र सरकार की तरफ से किए गए वादे पूरे न किए जाने पर पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच का ऐलान किया तो हरियाणा सरकार ने शम्भू बार्डर पर उन्हें रोक दिया। राजमार्ग पर फिर दीवारें खड़ी कर दी गई। कंटीली तारें लगा दी गईं। किसान कोई किसी दूसरे देश की सेना के जवान तो नहीं हैं जिनसे दिल्ली पर हमला कर देने का कोई खतरा है। उन्होंने तो लोकतांत्रिक तरीके से दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा होकर अपनी मांगें रखने की अनुमति मांगी थी लेकिन हरियाणा सरकार ने उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिए बार्डर ही सील कर दिया। इसी वर्ष 12 फरवरी से किसानों ने वहीं अपना डेरा डाल दिया। कई दिन तक उन पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले बरसाये गए ताकि वे वापिस लौट जाएं। उस दौरान हरियाणा पुलिस की तरफ से गोलीबारी भी की गई जिसमें एक किसान की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही हरियाणा सरकार और किसानों में गतिरोध पैदा हो गया था। 6 महीने हो गए किसान भी डटे हुए हैं और बार्डर भी एक तरह से सील है।
स्थानीय प्रशासन किसानों को मनाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ। बार्डर सील किए जाने की वजह से हजारों लोगों को रोजाना मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। व्यापारियों और दुकानदारों की मुश्किलों का कोई अंत होता दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। तब अदालत ने राज्य सरकार से एक हफ्ते के भीतर अवरोधक हटाने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटाया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि शम्भू बार्डर से तुरन्त अवरोधक हटाए जाएं।
किसान भी देश के नागरिक हैं और उन्हें भी अपनी मांग रखने का अधिकार है। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि राजमार्गों को किसी भी रूप में रोका नहीं जाना चाहिए लेकिन किसानों से संवाद कायम करने की कोई कोशिश नहीं हुई। आंदोलन के चलते बार-बार सख्त पहरेदारी से लोग परेशान हैं। वैकल्पिक मार्गों से आने के लिए उनका काफी समय बर्बाद होता है। व्यापारियों काे नुक्सान हो रहा है लेकिन लोगों की परेशानी को कोई समझ नहीं रहा। दिल्ली के शाहीन बाग में हुए धरने के वक्त भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी व्यक्ति या समूह सार्वजनिक स्थानों को ब्लॉक नहीं कर सकता। किसी भी पब्लिक प्लैस पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता। विरोध-प्रदर्शन तय जगहों पर ही होना चाहिए। आंदोलनकारियों का सार्वजनिक जगहों पर प्रदर्शन लोगों के अधिकारों का हनन है और कानून इसकी इजाजत नहीं देता। शम्भू बार्डर पर डटे किसानों द्वारा रेल पटरियों पर धरने दिए जाने से पंजाब जाने वाली ट्रेनें कई दिन तक ठप्प रहीं या उनके रूट बदले गए जिससे रेलवे को करोड़ों का नुक्सान हुआ। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक शब्दों में कहा कि हाइवे पार्किंग के लिए नहीं है। पीठ ने वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, बीमार लोगों को ले जाने के लिए एम्बुलैंस गाड़ियों के जाने के लिए शम्भु बार्डर के दोनों तरफ की सड़क की एक-एक लेन खोलने का निर्देश देते हुए पंजाब और हरियाणा के पुलिस प्रमुखों को पटियाला, अम्बाला जिलों के पुलिस अधीक्षकों के साथ एक हफ्ते के अन्दर बैठक करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से प्रदर्शनकारी किसानों को सड़क से ट्रैक्टर हटाने के लिए राजी करने को भी कहा है। पंजाब आैर हरियाणा की सरकारों ने किसानों से बातचीत के लिए गैर राजनीतिक लोगों के नाम भी सुझाए हैं। गैर राजनीतिक लोग किसानों से बातचीत करेंगे और उन्हें जनता को हो रही परेशानियों के संबंध में अवगत कराएंगे। गैर राजनीतिक लोगों की बातें सुनकर सम्भव है िक किसान भी जनता की परेशानियों को समझेंगे और कोई न कोई समाधान निकालेंगे। शम्भू बार्डर खुलवाने के लिए अब संवाद की जरूरत है क्योंकि प्रशासन ने बल प्रयोग करके देख लिया। बल प्रयोग के परिणाम अक्सर नाकारात्मक होते हैं। बेहतर यही होगा कि बातचीत से मसले का हल निकाला जाए और इस मुद्दे पर अब राजनीति नहीं की जाए। उम्मीद है कि शम्भू बार्डर पर चल रहा संग्राम शांतिपूर्ण तरीके से खत्म हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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