संपादकीय

चंडीगढ़ में लोकतन्त्र का ‘रुदन’

Aditya Chopra

भारत में लोकतन्त्र की बुनियाद को संविधान निर्माता इस प्रकार डाल कर गये हैं कि जब इसके चार खम्भों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका व चुनाव आयोग) में से कोई एक भी लड़खड़ाये तो कोई दूसरा खम्भा मजबूती दिखाते हुए उसे थाम ले। मगर इन चारों पायों में से न्यायपालिका की भूमिका लोकतन्त्र के बाकी तीन खम्भों के कार्यकलापों के पर्यवेक्षक के तौर पर नियत की गई जिससे सर्वदा हर हालत में बाकी तीनों खम्भे संविधान के अनुसार काम करने के लिए प्रतिबद्ध रहें। चंडीगढ़ महापौर चुनाव में जो कुछ भी हुआ उसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने जो टिप्पणियां इस मामले की सुनवाई करते हुए की हैं वे भारत के लोकतन्त्र की उस ताकत का ही प्रदर्शन है जिस पर पूरी संसदीय प्रणाली की लोक शासन व्यवस्था टिकी हुई है। लोकतन्त्र की पहली सीढ़ी चुनाव से शुरू होती है जिसकी देखभाल के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग का गठन किया और उसे पूरी तरह खुद मुख्तार रखते हुए सीधे संविधान से ताकत लेकर अपना काम करने में सक्षम बनाया। चुनावों की शुद्धता व पारदर्शिता कायम रखना चुनाव आयोग का मूल दायित्व होता है क्योंकि इससे उपजे नतीजों पर ही पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण होता है। यदि यहीं खोट मिल जायेगा तो पूरी व्यवस्था में ही अशुद्धता की मिलावट हो जायेगी। मगर चंडीगढ़ के महापौर चुनाव में जिस तरह नतीजों की घोषणा की गई उसने पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था का ही कत्ल करने की मिसाल सामने लाकर रख दी और न्यायपालिका को यह सोचने के लिए मजबूर किया कि क्या नतीजे मनमाफिक लाने के लिए इससे ज्यादा भी कुछ और धांधली हो सकती थी ? इसी वजह से न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि 'लोकतन्त्र की हत्या होते हम नहीं देख सकते इसलिए मतदान अधिकारी अनिल मसीह को अगली पेशी में उनकी अदालत में हाजिर किया जाये और इस आदमी पर मुकदमा चलना चाहिए'। महापौर के चुनाव में निगम पार्षद ही मुख्यतः हिस्सा लेते हैं। एक वोट चंडीगढ़ के सांसद का भी होता है। चुनाव में कुल 36 पार्षदों ने वोट डालने थे (सांसद समेत)। सदन में आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के सदस्यों के कुल 20 वोट थे और भाजपा, अकाली दल व सांसद के कुल 16 वोट। इन सभी ने मतदान में हिस्सा लिया। आप पार्टी व कांग्रेस ने अपने गठबन्धन के प्रत्याशी कुलदीप कुमार को कुल 20 वोट दिये जबकि भाजपा प्रत्याशी सोनकर के पक्ष में 16 वोट पड़े मगर मतदान अधिकारी अनिल मसीह ने कुलदीप कुमार के पक्ष में पड़े आठ वोटों को अवैध करार देकर सोनकर को विजयी घोषित कर दिया। उसने वोट किस आधार पर अवैध करार दिये इसका पूरा विवरण वीडियो में कैद हो चुका है। इस चुनाव को कुलदीप कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। वीडियो में स्पष्ट है कि अनिल मसीह अवैध घोषित किये गये बैलेट पेपरों पर कुछ लिख रहा है और फिर उन्हें अवैध मतों की टोकरी में डाल रहा है। असली सवाल यही है कि उसने आठ पार्षदों के वोट किस आधार पर अवैध घोषित किये ? सर्वोच्च न्यायालय में वादी पक्ष की ओर से वह वीडियो प्रस्तुत की गई जिसमें पूरी चुनाव प्रक्रिया कैद थी और यह वीडियो देखकर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणियां कीं और सुनवाई की अगली तारीख 19 फरवरी तय कर दी मगर तब तक के लिए चंडीगढ़ निगम की होने वाली बैठकों पर प्रतिबन्ध लगा दिया । दरअसल पहले कुलदीप कुमार पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय में ही गये थे। मगर उच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ प्रशासन को चुनावी कागजात रखने के लिए तीन सप्ताह बाद की तारीख दी। इसके बाद कुलदीप कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को भी उचित नहीं माना है क्योंकि चुनाव की वीडियो देखने के बाद उसे तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए थी। यह भी सच है कि मतदान अधिकारी अनिल मसीह भाजपा का सदस्य है। मगर मतदान प्रक्रिया का संयोजक होने की वजह से उसे पूरी तरह निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए था। उसे कुल 36 वोट गिनने थे और इनके गिनने में ही उसकी नीयत डोल गई। लोकतन्त्र में चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता संविधान के आधारभूत ढांचे का हिस्सा होती है। यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने ही 1975 में इन्दिरा जी की रायबरेली सीट से लोकसभा चुनाव अवैध करार दिये जाने के मामले में दिया था। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली सीट से इन्दिरा जी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया था। अतः चंडीगढ़ महापौर चुनाव में की गई गड़बड़ी और धांधली का सवाल बहुत बड़ा है क्योंकि 100 दिन बाद ही लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं जिनके आधार पर देश की नई सरकार का गठन होगा। इन चुनावों में मतदान अधिकारियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहेगी। वैसे भी चुनाव के छोटे–बड़े होने का कोई सवाल नहीं होता है बल्कि हर चुनाव के पूरी तरह शुद्ध, पवित्र व स्वतन्त्र होने का सवाल होता है। यदि मतदान अधिकारी कुल 36 वोटों में ही मिलावट करने में सफल हो जाता है तो उसका सन्देश राष्ट्रीय स्तर पर जाये बिना नहीं रह सकता। चुनाव में विश्वास होना लोकतन्त्र की बुनियाद होती है। मतदाता का पूरी प्रणाली में हर हालत में यकीन रहना बहुत जरूरी है। जब जनता द्वारा चुने गये पार्षदों के वोट की गिनती ही शुद्धता के साथ नहीं हो सकती तो आम मतदाता के दिमाग में शक होना लाजिमी है। अतः मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणियों के बहुत बड़े मायने हैं क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य कार्य संविधान व कानून का राज होते देखना है।