यह विसंगति भी पिछले 77 बरस से जारी है। आज भी पंजाब के सीमावर्ती सैकड़ों किसानों को अपने खेत जोतने के लिए भारत-पाक सीमा पार करनी पड़ती है। वे लगभग हर रोज सीमा पर बीएसएफ अधिकारियों से अनुमति पत्र लेते हैं। उसी के आधार पर उन्हें सीमा पार से पाक रेंजर्स को भी पूर्व सूचना देनी होती है। यानि 77 बरस से हर रोज का वीज़ा। इन गंभीर समस्याओं पर न तो पंजाब की सरकार ने कभी ध्यान दिया, न केंद्रीय गृह मंत्रालय ने और न ही किसान संगठनों ने। वस्तुस्थिति यह है कि इन सीमावर्ती किसानों की ज़मीनें नदी पार के क्षेत्र में पड़ती हैं। यदि सतलुज में पानी ज्यादा हो तो नौकाओं का सहारा और यदि कम हो तो पैदल ही पानी से गुज़रना होता है। इनके लिए 'नो मैन्स लैंड' की परिभाषा भी पूरी तरह लागू नहीं होती।
ये किसान जिला फाजिल्का व जिला फिरोजपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं। नदी पार की ज़मीनें इतनी ज्यादा नहीं हैं कि उनमें ही ये किसान अपनी 'ढाणियां' (खेत में घर) बना सकें। इन्हें सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले या आसपास अपने कृषि मोर्चों की ओर कूच करना होता है और शाम धुंधलके से पहले ही वापिस लौटना होता है।
उसी बीच आपसी लोकगीतों का सिलसिला भी चलता है। इनमें से कुछ के गायन धूम मचा देने वाले हैं, मगर इन्हें कभी रिकार्ड ही नहीं किया जा सका। 'जीवे-पाकिस्तान' और 'जीवे हिन्दुस्तान', हीर रांझा, सस्सी-पुन्नू आदि की प्रेम गाथाएं गाई जाती हैं। अक्सर सीमा पर स्थित किसान आपस में आचार, प्याज, लस्सी, हरी व लाल मिर्च का चटखा भी बांट लेते हैं।
सीमा पार खेती को लेकर कुछ माह पूर्व भी किसानों की एक बैठक, सादगी चौकी (भारत-पाक सीमा- सुलेमान जिला फाजिल्का) पर बीएसएफ की 55वीं बटालियन के अधिकारियों के साथ संपन्न हुई। किसानों की मांग थी कि सीमा पर स्थित कांटेदार तार को उन किसानों के लिए सुबह आठ बजे से सायं 6 बजे तक खोल दिया जाए ताकि सीमा पर स्थित लगभग दो दर्जन भारतीय गांवों के किसान नदी क्षेत्र पार करके अपने खेतों में फसलों की बिजाई व कटाई कर सकें।
अब इन किसानों का एक शिष्टमंडल केंद्रीय जल संसाधन मंत्री बिश्वेश्वर से मिला है और उनसे अपील की है कि सीमा पार वाली उनकी ज़मीनें सरकार अधिग्रहित कर ले ताकि वे लोग संकटमुक्त हों। उनकी यह भी शिकायत है कि उनकी सीमा पार वाली फसलें, राडारों की फ्लैश-लाइट्स और यदा-कदा सतलुज में बाढ़ से वैसे भी बर्बाद हो जाती हैं। उन्हें मेहनत के चार पैसे मुआवजे के रूप में भी नहीं मिलते। मगर वे भूमिपुत्र हैं। आखिर धरती मां को छोड़ कैसे दें।
कुल मिलाकर 220 सीमावर्ती गांवों की 21600 एकड़ भूमि फाजिल्का-जलालाबाद-फिरोजपुर व कुछ अन्य सीमा क्षेत्रों पर इसी संकट से ग्रस्त है। बैंक भी इन किसानों को ज़मीनों की गारंटी पर कोई कर्ज नहीं देते। ऐसी स्थिति कहीं भी किसी भी देश में नहीं होती। मगर इनकी बात सही ढंग से सुनने के लिए न केंद्र सरकार तैयार है, न राज्य सरकार और न ही राजनेता लोग। उनका मुद्दा 77 वर्षों में एक बार भी लोकसभा या किसी विधानसभा में नहीं उठाया गया।
