संपादकीय

शरद पवार को निशाना बनाने से बच रही भाजपा

यह दिलचस्प तथ्य है कि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति का कोई भी दल या नेता महाराष्ट्र की राजनीति के अगुआ शरद पवार की आलोचना या उन पर हमला नहीं कर रहा है।

R R Jairath

यह दिलचस्प तथ्य है कि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति का कोई भी दल या नेता महाराष्ट्र की राजनीति के अगुआ शरद पवार की आलोचना या उन पर हमला नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं। मोदी का मुख्य निशाना कांग्रेस और फिर शिवसेना के उद्धव ठाकरे पर है। क्या यह 2019 के अभियान से मिले सबक की वजह से है, जब शरद पवार उस चुनाव की पहचान बन गए थे और जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया गया, उसके कारण उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली थी?

पांच साल पहले क्या हुआ था, इस पर गौर करें। चुनाव प्रचार के बीच में ईडी की एक टीम पवार के घर छापेमारी के लिए पहुंच गई थी। लेकिन पवार घबराये नहीं थे और टीम को अपने घर में आने की चुनौती दी। पवार के विद्रोही रुख के बाद ईडी के अधिकारियों को पीछे हटने को कहा गया और वे वापस लौट गये थे। इस घटना ने पवार के अभियान में नई जान फूंक दी। वे पूरे जोश में थे और चुनाव प्रचार के आखिरी दिन, सतारा में एक रैली में वे बिना छाते के भारी बारिश में खड़े होकर लोगों से एनसीपी को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे थे। यही वह क्षण था जब जनता का मूड बदल गया और हालांकि भाजपा-सेना (तब एकजुट) गठबंधन ने चुनाव जीत लिया, लेकिन पवार अपना जादू चलाने में सफल रहे और सरकार को उनसे छीन लिया। बाद में उन्होंने उद्धव को सीएम बनवाया लेकिन भाजपा गठबंधन ने बाद में सरकार बनाने में सफलता हासिल की।

चुनावों में महिला केंद्रित योजनाओं की भरमार

पिछले चुनावों की तरह इस बार भी महिलाएं चुनावी माहौल में छाई हुई हैं। 2023 की सर्दियों में मध्य प्रदेश में भाजपा के ऐतिहासिक चौथे कार्यकाल का मार्ग प्रशस्त करने में लाड़ली बहना योजना की सफलता के बाद, महाराष्ट्र और झारखंड दोनों में सत्तारूढ़ दलों ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए लगभग वैसे ही कार्यक्रम शुरू किए हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति की एकनाथ शिंदे सरकार ने इसे लड़की-बहिन योजना कहा है। झारखंड में, इंडिया ब्लॉक की हेमंत सोरेन सरकार ने इसे मैया योजना कहा है।

दोनों सरकारें अपने राज्यों में गरीब महिलाओं के खातों में हर महीने 1,000 से 1,500 रुपये तक की रकम डाल रही हैं। हालांकि, महाराष्ट्र में यह योजना मतदाताओं के संदेह के कारण विवादों में आ गई है, जो इसे सिर्फ़ चुनावों के लिए वोट बटोरने वाली मुफ्त योजना के रूप में देखते हैं। कई महिलाओं ने खुले तौर पर अपनी आशंका जताई है कि महायुति के सत्ता में वापस आने के बाद यह योजना बंद कर दी जाएगी। संदेह इतना ज़्यादा है कि शिंदे को यह वादा करने पर मजबूर होना पड़ा कि यह योजना जारी रहेगी और कभी बंद नहीं होगी। और भाजपा सांसद धनंजय महादिक ने कोल्हापुर में एक रैली में मतदाताओं को धमकाया कि जो लोग महायुति को वोट नहीं देंगे, उनका नाम लड़की-बहिन योजना के लाभार्थियों की सूची से हटा दिया जाएगा।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की लाड़ली बहन योजना की सफलता और मौजूदा चुनावी प्रस्तावों में बहुत बड़ा अंतर है। चौहान ने पिछले कई सालों में महिलाओं के बीच एक खास वर्ग तैयार किया था, इसलिए उनके कार्यक्रम को महिला मतदाताओं तक उनकी पहुंच के रूप में देखा गया। उन्होंने इसे चुनावी मुफ्त योजना नहीं माना। ऐसा लगता है कि चुनाव जीतने के लिए चौहान की नकल करने की कोशिश करने से पहले शिंदे और सोरेन ने इसका गहन अध्ययन नहीं किया और घोषणाएं कर दी।

भगत सिंह को ‘नायक’ नहीं मानता पाकिस्तान

लाहौर मेट्रोपॉलिटन कॉरपोरेशन द्वारा शहर के शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह के नाम पर रखने का प्रस्ताव हाल ही में सेवानिवृत्त कमोडोर तारिक मजीद के विरोध के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। उन्होंने कहा कि क्रांतिकारी नायक की स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी। सेवानिवृत्त कमोडोर खुद को "राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों का विश्लेषक बताते हैं जो पाकिस्तान की विचारधारा, सुरक्षा और संप्रभुता के लिए हानिकारक मुद्दों को उजागर करने के लिए समर्पित हैं। उन्होंने मैट्रोपॉलिटन कॉरपोरेशन को एक कड़ा पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अपनी कई आपत्तियों को सूचीबद्ध किया जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि भगत सिंह नास्तिक थे और इसलिए पाकिस्तान की विचारधारा के दुश्मन थे। दिलचस्प बात यह है कि भगत सिंह को सम्मानित करने का प्रस्ताव लाहौर मेट्रोपॉलिटन कॉरपोरेशन की ओर से ही आया था और इसे खुद को भगत सिंह मैमोरियल फाउंडेशन कहने वाले एक संगठन ने समर्थन दिया था। मामला नियंत्रण से बाहर हो गया और लाहौर की अदालत में पहुंचा, जिसने गेंद को महानगर निगम के पाले में फेंक दिया। मजीद अब भगत सिंह फाउंडेशन पर प्रतिबंध लगवाने पर आमादा है।

ट्रंप के कदम से खुल सकते हैं हसीना के लिये बांग्लादेश के दरवाजे

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक्स पर एक ट्वीट किया, जिससे नई दिल्ली के सत्ता गलियारों में बैठे लोगों के दिल खुश हो जाने चाहिए। अपने ट्वीट में उन्होंने चिंता जताई कि बांग्लादेश में लोगों को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने ट्रंप का समर्थन किया है। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि शेख हसीना की अनुपस्थिति में बांग्लादेश कहां जा रहा है।'' इस ट्वीट को ट्रंप प्रशासन की बांग्लादेश नीति के संकेत के रूप में देखा जा रहा है और यह स्पष्ट रूप से उस देश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थन में है।

भारत इस बात को लेकर असमंजस में है कि नई दिल्ली में हसीना की मौजूदगी को कैसे संभाला जाए। मौजूदा ढाका प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि वे उन्हें शरण देने के भारत के फैसले को शत्रुतापूर्ण कदम मानते हैं। लेकिन अब जब ट्रम्प खुलकर हसीना के पक्ष में आ गए हैं, तो शायद भारत को इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि जनवरी 2025 में ट्रम्प के सत्ता संभालने के बाद क्या घटनाक्रम सामने आते हैं।