संपादकीय

‘आधी आबादी’ के आरक्षण का दाव

Aditya Chopra

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में इतिहास बदलने की क्षमता भी है और इच्छा शक्ति भी है। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा ही दृढ़शक्ति का परिचय दिया है। नरेन्द्र मोदी हमेशा राजनीतिक धुरंधरों और देशवासियों को चौंकाते रहे हैं। इस बार भी उन्होंने ऐसा मास्टर स्ट्रोक लगाया है कि सभी हैरान रह गए हैं। नई संसद में विशेष सत्र शुरू होते ही मोदी सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पेश कर दिया है। अब इसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से लोकसभा में पेश किया गया है। इस विधेयक का लम्बे अर्से से इंतजार किया जा रहा था। पिछले कुछ सालों से चुनावों में महिला मतदाताओं का प्रतिशत पुरुषों से कहीं ज्यादा रहा है। मोदी सरकार ने देश की आधी आबादी को हक दिलाने का ऐसा दाव खेला है जो बड़ों-बड़ों को चित्त कर देगा।

विशेष सत्र से पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कई दलों ने महिला आरक्षण विधेयक लाने और उसे पारित करने की जोरदार वकालत की है लेकिन सरकार की तरफ से कहा गया है कि उचित समय पर उचित निर्णय लिया जाएगा। लगभग 27 सालों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा जरूर हुई। क्योंकि यह विधेयक संविधान संशोधन विधेयक है। इसलिए यह इतना आसान भी नहीं है। मूल प्रश्न यह है कि यह विधेयक पारित होते ही संसद का पूरा स्वरूप ही बदल जाएगा। भाजपा और कांग्रेस ने हमेशा इस विधेयक का समर्थन किया। हालांकि कुछ अन्य दलों ने महिला कोटा के भीतर ओबीसी आरक्षण की कुछ मांगों को लेकर इसका विरोध किया। इस मुद्दे पर आखिरी बार कदम 2010 में उठाया गया था। जब मनमोहन सिंह शासन के दौरान राज्यसभा ने हंगामे के बीच इस बिल को पारित कर दिया था और मार्शलों ने कुछ सांसदों को बाहर कर दिया था जिन्होंने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का विरोध किया था। हालांकि यह विधेयक रद्द हो गया क्योंकि यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका। 2008 से पहले इस बिल को 1996, 1998, 1999 में पेश किया गया था।

गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और सात सिफारिशें की थी। तब से यह बिल लटका ही पड़ा है। 2010 में जब यह विधेयक राज्यसभा में पारित किया गया था तब समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, राजग के लालू प्रसाद यादव के कड़े ​विरोध के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सक तब कई नेताओं ने विधेयक में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के लिए कोटा के भीतर कोटा की मांग की थी। इससे पहले 1993 में संविधान में 73वां और 74वां संशोधन किया गया था जिसमें पंचायत और नगरीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई थी। इसके अलावा देश के कम से कम 20 राज्यों में पंचायत स्तर पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। वर्तमान में 70वीं लोकसभा में केवल 15 प्रतिशत महिला सांसद हैं और राज्यसभा में सिर्फ 12.2 प्रतिशत महिला सांसद हैं। यह वैश्विक औसत से 25.5 प्रतिशत से काफी कम है। महिला आरक्षण विधेयक को लेकर विरोधियों का मानना है कि इससे केवल शहरी महिलाओं को फायदा होगा और इससे ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी नहीं हो पाएगी। 1998 में जब संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश ​ किया गया था तब जहानाबाद के राजद सांसद सुरेन्द्र यादव इतने गुस्से में थे कि उन्होंने तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृृष्ण अडवाणी के हाथों से बिल की कापी लेकर फाड़ दी थी।

लोकसभा में सांसदों की संख्या 543 है। वहीं महिला सांसदों की संख्या 78 है, इसका मतलब लगभग 14 प्रतिशत महिला सांसद हैं। जबकि राज्यसभा में 250 में से 32 सांसद ही महिला हैं यानी 11प्रतिशत हैं। वहीं मोदी सरकार में महिलाओं की हिस्सेदारी 5प्रतिशत के आसपास है। अगर ये विधेयक लागू हो जाता है तो लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 181 तक हो जायेगी। महिला आरक्षण समर्थकों का कहना है कि अगर महिलाओं को संसद में पुरुषों के बराबरी का स्थान मिल जाता है तो विश्व में भारत की छवि बेहतर हो जाएगी। हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है। इस विधेयक के फायदों पर गौर करें तो इससे भारत की महिलाएं ज्यादा सशक्त होंगी। लिंग के आधार पर होने वाला भेदभाव कम होगा। जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी। संसद मात्र पुरुष सत्ता का केंद्र भर सीमित नहीं होगा और राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने में महिलाओं की भागीदारी में भी इजाफा होगा। साथ ही दुनिया में भारतीय महिलाओं का सम्मान बढ़ेगा।

फिलहाल यह बिल पारित कराने में सभी राजनीतिक दलों में इच्छाशक्ति का अभाव नजर आ रहा है। देश की आधी आबादी को अपना हक कब मिलेगा इसका जवाब हमेशा गोल-मोल ढंग से दिया जाता रहा है। कई राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व तो 10 प्रतिशत से भी कम है। महिला आरक्षण पर सुगबुगाहट तो तेज होती है। लगभग सभी राजनीतिक दल विधायिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का समर्थन करते हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकलता है। महिला संगठन अपनी इस मांग को लेकर आंदोलन भी करते रहे हैं लेकिन यह बिल दांव-पेचों के चलते लटकता ही रहा है। यह ऐतिहासिक अवसर है कि सभी राजनीतिक दल इस पर स्वस्थ चर्चा कर इस विधेयक को पारित कराएं और देश की आधी आबादी का सपना साकार करें। जैसा कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि महिला के सशक्तिकरण से परिवार और समाज सशक्त होता है।