यहां यह भी बताना प्रासंगिक होगा कि भारत व पाकिस्तान सीमा के मध्य पक्की बाड़ लगाने का कार्य वर्ष 1988 और 1991 के मध्य ही पूरा हुआ था और यह भी उन दिनों सम्पन्न हुआ जब पंजाब में आतंकवाद चरम सीमा पर था। मगर तब भी कुछ किसान ऐसे छूट गए थे जिनकी ज़मीनें इन बाड़दार-कंटीली तारों के दूसरी ओर रह गई थीं। इन किसानों से मुआवजे का वादा किया गया था मगर अभी तक यह वादा कागज़ों में ही दफन है।
ये विवाद केवल फाजिल्का, फिरोजपुर, जलालाबाद तक ही सीमित नहीं, गुरदासपुर, पठानकोट, तरनतारन व अमृतसर सीमा पर भी फैला हुआ है। सुखद यह है कि इन किसानों के लिए सहानुभूति का एहसास सीमा-स्थित पर पाक-रेंजर्स को भी है और बीएसएफ अधिकारियों को भी है। संबंधों में थोड़ी खटास 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों के मध्य आई थी तब दोनों ओर सैन्य बलों को बारूदी-सुरंगें भी बिछानी पड़ी थी।
ये वही सीमा क्षेत्र हैं जहां अतीत में नूरजहां व लता मंगेशकर के मध्य दो बार 'नो मैन्स लैंड' स्थित स्थल पर भेंट भी कराई गई थी। वाघा-अटारी सीमा पर कैंडल मार्च का सिलसिला अब भी 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को चलता है।
इन किसानों के लिए मीडिया में भी कोई खबरों के लिए न तो ज़्यादा टीआरपी मिल पाती है न ही प्रिंट मीडिया के एबीसी (ऑडिट ब्यूरो और सर्कूलेशन) में ही कोई फर्क पड़ता है।
यहां भारत-पाक सीमा की कुल लम्बाई पर भी नज़र डाल लेनी चाहिए। यह सरहद लगभग 3323 किलोमीटर तक फैली है और यह सीमा-रेखा पंजाब, राजस्थान, जम्मू और गुजरात के राज्यों से गुजरती है। इसी सीमा को रैडक्लिफ-रेखा कहा जाता है और यही वह सीमा है जिसे अंतिम रूप विभाजन के बाद 17 अगस्त, 1947 को ही दिया जा सका था। इसमें पंजाब राज्य से सटी सीमा की लम्बाई 425 किलोमीटर है। भारतीय-सीमा से पार पाकिस्तानी क्षेत्र के जिला बहावलपुर, जिला रहीम खान, डेरा गाज़ी खान, कोट अटू, जिला लय्याह, जिला मुजफ्फरगढ़, जिला चिनियोट, जिला फैसलाबाद, जिला झंग, जिला टोबा टेक सिंह, जिला गुजरांवाला, जिला सियालकोट, जिला गुजरात, जिला हाफिज़ाबाद, जिला वज़ीराबाद, जिला लाहौर, जिला ननकाना साहब, जिला कसूर, जिला खानेवाला, जिला मुल्तान, जिला अटक, जिला चकवाल, जिला रावलपिंडी, जिला ओकाड़ा, जिला पाकपटन, जिला साहीवाल, जिला मियांवाली, सरगोधा, भक्कर, खुशाब आदि कुल 41 जिले हैं।
फाजिल्का सीमावर्ती भारतीय किसानों की एक शिकायत यह भी है कि उनकी फसलों को प्राय: पाकिस्तानी क्षेत्रों से घुसने वाले सूअर खराब कर जाते हैं, मगर पाक रेंजर्स के लिए सूअर 'मुकद्दस' हैं। हमारे किसानों की यह भी शिकायत है कि उनके खेतों के लिए जल सिंचाई की 'बारी' पाकिस्तानी अधिकारियों के नियंत्रण में है। उन्हें 'बारी' तब मिलती है जब पानी सप्लाई का समय समाप्त होने वाला होता है। अब हमारे ये किसान जाएं कहां?