संपादकीय

भाजपा जानती है गठबंधन सरकार का धर्म

Rahul Kumar Rawat

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने रविवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद अपना कामकाज संभाल लिया है। यह पहली बार नहीं है जब भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेगी। वास्तव में भाजपा की पहली सरकार जो 1996 में गठित हुई थी, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक गठबंधन की सफल प्रयोग वाली सरकार थी। भले ही वह केवल 13 दिनों तक चली। अटल जी 1998 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में पुनः वापस आए थे। इसलिए यह कहना सरासर गलत होगा कि भाजपा को गठबंधन सरकारों का नेतृत्व करने का अनुभव नहीं है। भाजपा को 2014 में 283 और 2019 में 303 सीटें मिली थीं। उन जीतों में मोदी जी की सबसे अहम भूमिका रही थी लेकिन पूर्ण बहुमत के बाद भी मोदी जी ने गठबंधन का धर्म निभाया। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 240 सीटें जीतीं -बहुमत से 32 कम। यह तय मानिए कि जो विकास का पहिया 2014 में घूमना शुरू हुआ था वह अब गठबंधन सरकार के दौर में भी आगे बढ़ता ही रहेगा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में 14 पार्टियां शामिल हैं। उसमें भाजपा को 240 सीटों पर विजय मिली और शेष 53 सीटें हासिल कीं उसके सहयोगी दलों ने।

अगर हम गुजरे दौर के पन्नों को खंगाले तो पता चलेगा कि भारत में सबसे पहले 1977-1979 गठबंधन सरकार बनी थी। कांग्रेस के 1977 में चुनाव हारने के बाद जनता पार्टी की सरकार देश में बनी थी। 1977 के चुनाव प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल की स्थिति लागू करने के लगभग दो साल बाद हुए थे। श्रीमती गांधी ने आपातकाल हटा दिया और जनवरी 1977 में अचानक चुनावों की घोषणा की। श्रीमती गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी को जनता पार्टी नामक कई पार्टियों के एक गठबंधन द्वारा हराया गया था, जिसमें भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ शामिल थी। जनता पार्टी को देश की जनता का भरपूर आशीर्वाद मिला था। उस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे। उस सरकार में बाबू जगजीवन राम, हेमवती नंदन बहुगुणा, जॉर्ज फर्नांडीज जैसे जननेता भी शामिल थे। बहरहाल, जनता पार्टी की उस चुनाव में जीत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार दो साल तक चली। उसके बाद वैचारिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी बिखर गई। मोरारजी देसाई सरकार में गृहमंत्री चरण सिंह को कैबिनेट से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। संयोग देखिए कि अब चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी उस एनडीए सरकार का हिस्सा हैं जिसके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं।

बहरहाल, चरण सिंह 1979 में जनता पार्टी के बिखरे हुए समूहों के समर्थन और कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने लेकिन चरण सिंह का प्रधानमंत्री का कार्यकाल केवल 23 दिनों तक चला क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे चरण सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस स्थिति के कारण देश में लोकसभा भंग करने के बाद 1980 में फिर चुनाव हुआ। इस बार इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गईं, जब कांग्रेस ने 353 सीटें जीतीं। लोकसभा के 1989 के चुनाव परिणाम भारत के लिए एक नये दौर को लेकर आए। यह पहली बार था जब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा 529 सीटों में से 197 जीतने के बाद किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं किया था। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह 1989 में भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 1990 में गिर गई जब भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया , जब उस समय के सबसे बड़े नेता लाल कृष्ण अडवानी को अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए आयोजित उनकी यात्रा के दौरान गिरफ्तार किया गया था। 1989 से 2004 तक छह आम चुनावों में एक भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। इनमें से कुछ गठबंधन विशेष रूप से अराजक रहे। 1989 और 1999 के बीच आठ गठबंधन बनाए गए और कई जल्दी ही ढह गए। इस बीच ये मानना होगा कि भारत के कुछ सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकारों के समय ही आए।

अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के दिग्गज नेताओं में से एक रहे जिन्होंने 1998 से 2004 तक एक सफल बहु-पार्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत में विदेशी निवेश बढ़ा, एक्सप्रैस-वे का निर्माण तेज हुआ, व्यापार बाधाओं को कम किया गया और देश में आईटी क्रांति का जन्म हुआ। उनके ही दौर में देश ने पोखरण का परमाणु परीक्षण किया, पाकिस्तान के साथ तनाव को कम किया और अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और अतीत में सफल अल्पसंख्यक सरकारें और भी कम सीटों के साथ चलाई गई हैं। कांग्रेस 1991 में 232 सीटों के साथ और 2004 और 2009 में केवल 145 और 206 सीटों के साथ एक सफल अल्पसंख्यक सरकार चलाने में सक्षम कोशिश की थी । मैं मानता हूं कि मोदी जी जनता दल के नेता नीतीश कुमार और तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू जैसे तपे हुए नेताओं के सहयोग से देश को एक मेहनती और ईमानदार गठबंधन सरकार देने में सफल रहेंगे। उन्हें अपनी पार्टी के अनेक अनुभवी नेताओं का समर्थन और सहयोग तो मिलेगा ही।

अब लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में सरकार गठित हो गई है। अब इंडिया गठबंधन को रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी होगी। उन्हें हर बात पर सरकार को कोसना छोड़ना होगा। रोज़ विधवा विलाप करने की आदत छोड़नी होगी। आप चुनाव प्राचर के समय तो कुछ भी बोलते हैं, पर चुनाव नतीजों के आने के बाद आपको अपनी बयानबाजी सोच-समझकर करनी होती है। हां, विपक्ष को सरकार को राष्ट्र हित के मसलों पर सजग करते रहना होगा। लोकतंत्र में वाद, विवाद, संवाद लगातार जारी रहना चाहिए। इसके बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है। इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिल कर देश को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में बढ़ना होगा। संसद के दोनों सदनों में भी स्वस्थ और सार्थक बहसें हो, यह देश देखना चाहता है। संसद में हंगामा और वॉक आउट ही नहीं होना चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के पुराण पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी को गठबंधन सरकारों को चलाते हुए देखा है। बेशक, वे गठबंधन सरकार को चलाते हुए अटल जी के फैसलों से प्रेरित होंगे।