संपादकीय

प्रदूषण की मार से कराह रही है दिल्ली

जैसे ही सर्दियों का मौसम दरवाजों पर दस्तक देता है, उत्तर भारत में खुशी का माहौल तारी हो जाता है।

Editorial

जैसे ही सर्दियों का मौसम दरवाजों पर दस्तक देता है, उत्तर भारत में खुशी का माहौल तारी हो जाता है। भयंकर गर्मी, बरसात के बाद सर्दियों का सबको बेसब्री से इंतजार रहता भी है लेकिन जैसे-जैसे सर्दियों का मौसम नजदीक आता है, वैसे-वैसे दिल्लीवासियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच जाती हैं। वैसे तो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सारा साल ही विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बेहाल रहती है लेकिन सर्दियों में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है और मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर दिल्ली के प्रदूषण से जुड़ी खबरें छाई रहती हैं।

केंद्र और प्रदेश सरकार प्रदूषण नियंत्रण के तमाम दावे करती हैं, सरकारें एक-दूसरे पर आरोप भी लगाती हैं लेकिन इन सबके बीच दिल्ली- वासियों को सर्दियों में कष्टकारी स्तर तक पहुंच गये वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।

सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच दिल्ली में एक महीने के दौरान पराली जलाने की 11 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान निगरानी तंत्र क्रीम्स के अनुसार इनमें से आठ घटनाएं उत्तरी व तीन उत्तर पश्चिमी दिल्ली के इलाकों में दर्ज हुई हैं। हैरत की बात यह भी कि 15 सितंबर से 19 अक्तूबर तक की अवधि का राजधानी में यह आंकड़ा पांच सालों के दौरान का सर्वाधिक है।

2020 में इस दौरान पराली जलाने की चार, 2022 में तीन एवं 2023 में सिर्फ दो घटनाएं दर्ज की गई थीं। 2021 में एक भी केस सामने नहीं आया था। चूंकि राष्ट्रीय राजधानी में पराली जलाने को खासी जागरूकता है और बायो डी.कंपोजर का छिड़काव भी यहां समय पर ही शुरू हो गया था। लिहाजा, पराली जलाने के यह आंकड़े चिंताजनक हैं।

आमतौर पर देश के छह राज्यों में पराली जलाने के मामले सामने आते हैं। क्रीम्स के अनुसार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से रोज पराली जलाने के 200 से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। अभी तक 12 अक्तूबर को पराली जलाने के सबसे ज्यादा 398 मामले सामने आए थे। इस साल पराली जलाने का आंकड़ा 2700 के पार पहुंच गया है। क्रीम्स के मुताबिक 15 सितंबर से लेकर 15 अक्तूबर तक के बीच यानी लगभग एक महीने में पराली जलाने के 2733 मामले दर्ज किए गए हैं। पंजाब में सबसे ज्यादा 1393 मामले सामने आए हैं। जबकि हरियाणा में 642 और उत्तर प्रदेश में 687 मामले दर्ज किए गए हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हाल फिलहाल प्रदूषण से राहत मिलने के आसार नहीं हैं। पूर्वानुमानों पर जाएं तो परेशानी घटने की बजाय आगे बढ़ने वाली है। वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली का अनुमान है कि अगले तीन दिनों तक दिल्ली की हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच सकती है। हवा की रफ्तार धीमी होने के कारण प्रदूषण के स्तर में इजाफा हो सकता है। चिकित्सक आगाह कर रहे हैं कि सांस से जुड़ी बीमारियां और उनके मरीज 30-40 फीसदी बढ़ चुके हैं लेकिन सरकार फिर भी चिंतित नहीं है।

चूंकि राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खराब और गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है। एक दर्जन से अधिक हॉट स्पॉट ऐसे हैं जहां वायु का स्तर 300-400 या उससे अधिक हो गया है। देश की राजधानी की वायु इतनी विषाक्त हो चुकी है कि आश्चर्य होता है। सांस घुटने लगा है, खांसी लगातार हो रही है, निमोनिया के केस भी आ रहे हैं, हार्ट अटैक अचानक होने लगे हैं। दिमागी बीमारियां भी उभर सकती हैं। जन्म लेने वाले शिशुओं के वजन कम हो सकते हैं। कुछ दीर्घकालीन बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं। क्या राजधानी में जिंदगी जीना इतना दूभर होता है?

