संपादकीय

कर्नाटक में फिर धर्मांधता !

Aditya Chopra

पूरे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा इस बात के लिए है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने के साथ ही कानून व संविधान से चलने वाला देश है। भारत के बारे में यह भी सुप्रचारित है कि इसमें सरकार किसी भी राजनैतिक दल की हो सकती है मगर शासन केवल 'संविधान' का ही होता है। अर्थात प्रत्येक राजनैतिक दल को अपनी सरकार संविधान के अनुसार ही चलानी पड़ती है। भारत का संविधान कहता है कि इसमें रहने वाले वयस्क स्त्री या पुरुष अपने मन का जीवन साथी चुन सकते हैं। इनके बीच न जाति आड़े आ सकती है और न धर्म। शर्त तो यही है कि दो इंसान अपने जीवन की गाड़ी खींचने के लिए मन पसन्द के स्त्री-पुरुष का चुनाव करते हैं। फिर चाहे वे हिन्दू हो सकते हैं या मुसलमान अथवा किसी भी जाति में उनका जन्म हो सकता है। मगर हिन्दू-मुसलमान को लेकर पूरे देश में मजहब का जो रंजिशी जुनून छाया हुआ है उससे यह लगता है कि भारत इंसानियत को छोड़ कर मजहबी मतांधता में डूबता जा रहा है।
भारतीय पहचान को कुछ लोग हिन्दू-मुसलमान में बांट देना चाहते हैं। पहला बुनियादी सवाल यह है कि क्या कोई व्यक्ति अपने भगवान या अल्लाह के यहां दरख्वास्त देकर जमीन पर पैदा होता है कि उसे हिन्दू या मुसलमान के घर पैदा किया जाये? मनुष्य के जन्म लेने की वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है और वह किसी हिन्दू या मुसलमान के घर पैदा हो जाता है। इस पर उसका कोई नियन्त्रण नहीं होता। इस प्रकार जिस घर में जो बच्चा पैदा हुआ वह उसी धर्म का कहलाने लगता है। मगर वह होता तो इंसान का बच्चा ही है। इंसान का विवाह या शादी भी इंसान से होगी तो फिर उसमें धर्म बीच में कहां से आ गया? मगर क्या कयामत बरपा हो रही है कि कर्नाटक में अन्तरधार्मिक विवाह करने वाले एक जोड़े को कुछ युवक होटल के कमरे में धर- दबोच लेते हैं और उसके साथ मारपीट करने के बाद 20 वर्ष की आयु की नवयोवना को अपहृत करके उसके साथ सामूहिक बलात्कार करके छोड़ देते हैं। एेसा सिर्फ इसलिए होता है कि उन दोनों के धर्म अलग-अलग हैं। कर्नाटक एेसे काम के लिए पहले से ही बदनाम है। पहले यह काम उत्तरी कर्नाटक में ज्यादा सुनने को मिलते थे मगर अब धुआं दक्षिणी कर्नाटक में भी उड़ने लगा है।
सवाल यह है कि यदि वे दोनों एक ही धर्म के होते तो क्या इंसान से अलग कुछ और होते? हर हालत में अलग-अलग धर्म का होने के बावजूद वे स्त्री और पुरुष ही थे। स्त्री और पुरुष आपस में विवाह करते हैं। लड़की यदि मुसलमान है और लड़का हिन्दू तो इससे दोनों का इंसानी रंग तो नहीं बदल जाता और न लड़की के हिन्दू होने और लड़के के मुसलमान होने से उन दोनों के इंसान होने पर कोई फर्क पड़ता है। भारत का संविधान कहता है कि हर वयस्क को अपने मन के अनुसार अपना ईश्वर या अल्लाह चुनने का अधिकार है अर्थात वह किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। हिन्दू यदि मुसलमान से विवाह करता है और मुसलमान हिन्दू से विवाह करता है तो इसमें धर्म के ठेकेदारों और समाज के कुछ लोगों को आपत्ति क्यों होती है? भारतीय संविधान में धर्म की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता है और अपने मनपसन्द के किसी भी साथी को चुनने की छूट है। किन्हीं भी दो स्त्री-पुरुष में कभी भी और कहीं भी मुहब्बत या प्रेम हो सकता है। उनके इस प्रेम पर दुनिया की कोई भी ताकत शिकंजा नहीं कस सकती। हर धर्म में प्रेम को ईश्वर प्रदत्त गुण समझा गया है। मुहब्बत के दो रूप होते हैं 'इश्क मिजाजी' और 'इश्क हकीकी'। सामान्य मनुष्य इश्क मिजाजी की मार्फत इश्क हकीकी को समझ पाता है। हिन्दी और उर्दू साहित्य एेसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। इसका मतलब यही है कि ईश्वर को पाने का एक रास्ता प्रेम भी है। मगर दुनियावी ख्याल में हम इस तरह देख सकते हैं कि किसी हिन्दू या मुस्लिम युवक या युवती का दूसरे धर्म के स्त्री या पुरुष से प्रेम हो जाने को जब भगवान या अल्लाह भी गलत नहीं मानता तो लोग क्यों बेकार में ही व्याकुल होते नजर आते हैं। स्त्री सबसे पहले स्त्री होती है। उसकी हिन्दू या मुस्लिम पहचान बाद की होती है। इसी प्रकार पुरुष, पहले पुरुष होता है। वह हिन्दू या मुसलमान विशिष्ट धर्म के परिवार में जन्म लेने की वजह से होता है।
यही वैज्ञानिक सोच है जिस पर ले जाने के लिए देश का संविधान सरकारों को तकीद करता है। मगर नाहक ही लव जिहाद और एक धर्मी विवाह की बातें धर्म गौरव से जोड़ दी जाती हैं। धर्म का स्त्री-पुरुष सम्बन्ध से क्या लेना-देना? भारत में 19वीं सदी तक कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम अन्तरधार्मिक विवाह खूब होते थे बशर्ते कि लड़का-लड़की दोनों कश्मीरी हों। इसी प्रकार मध्यकाल में शाहजहां के शासनकाल तक हिन्दू-मुस्लिम विवाह प्रचलित थे। अकबर के शासनकाल के पहले से भी समाज में यह रीति चालू थी जिसे जहांगीर के शासनकाल में सर्वाधिक लोकप्रियता मिली। मगर शाहजहां ने इस पर प्रतिबन्ध कट्टरपंथी मुल्लाओं के प्रभाव में आने के बाद लगा दिया। जबकि शाहजहां स्वयं एक हिन्दू बेगम का पुत्र था। भारत का इतिहास भी गजब का इतिहास है। औरंगजेब को छोड़ दीजिये तो हर मुगल शासक ने इसकी मिली-जुली संस्कृति को सम्मान दिया और अपने दरबार में होली-दिवाली तक के त्यौहार मनाये। हम आज सूर्य की परिधि चक्र में पहुंच कर उसके तात्विक गुणों का विश्लेषण कर रहे हैं और हिन्दू-मुसलमान विवाह पर शैतानियत का नंगा नाच कर रहे हैं। यह कौन सा मानवीय विकास है? मानवीय विकास वही है जिसमें किसी हिन्दू-मुसलमान को सबसे पहले इंसान समझा जाये।
''बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं 'इंसां' होना।''