लोकतन्त्र किसी भी परिस्थिति में न गूंगा होता है और न बहरा होता है। संसद से लेकर सड़क तक 24 घंटे यह स्वरों से प्रस्फुटित होता रहता है। यह कार्य इस प्रणाली में विपक्ष ही करता है। समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया मानते थे कि जब 'संसद गूंगी हो जाती है तो सड़कें आवारा हो जाती हैं'। अतः लोकतन्त्र में किसी भी सूरत में कभी भी संसद गूंगी नहीं होनी चाहिए मगर इसके लिए जरूरी है कि विपक्ष मजबूत हो। यदि इस तरफ देश के 28 विपक्षी दल मिल कर एक मजबूत गठबन्धन 'इंडिया' बनाते हैं तो इसका लोकतन्त्र में केवल स्वागत ही किया जा सकता है। बेशक हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में केवल एक राज्य में ही विपक्ष के सबसे बड़े और राष्ट्रीय दल कांग्रेस को सफलता मिल पाई है मगर इससे यह तो सिद्ध होता ही है कि भारत राजनीति में भी विविधता वाला देश है और इसके लोग क्षेत्रवार अपनी वरीयता बताते रहते हैं। यह इंडिया गठबन्धन लगभग छह महीने पहले बना था और इसके बाद पांच राज्यों के चुनाव आ गये। इन राज्यों में केवल कांग्रेस को ही सत्ताधारी भाजपा से मुकाबला करना था। कांग्रेस गठबन्धन का सबसे बड़ा और एकमात्र राष्ट्रीय दल भी है अतः इसकी सारी शक्ति इन चुनावों में लगनी वाजिब थी। अब लोकसभा चुनावों में चार महीने का समय शेष रह गया है। अतः सभी दलों को इकट्ठा होकर अब अपनी शक्ति को समेकित करके इन चुनावों में लगाने की सोचनी चाहिए। इस तरफ जितनी जल्दी रणनीतिक तरीके से काम होगा गठबन्धन उतना ही मजबूत बन कर उभरेगा। इसके साथ ही राजनैतिक दलों को भारत के मतदाताओं की बुद्धिमत्ता व सजगता पर पूरा भरोसा रखना होगा क्योंकि भारत के मतदाता हर चुनाव की अहमियत के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। 1967 तक इस देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। इस वर्ष नौ राज्यों में कांग्रेस पार्टी बहुमत से दूर रह गई थी मगर केन्द्र की लोकसभा में उसे पूर्ण बहुमत देने में मतदाताओं ने कोताही नहीं बरती थी। हाल के वर्षों में हमने देखा कि दिल्ली जैसे अर्ध राज्य में पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को राज्य की सात में से सात सीटों पर विजय मिली मगर इसके बाद विधानसभा चुनावों में इन्हीं मतदाताओं ने भाजपा को 'उल्टे घड़े से पानी पिला दिया'। इसकी वजह यही होती है कि राज्यों और राष्ट्र के चुनाव के मुद्दे अलग-अलग होते हैं।
आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला 'इंडिया गठबन्धन' से ही होगा। भाजपा का विमर्श और विचार देशवासियों के सामने स्पष्ट है जो कि हिन्दुत्व के आधार पर राष्ट्रवाद का है। अतः इंडिया गठबन्धन को निश्चित रूप से इसके विरुद्ध कोई एेसा विमर्श और विचार लोगों को देना होगा जिसमें आम मतदाता की रुचि जागृत हो सके और वह प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की निजी लोकप्रियता के सामने इंडिया के विमर्श को रखकर तोल सके। इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत में चुनाव प्रचार का तरीका अब बदल चुका है और सूचना प्रौद्योगिकी का इस क्षेत्र में जम कर प्रयोग होने लगा है। अतः विपक्ष को इन प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक प्रयोग इस हद तक करना पड़ेगा कि वह आम मतदाताओं के बीच विशेष कर युवा व महिला वर्ग के बीच श्री मोदी की लोकप्रियता के समकक्ष अपने विमर्श को लोकप्रिय बना सके। पांच राज्यों के चुनावों में इस मोर्चे पर कांग्रेस बुरी तरह हारी है। जिस जातिगत जनगणना के बूते पर श्री राहुल गांधी भाजपा के हिन्दुत्व आधार में सेंध लगाना चाहते थे वह सफल नहीं हो सका है। इसकी मूल वजह श्री नरेन्द्र मोदी का अमीर-गरीब की जाति का विमर्श रहा। आश्चर्यजनक रूप से यह अमीर-गरीब का विमर्श भाजपा के सिद्धान्त से मेल न खाकर मार्क्सवाद के सिद्धान्त से मेल खाता है मगर श्री मोदी की यह विशेषता है कि वह सामाजिक विमर्श खड़ा करने में किसी विशिष्ट वाद के चक्कर में नहीं पड़ते हैं और भारत के लोगों के मिजाज मुताबिक अपना विमर्श स्वयं गढ़ते हैं। उनकी यही खूबी है जिसे स्व. राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने पकड़ा था और जिसका उल्लेख उनकी पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता के बारे में हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक में किया है। अतः इंडिया गठबन्धन में बेशक भारत की सभी दिशाओं उत्तर से लेकर दक्षिण व पूर्व से लेकर पश्चिम तक के राज्यों के क्षेत्रीय दलों का प्रतिनिधित्व हो मगर श्री मोदी के इस गुण की काट खोजना उसके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है। इसके बावजूद 'भारत का लोकतन्त्र शोर-शराबे का लोकतन्त्र है'। यह कहना भाजपा के ही स्वर्गीय नेता श्री अरुण जेतली का था जो उन्होंने अमेरिका में जाकर एक संगोष्ठी में कहा था। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि भारत में किसी सफल विमर्श के लिए शोर-शराबा करना भी एक शर्त होती है। शोर- शराबे से ही भारत में सत्ता-बदल भी हो जाता है। इसका प्रमाण 2014 के लोकसभा चुनाव माने जा सकते हैं जब भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों की गूंज संसद से लेकर सड़क तक हुई मगर जब इन सभी मामलों की न्यायिक जांच हुई तो 'ढाक के तीन पात' निकले। मगर जो होना था हो गया और कांग्रेस पार्टी की इतनी जबर्दस्त हार हुई कि लोकसभा में इसकी 209 सीटें घट कर मात्र 44 रह गईं। इस सबके बरतरफ इंडिया गठबन्धन को श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का मुकाबला करना होगा क्योंकि उसके पास उनकी टक्कर का एक भी नेता नहीं है। बेशक ममता दीदी ने कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम गठबन्धन के प्रधानमन्त्री प्रत्याशी के रूप में चलाया है मगर इसमें बहुत सारे पेंच हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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