ओवर द टॉक यानि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर आजकल वैब सीरीज ने तहलका मचाया हुआ है। कुछ वैबसीरिज का कटेंट तो आम जिन्दगी से जुड़े विषयों पर आधारित है लेकिन अधिकतर वैबसीरीज तो केवल अश्लीलता, हिंसा और गाली-गलौच ही परोस रहे हैं। जिस तरह की सामग्री ओटीटी पर परोसी जा रही है उसे लेकर कई बार विवाद भी गहरे चुके हैं। कई वैबसीरीज धार्मिक भावनाओं को आहत करते दिखाई दे रहे हैं तो कई हिंसा और क्रूरता को प्रोत्साहित करते दिखाई दे रहे हैं। इस तरह का प्रस्तुतिकरण इसके समान है कि एक व्यक्ति एक रिहायशी कालोनी में इस आधर पर कचरा फैलाता है कि कालोनी में पहले से ही बहुत गन्दगी है। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की तो पहले ही बाढ़ है और अब ओटीटी दिन-रात अश्लीलता की गंदगी फैला रहा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ओटीटी पर अश्लीलता परोस रहे 18 प्लेटफार्म्स को ब्लॉक कर दिया है। उनके सम्बन्धित 19 वैबसाइट, 10 एप और 57 सोशल मीडिया हैंडल पर भी कार्रवाई की गई है। यह एक्शन आईटी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व अधिनियम सहित कई कानूनों के उल्लंघन के आधार पर लिया गया है।
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर बार-बार क्रिएटिव लिबर्टी की आड़ में अश्लीलता, आपत्तिजनक और दुर्व्यवहार का प्रचार न करने के लिए प्लेटफार्म की जिम्मेदारी पर जोर देते रहे हैं। सरकार बार-बार यह कहती है कि आईटी नियम 2021 के तहत ओटीटी प्लेटफार्मों को स्व-नियमन यानि सैल्फ रैगूलेशन पर जोर देना चाहिए लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म्स सारी हदें पार कर रहे हैं। देश में फिल्मों के लिए सैंसर बोर्ड है लेकिन ओटीटी प्लेटफार्मों के पास स्ट्रीम की गई सामग्री को नियंत्रित करने के लिए कोई नियामक संस्था नहीं है। ओटीटी सेवाएं दर्शकों को सीधे इंटरनेट के माध्यम से प्रदान की जाती हैं और सरकार ऐसे प्लेटफार्म को माध्यम मानती है जहां वे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकते। हालांकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ओटीटी कम्पनियों के लिए दिशा-निर्देश जारी कर रखे हैं लेकिन वह भी ज्यादा ठोस नहीं लगते। पहले कानून की जरूरत महसूस नहीं होती थी लेकिन वर्तमान स्थिति में एक ऐसी संस्था की जरूरत महसूस की जा रही है जो ओटीटी प्लेटफार्मों द्वारा प्रदान की जाने वाली सामग्री काे नियंत्रित करे। ब्रिटेन, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, तुर्की, सऊदी अरब और कुछ अन्य देशों में ओटीटी प्लेटफार्मों को किसी भी सार्वजनिक सेवा प्रसारक की तरह जांच का सामना करना पड़ता है। ओटीटी पर सैंसरशिप को लेकर समाज में भी अलग-अलग विचार सामने आते रहे हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, 57 प्रतिशत लोग (लगभग 1005), ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के लिए आंशिक सेंसरशिप का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्लेटफॉर्म पर बहुत सारी आपत्तिजनक सामग्री यानी जनता के देखने के लिए अनुपयुक्त सामग्री डाली जाती है। सेंसरशिप का समर्थन करने वाले अधिकांश लोग 40 वर्ष से अधिक आयु के वयस्क हैं। हालांकि, इस तरह की सेंसरशिप के खिलाफ सबसे मजबूत तर्क यह है कि ओटीटी प्लेटफार्मों पर सामग्री सब्सक्रिप्शन ऑन डिमांड है, जहां दर्शकों के पास भुगतान करने और क्या देखना है यह चुनने का विकल्प होता है। इसके अलावा, फिल्मों की चोरी एक और कारक है जिसके कारण फिल्म निर्माता ओटीटी का रास्ता अपनाते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे कलाकार हैं जिनके पास सिनेमा के माध्यम से अपने रचनात्मक विचारों को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, ओटीटी उनके लिए एक बड़ी सफलता के रूप में आया है। शायद यह मनोरंजक कहानी बनाने के लिए एक योग्य आधार प्रदान करता है और यही कारण है कि अधिकांश दर्शक ऐसे प्लेटफार्मों द्वारा प्रदान की जाने वाली सामग्री की ओर आकर्षित होते हैं। वे राजनीतिक दलों की भागीदारी से निडर हैं और इसलिए साहसिक आख्यान और कथानक प्रस्तुत करते हैं। वे विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को चित्रित करते हैं जो किसी न किसी कारण से मुख्यधारा के सिनेमा में शामिल नहीं हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म किस तरह से लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने, उनके विचारों प्रभावित करने और कंपनियों के उत्पादों की खरीदारी बढ़ाने के लिए उनकी रुचि बदलने के लिए किस हद तक पहुंच चुके हैं, यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। यही काम अब ओटीटी प्लेटफार्म भी करते नजर आ रहे हैं। ओटीटी प्लेटफार्म के दर्शकों में भारी वृद्धि हो रही है और यह प्लेटफार्म निरंतर प्रगति कर रहे उद्योग का रूप ले चुका है। सवाल यह भी है कि जनता क्या पहनेगी, क्या खाएगी, क्या देखेगी इस संबंध में फैसले सरकार नहीं ले सकती लेकिन देश की संस्कृति और संस्कारों को बचाए रखने के लिए कहीं न कहीं तो अंकुश लगाना ही पड़ेगा। अश्लील, अनैतिक और महिलाओं को आपत्तिजनक ढंग से पेश करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की जरूरत है। वर्तमान परिदृश्य में यह साफ है कि इंटरनेट सामग्री स्ट्रीमिंग के स्व-नियामक निकाय द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसलिए ऐसे नियमों की जरूरत है जो लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखें और एक स्वस्थ तंत्र कायम हो सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com