संपादकीय

बड़े और छोटे देश भारत से चाहते हैं एफटीए

यूरोप और ब्रिटेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से लेकर ओमान और पेरू जैसी छोटी अर्थव्यवस्थाओं वाले कई देश भारत के तेजी से बढ़ते बाजार के कारण उसके साथ मुक्त व्यापार समझौता करना चाहते हैं

Aakash Chopra

यूरोप और ब्रिटेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से लेकर ओमान और पेरू जैसी छोटी अर्थव्यवस्थाओं वाले कई देश भारत के तेजी से बढ़ते बाजार के कारण उसके साथ मुक्त व्यापार समझौता करना चाहते हैं। भारत के साथ एफटीए करने से ये देश कम या बिना किसी आयात शुल्क के भारतीय बाजार तक पहुंच कायम कर सकते हैं। इससे उनकी कंपनियों को भारतीय बाजार में बिक्री करने में दूसरों के मुकाबले बढ़त मिलती है। भारत वर्तमान में अपना अधिकतर आयात (75 प्रतिशत से अधिक) उन देशों से करता है जिनके साथ उसका एफटीए नहीं है, इसलिए ये समझौते खासकर आकर्षक हैं क्योंकि वे भारत में महत्वपूर्ण नए बाजार अवसर प्रदान करते हैं। छोटी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश भारत के साथ एफटीए चाहते हैं। इसकी मुख्य वजह भारत का उच्च आयात शुल्क है, जिससे इन देशों के लिए भारत के बड़े और तेजी से बढ़ते बाजार तक पहुंच मुश्किल हो जाती है। विश्व में वर्तमान में 350 से अधिक ऐसे समझौते प्रभाव में हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान भारत ने मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ या ईएफटीए देशों स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिक्टनस्टाइन के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं।

भारत ने दुनिया के 25 देशों के साथ 14 व्यापार समझौते किए हैं और 50 से अधिक देशों के साथ नए समझौते करने की तैयारी में जुटा है जिनमें यूरोपीय संघ और अमेरिका की अगुआई वाला भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा भी शामिल हैं। भारत ने 26 देशों के साथ छोटे व्यापार समझौते भी किए हैं। भारत जल्द ही दुनिया के सभी बड़े देशों से एफटीए कर लेगा सिवाय चीन के। हालांकि, भारत और चीन एशिया-प्रशांत व्यापार समझौते के अंतर्गत शुल्क कार्यक्रम में सूचीबद्ध 25 प्रतिशत वस्तुओं पर शुल्कों में रियायत का लाभ ले रहे हैं।

वित्त वर्ष 2019 से लेकर वित्त वर्ष 2024 तक भारत से इसके 21 एफटीए साझेदारों को होने वाला निर्यात 107.20 अरब डॉलर से बढ़कर 122.72 अरब डॉलर हो गया। यह लगभग 14.48 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। आयात की बात करें तो यह 136.20 अरब डॉलर से 37.97 प्रतिशत बढ़कर 187.92 अरब डॉलर हो गया। भारत के इन एफटीए साझेदारों में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के छह देश (श्रीलंका सहित), दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के 10 देश, जापान, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात , मॉरीशस और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इन समझौतों के द्वारा पहलु यह भी है कि इनसे हमें वह लाभ नहीं हुआ जितनी की हम उम्मीद कर रहे थे। भारत का निर्यात बढ़ा लेकिन आयात उससे भी ज्यादा बढ़ा।

अब खबर है कि वाणिज्य विभाग एफटीए पर वार्ताओं को लेकर ‘नए दिशा-निर्देर्शों’ पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मांगेगा। ऐसी बातचीत के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर यानी एसओपी) को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ एक बैठक के बाद यह बात सामने आई है।

माना जा सकता है कि यह इस नजरिये को दिखाता है कि पिछले कई हस्ताक्षरित एफटीए में भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है क्योंकि साझेदार देशों से होने वाले निर्यात में कई बार भारत के निर्यात से अधिक तेजी से वृद्धि हुई है। एफटीए की प्रक्रिया की समीक्षा स्वागतयोग्य है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इन चर्चाओं के बाद तैयार किए जाने वाले एसओपी भारत को और अधिक संरक्षणवादी नहीं बनाएंगे। यह राजनीतिक निर्णय लेने वालों के लिए भी एक अवसर है कि वे अधिकारियों को देश के बढ़ते कारोबारी संपर्कों के महत्त्व के बारे में बताएं। एसओपी में यह क्षमता है कि वह अधिकारियों को कुछ राहत प्रदान करे और बातचीत के दौरान कुछ रियायतों का अवसर दे। बहरहाल इसके साथ इस बात के व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए कि भारतीय निर्यातकों को भी एफटीए से उतना ही लाभ हो जितना कि भारतीय उपभोक्ताओं को।

उद्योग जगत को यह दिखाने की आवश्यकता है कि एफटीए की बदौलत खुले नए बाजारों का लाभ किस प्रकार उठाया जाए। गैर टैरिफ अवरोध उन व्यापारिक संबंधों में अभी भी मौजूद हो सकते हैं जहां टैरिफ कम कर दिए गए हैं। इस चिंता को हल करने के लिए ऐसी गैर टैरिफ बाधाओं का एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए। इसे द्विपक्षीय ढंग से किया जा सकता है। आयात-​निर्यात के अंतर को पाटने के ​िलए उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देना भी जरूरी है। यद्यपि भारतीय कम्पनियों ने अब गुणवत्ता पर काफी ध्यान दिया है, फिर भी लोग इलैक्ट्रॉनिक्स और अन्य उत्पादों को लेकर विदेशी कम्पनियों पर भरोसा करते हैं। यदि अच्छी क्वालिटी के आैर लम्बे अर्से तक चलने वाले उत्पाद भारत में भी उपलब्ध होने लगें ​तो निश्चित रूप से उत्पादों का आयात घटेगा। मुक्त व्यापार समझौतों में ऐसी शर्तें व नियम होने चाहिएं जो व्यापार का अंतर पाट सके।