अगर भारत दुनिया की शीर्ष तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है तो इसमें सहकारी आंदोलन की एक महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। यह एक ऐसी खिड़की है जहां से सतत् आर्थिक विकास की रोशनी लगातार आ सकती है। इसलिए मोदी सरकार भारत में सहकारिता आंदोलन को गति देना चाहती है। सरकार और अर्थशास्त्रियों को पता है कि सहकारिता क्षेत्र के रास्ते भारत संसार की एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। निश्चित रूप से इस सैक्टर को इस लक्ष्य के लिए एक बड़ी भूमिका निभानी पड़ेगी और शायद इस क्षेत्र में छुपी अपार संभावनाओं को देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अलग सहकारिता मंत्रालय का ही गठन कर दिया है ताकि इसके लिए अलग बजट का प्रावधान किया जा सके। चूंकि, यह क्षेत्र बहुत बड़ा है और इस पर करोड़ों लोगों की निर्भरता है, इसलिए इसका पोषण और संरक्षण भी जरूरी है।
देश के 29 राज्यों में लगभग 8,02,639 सहकारी समितियां हैं और ये अरबों का व्यापार भी कर रही हैं। देश में सहकारी बैंकों की कुल संख्या 1,886 है, जिसमें 1,500 शहरी सहकारी बैंक और 386 ग्रामीण सहकारी बैंक शामिल हैं। ये सहकारी संस्थाएं देशभर में विभिन्न समुदायों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
बेशक, केंद्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों में सहकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है। उससे पहले देश में सहकारी समितियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। यहां भी भ्रष्टाचार ने अपने पैर गहरे जमा लिए थे। आपसी मिलीभगत के जरिए वित्तीय लेन-देन में कुछ लोग काफी हेरफेर करते रहे थे। प्रबंधन के नाम पर केवल कागजी कार्रवाई भर होती थी। व्यक्तिगत मतभेद और लड़ाई-झगड़ा तो आम बात थी और अनावश्यक विवाद डालकर समितियां बंद भी कर देते थे। कुछ बड़े भाग्यशाली समूह मनमानी करते थे और किसानों तथा छोटे उद्यमियों तक काम पहुंच ही नहीं पाते थे लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह की निगरानी ने दृश्य बदल कर रख दिया है। कई अहम सुधार किए गए हैं। साथ में जवाबदेही भी तय की जा रही है।
बेशक, अमित शाह की इस बात में दम है कि 115 साल पुराने सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के लिए आजादी के बाद ही एक अलग सहकारिता मंत्रालय बना दिया जाना चाहिए था लेकिन यह काम तब हुआ जब 2019 में नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने। तब उन्होंने एक अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। सहकारी समितियां आपसी सहयोग से बनाई गई संस्थाएं होती हैं। यह सामूहिकता के सिद्धांत पर काम करती हैं। पूंजी की जुटान साझेदारी की भावना से होती है और उपयोग में दूसरों की मदद करने की भावना होती है। इसकी विशालता और फैलाव का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि इस समय भारत में करीब 2 लाख सहकारी डेयरी समितियां और 330 सहकारी चीनी मिलें चल रही हैं। अकेले गुजरात में 81307 सहकारी समितियां काम कर रही हैं। 19 बहु-राज्य सहकारी समितियों को राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समितियों का दर्जा प्राप्त है। टर्नओवर के हिसाब से देखे तो वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए इफ्को का टर्नओवर 60,324 करोड़ रुपये का टर्नओवर था और अमूल का 2023-24 के लिए 12,880 करोड़ रुपये था। यही नहीं इफ्को को दुनिया की 300 सबसे बड़ी सहकारिता समिति की सूची में शामिल किया गया है।
पहले सहकारिता विभाग कृषि मंत्रालय के अंतर्गत था लेकिन जुलाई 2021 में मोदी सरकार ने एक अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया ही और गृहमंत्री अमित शाह देश के पहले सहकारिता मंत्री बने। मंत्रालय ने 2022 में संसद में बहु-राज्य सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक पेश किया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य मौजूदा कानून में संशोधन के जरिए एक से अधिक राज्यों में सदस्यों के हितों की सेवा करना और सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन को और लोकतांत्रिक बनाना था। इसके साथ ही संस्थाओं को और अधिक आर्थिक और सांगठनिक स्वायत्तता देना भी उद्देश्य था ताकि इसका चहुंमुखी विकास हो सके। इस नीति के तहत सहकारी समितियों को जरूरी सहयोग, प्रोत्साहन और सहायता उपलब्ध कराया जा रहा है।
