संपादकीय

भाजपा मुस्लिम का दिल जीते, मुस्लिम भाजपा का !

Shera Rajput

ऐसा समझा जाता है कि भाजपा और मुसलमानों के बीच 36 का आंकड़ा है। असल में ऐसा कुछ नहीं है सिवाय इसके कि ये दोनों आपसी मध्यस्थता या कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर आज तक मेज़ के आमन-सामने नहीं बैठे। वास्तव में इन दोनों घटकों को एक-दूसरे से गलतफहमी के तहत रंजिशें हैं, जिनका निवारण किया जा सकता है और बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था, मगर अब तक ऐसा नहीं हुआ है। भारत जैसे लोकतंत्र में यह बात बड़ी महत्वपूर्ण होती है कि समाज के सभी तबकों के साथ बराबरी का सुलूक किया जाता है, जिसमें धर्म, जाति, रंगभेद, अमीरी-ग़रीबी आदि के कोई मायने नहीं होते और कानून की निगाह में सभी बराबर होते हैं।
मगर जहां तक मुस्लिमों और भाजपा संबंधों की बात है, सब कुछ ठीक नहीं है। देखते हैं, मुसलमानों को भाजपा और संघ से क्या आपत्ति है। पिछले दिनों, इलेक्शन के दौरान भाजपा के कई अग्रज नेताओं द्वारा मुस्लिम संप्रदाय के संबंध में कई अभद्र टिप्पणियां की गईं जैसे यह क़ौम गज़वा-ए-हिंद आदि लाएगी। भारत का मुसलमान इन लंपटवादी बातों को सुन कर ऊब चुका है, उसके कान पाक गए हैं, क्योंकि भले ही वह भाजपा को वोट न देता हो, संघ की विचारधारा पर न चलता हो, वह पक्का राष्ट्रवादी, संस्कारवादी और देशभक्त होता है, जिसका कारण है कि इस्लाम धर्म उसे इस बात की सीख देता है, "हब्बूल वतनी, निस्फुल ईमान", अर्थात एक मुसलमान के लिए वतन से मुहब्बत ही उसका आधा ईमान है, बल्कि पूरा ही ईमान है।
भाजपा को मुस्लिम तबके से यह शिकायत है कि वे अपने अतिवादी व उग्र नेताओं के कहने में चलते हैं। ये नेता टीवी पर जाकर जिस प्रकार से मुसलमानों के ठेकेदार बन कर भारत, भाजपा और मोदी के विरुद्ध ज़हर उगलते हैं और देश में वैमनस्य फैलाते हैं और सांप्रदायिकता की आग लगाने की कोशिश में रहते हैं। मुस्लिम कौम की भलाई में सरकार चाहे तीन तलाक को समाप्त करे, 370, 35ए का खात्मा करे, ये स्वयंभू मुस्लिम नेता अपने तबके को बहलाते, फुसलाते, भटकाते और भड़काते रहते हैं। इससे मुसलमानों को ज़बरदस्त नुक्सान हो रहा है, क्योंकि दुनिया समझती है कि जब इनके नेता ऐसे हैं तो इनकी क़ौम भी ऐसी ही होगी। एक आम मुस्लिम शहीद ग्रेनेडियर अब्दुल हमीद हों, ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान हों, जाकिर नगर के कैप्टेन जावेद हों या कोई भी मुसलमान हो, सभी भारत माता के सच्चे सपूत रहे हैं।
हां, मुस्लिमों को इस बात का भी रोष है कि सरकार वक्फ बिल ला कर उनकी संपत्ति जायदाद, मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, दरगाहों, खानकाहों आदि पर कब्ज़ा करना चाह रही है जो कि पूरी तरह से भ्रामक और गलत है। मुसलमान को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि सरकार की सहायता से कब्जाई वक्फ बोर्ड की जमीन उसे वापिस दी जाए। भारत की लगभग 65 प्रतिशत ज़मीन वक्फ बोर्ड की है। वक्फ बोर्ड की समस्या के संबंध में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दल और विपक्षी दल शामिल हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के नेतृत्व में और जमीयत उलमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामी हिंद के साथ मिलकर प्रतिनिधियों ने तेलगू देशम पार्टी, जनता दल (यू), शिवसेना (यूबीटी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) के नेताओं के साथ बैठकें की हैं, इसके अलावा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ भी बैठक की है। इसका उद्देश्य विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ उनका समर्थन सुनिश्चित करना है।
दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिम संगठनों ने भाजपा के सहयोगी दलों जेडी (यू) और टीडीपी से भी मुलाकात की है, जिन्होंने शुरू में संसद में विधेयक का समर्थन किया था, हालांकि जल्द ही उनके अलग-अलग विचार सार्वजनिक हो गए। इस संबंध में एआईएमपीएलबी के एक प्रतिनिधिमंडल ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की और विधेयक पर एक ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्तावित पांच साल की अवधि पर विशेष आपत्ति जताई, जिसके बाद कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है।
मौजूदा हालात में भाजपा सरकार को संघ और सरकार को समर्पित मुसलमानों पर भरोसा कर उन्हें जिम्मेदारियां देनी चाहिए और आगे बढ़ाना चाहिए और मुस्लिमों को मिलकर भारत माता की सेवा करते हुए अखंडता और एकता के लिए जुट जाना चाहिए।

– फ़िरोज़ बख्त अहमद