वायु प्रदूषण के अलावा दिल्ली की लाइफ लाइन कहे जाने वाली यमुना नदी में भी प्रदूषण का स्तर सभी सुरक्षित मानकों को लांघ जाता है और यमुना का जल जहरीला हो जाता है। करीब 10 साल तक केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहे और यमुना की निर्मलता और विरलता के जुमले उछालते रहे, अंततः यमुना में जहरीली झाग पैदा हो गई। क्या लोकतंत्र में जवाबदेही की कोई गुंजाइश नहीं होती? इन दिनों यमुना नदी में पानी के स्थान पर ‘सफेद झाग’ उभर आई है। यह प्रदूषित और जहरीली झाग है। यमुना नदी इतिहास के पन्नों में खो गई है। वह अब या तो गंदा नाला है अथवा सफेद झाग का कोई गहरा गड्ढा। यमुना किनारे औद्योगिक इकाइयों के कचरे का अपशिष्ट नदी में गिर रहा है। आखिर इन इकाइयों को वहां से हटाया क्यों नहीं गया?

प्रदूषण के कणों से मिलकर कचरा सफेद झाग में तब्दील हो रहा है। कई बार ऐसा एहसास होता है मानो यमुना नदी की सतह पर सफेद बादल बन गए हों लेकिन यह झाग दिल्ली के खतरनाक और जानलेवा पर्यावरण का प्रतीक है। यमुना भी एक राजनीतिक जुमला बन कर रह गई है। बीते 8 सालों के दौरान यमुना की सफाई पर करीब 6856 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। यह राशि केंद्र सरकार ने बजट के तौर पर दिल्ली सरकार को दी है। अर्ध राज्य सरकार ने 1000 करोड़ रुपए से अधिक का उपकर ‘प्रदूषण सेस’ भी दिल्ली वालों पर थोपा है। यह पूरी राशि कहां खर्च की गई, यमुना अब भी प्रदूषित और जहरीली क्यों है।

छठ पर्व की पूजा और स्नान के दिन बहुत दूर नहीं हैं। धार्मिक आस्था के लोग अब भी सफेद झाग की यमुना में अपने बच्चों काे स्नान करवा रहे हैं। ऐसी तस्वीरें मीडिया में छपी हैं। या तो उन्हें सफेद झाग के जहरीले प्रभावों की जानकारी नहीं है अथवा वे धार्मिक तौर पर विवश हैं, लिहाजा उस सफेद झाग के संपर्क में हैं। ईश्वर न करे कि वे बच्चे बीमार हों लेकिन कोई अनहोनी हो गई तो क्या उसका अपराध दिल्ली सरकार पर चस्पा किया जाएगा?

बात दिल्ली के दम घुटने की कि जाए तो पराली को जलाने से रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकारों से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय तक अलग-अलग कदम उठाते रहे हैं। इसके चलते पिछले चार सालों में पराली जलाने की घटनाओं में पहले की तुलना में काफी कमी आई है। इसके बावजूद अभी तक लोगों को इससे पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिला है। हालांकि चार सालों में इनकी संख्या घटकर आधी रह गई है। दिल्ली-एनसीआर के ज्यादातर इलाकों में पॉल्यूशन का स्तर बेहद खराब श्रेणी में पहुंच चुका है। लोगों को आंखों में जलन और गले में दर्द की शिकायत हो रही है। अगर पराली जलाने पर रोक लगाने के साथ-साथ दूसरे उपाय नहीं किए गए तो दिवाली इस बार भी धुएं वाली होने वाली है। पराली से फैलने वाला प्रदूषण एक अन्य समस्या है। पंजाब और दिल्ली दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं लेकिन दिल्ली सरकार पंजाब को प्रदूषण फैलाने से रोक नहीं पाई है।

दिल्ली सरकार हरियाणा पर पराली जलाने का आरोप लगा रही है। इस आरोप-प्रत्यारोप से तो समस्या का समाधान निकलने से रहा। इस संबंध में दिल्ली, पंजाब तथा हरियाणा सरकारों को एक साथ बैठकर समस्या का समाधान करवाना चाहिए। आखिरकार ये मसला करोड़ों लोगों की जिन्दगी से जुड़ा हुआ है। इस मामले में राजनीति की बजाय समाधान के ठोस कदम उठाने की जरूरत है।