खास कर युवाओं और महिलाओं को मुख्यधारा में लाने में सहकारी समितियां बहुत बड़ी भूमिका निभा रही हैं। क्षमता निर्माण, शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी को एकीकृत करने वाले समावेशी सहकारी मॉडल तैयार है। नारी सशक्तिकरण का नारा यदि धरातल पर कहीं उतरता दिखाई दे रहा है तो वह सहकारिता के क्षेत्र में पूर्ण रूप से दिख रहा है। सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी क्षेत्र में महिलाओं की बेहतरी, सशक्तिकरण और आय सृजन के लिए जो प्रयास किये हैं उसका परिणाम अब सामने आने लगा है। बहु राज्य सहकारी समितियों के बोर्ड में महिलाओं के लिए आरक्षण निर्धारित कर दिया गया है। बहु-राज्य सहकारी समितियों के बोर्ड में महिला निदेशकों नियुक्ति अनिवार्य कर दी गई है। इससे देश भर में 1,550 से अधिक बहु-राज्य सहकारी समितियों के बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ है। प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समितियों (पीएसीएस) में भी महिला सदस्यों को आरक्षण दिया गया है। 1 लाख से अधिक पैक्स में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व और निर्णय में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने सहकारिता के जरिए करोड़ों लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की सुदृढ़ व्यवस्था बनाई है। "सहकार से समृद्धि" के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए स्वतंत्र सहकारिता नीति पर अमल की जा रही है। मोदी सरकार ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) से लेकर राज्यों के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार कार्यालयों और कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के कंप्यूटरीकरण तक पूरी सहकारी प्रणाली का आधुनिकीकरण कर दिया है। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी और मध्यम और दीर्घकालिक ऋण चाहने वाले किसानों के लिए नई सुविधा शुरू हो जाएगी। पीएम मोदी ने सहकारी क्षेत्र में "दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना" की भी शुरुआत कर दी है जो 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) में काम करेगी। इस पहल के तहत गोदामों और अन्य कृषि-संबंधित बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए देश भर में अतिरिक्त 500 पैक्स की आधारशिला भी रखी गई है। इस पहल का उद्देश्य पैक्स गोदामों को खाद्यान्न आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकृत करना, खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना और नाबार्ड द्वारा समर्थित और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम के नेतृत्व में सहयोगात्मक प्रयास से देश में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
सरकार के सामने सहकारिता क्षेत्र से जुड़ी कई चुनौतियां भी हैं, खास कर सहकारी बैंकिंग के मामले में। सहकारी बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी से संबंधित आंकड़ें परेशान करने वाले हैं। आरबीआई के अनुसार पिछले पांच वर्ष में देश भर के सहकारी बैंकों से कुल 4135 धोखाधड़ी की रिपोर्ट सामने आई। 10,856.7 करोड़ रुपये का इन बैंकों में फ्रॉड हुआ लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि सहकारिता राज्यों के विषय में आता है। केंद्र सीधे इसमें दखल नहीं दे सकता लेकिन नरेंद्र मोदी इस बात से बहुत चिंतित हैं। वह आश्वस्त कर रहे हैं कि गरीबों का बैंक में जमा पैसा लूटने वाले को बख्शा नहीं जाएगा।
उन्होंने हाल ही में केरल के मामले में कहा भी है कि मैं देखूंगा कि प्रत्येक पैसा संबंधित व्यक्ति को वापस मिल जाए। उल्लेखनीय है कि केरल के करुवन्नूर सहकारी बैंक में लगभग 500 करोड़ रुपये के घोटाले हुए हैं और इसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है। इस मामले में कुछ स्थानीय सीपीएम नेताओं पर एक्शन भी लिया गया है। इसमें कोई शक नहीं है कि सहकारिता क्षेत्र में फैली गड़बड़ियों को भी दूर करना होगा जिसको लेकर केन्द्र सरकार गंभीर है।
– आर के सिन्हा