संपादकीय

मतभेद-असहमति लोकतन्त्र के दो स्तंभ

Rahul Kumar Rawat

18वीं लोकसभा के सत्र की शुरुआत हो चुकी है। अधिकतर सांसद शपथ ले चुके हैं। लोकसभा स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष भी घोषित हो चुके हैं। 18वीं लोकसभा की शुरुआत सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच मतभेद-असहमति के बीच हुई लेकिन जैसा अपेक्षित था ओम बिरला लगातार दूसरी बार लोकसभा स्पीकर पद के लिये चुने गए। इससे पहले एनडीए गठबंधन सरकार की आकांक्षा थी कि विपक्ष स्पीकर पद के लिये ओम बिरला का समर्थन करे लेकिन विपक्ष लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर अड़ा रहा। संसद में संख्या बल के आधार पर एनडीए की दावेदारी तय थी, मगर प्रतीकात्मक विरोध के लिये इंडिया गठबंधन ने सबसे अनुभवी सांसद के. सुरेश को स्पीकर पद के लिये अपना उम्मीदवार बनाया। इस बीच मंगलवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के घर हुई बैठक के बाद रात्रि में पार्टी ने घोषणा की कि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होंगे।

ओम बिरला के लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी बधाई दी। राहुल ने कहा कि भले ही सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी देश के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। दरअसल, इंडिया गठबंधन कहता रहा है कि सरकार संसदीय परंपरा को दरकिनार करके डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को देने से इन्कार कर रहा है। जबकि आम धारणा रही है कि डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को दिया जाता है। सत्ता पक्ष की दलील थी कि लोकसभा अध्यक्ष किसी दल विशेष का नहीं होता वरन् सदन चलाने के लिये सब की सहमति से चुना जाता है। सत्ता पक्ष का आरोप है कि इंडिया गठबंधन दबाव की राजनीति कर रहा है। वहीं एक रोचक पहलू यह भी है कि पिछली लोकसभा में डिप्टी स्पीकर पद पर कोई चुना ही नहीं गया। राजनीतिक पंडित इस नियुक्ति को संविधान के अनुसार अनिवार्य बताते हैं। बताया जाता है कि 1969 तक कांग्रेस ने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद अपने ही पास रखे। कालांतर अपनी सुविधा के अनुरूप विपक्षी दलों से यह पद साझा किया गया।

बहरहाल, 18वीं लोकसभा का नया घटनाक्रम यह है कि मंगलवार को कांग्रेस ने राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है। यहां उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में चुनावी राजनीति में आने के बाद पहली बार राहुल गांधी किसी संवैधानिक पद पर आसीन हुए हैं। इससे पहले 2019 में पार्टी की पराजय को स्वीकार कर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था। बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष पद पर ओम बिरला के चयन के बाद उन्होंने परिपक्व ढंग से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि स्पीकर का दायित्व है कि विपक्ष के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे। बहरहाल, दस साल बाद लोकसभा को नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है। दरअसल, दो आम चुनावों में कांग्रेस सांसदों का दस फीसदी हासिल नहीं कर पाई थी जिसके चलते वह नेता प्रतिपक्ष का पद न पा सकी। इस बार के आम चुनाव में 99 सीटें हासिल करके कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष का अधिकार हासिल किया। इंडिया गठबंधन का दावा है कि राहुल अब विपक्ष की आवाज बनेंगे। हालांकि इस बार लोकसभा में उनकी मां सोनिया गांधी नहीं होंगी, क्योंकि वे राज्यसभा के लिये चुनी गयी हैं लेकिन वायनाड उपचुनाव के जरिये प्रियंका गांधी के लोकसभा पहुंचने की प्रबल संभावना है।

माना जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी जिम्मेदार राजनेता की छवि बन सकेगी। वजह है कि नेता प्रतिपक्ष देश में कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों में भूमिका निभाता है। उम्मीद करें कि आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पर तीखे हमले करने वाले राहुल प्रधानमंत्री के साथ इस दायित्व को सहजता से निभा पाएंगे। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष के पास कई तरह के विशेष संवैधानिक अधिकार भी होते हैं। वह कई महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य भी होता है। संयुक्त संसदीय समितियों व चयन समितियों में उसकी सक्रिय भूमिका होती है। जो ईडी, सीबीआई, केंद्रीय सूचना आयोग, केंद्रीय सतर्कता आयोग,लोकपाल, चुनाव आयुक्तों व एनएचआरसी के अध्यक्ष जैसे विशिष्ट पदों की नियुक्तियां करती हैं। विपक्षी नेता को कैबिनेट रैंक पद का दर्जा मिलता है। उम्मीद है इससे राहुल गांधी की छवि एक परिपक्व नेता के रूप में उभरेगी। आशा करें कि सहमति-असहमति के बीच स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को बल मिलेगा।
नई लोकसभा में 27 जून को राष्ट्रपति मुर्मू ने दोनों सदनों की साझा बैठक को संबोधित करते हुए सरकार का एजेंडा स्पष्ट कर दिया है। राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में आपातकाल का जिक्र भी किया।

उन्होंने कहा कि 1975 में पूरे देश में हाहाकार मच गया था। आपातकाल संविधान पर सबसे बड़ा हमला था। 26 जून को जहां एक ओर विपक्षी नेताओं के हाथ में संविधान की प्रतियां दिखीं और राहुल गांधी यह कहते दिखे कि 'संविधान को कोई ताकत छू नहीं सकती', दूसरी ओर पीएम मोदी ने भी आपातकाल की याद दिलाते हुए विपक्ष की हमलावर नीति पर पलटवार किया। उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया, विपक्ष को अपना कर्त्तव्य पूरा करने के लिए कहा और इन जवाबी हमलों के साथ पीएम मोदी ने दृढ़ता से यह बात सामने रखी कि उनकी सरकार यहीं रहेगी और वे विपक्ष के दबाव के कारण पीछे नहीं हटेंगे। आपातकाल की 50वीं बरसी पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा ने सदन में निंदा प्रस्ताव पारित किया। अपने प्रस्ताव में स्पीकर ने कहा कि यह सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्प शक्ति की सराहना करते हैं जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। पीएम मोदी लोकसभा में 2 जुलाई और राज्यसभा में 3 जुलाई को चर्चा का जवाब देंगे। नई लोकसभा में वह प्रधानमंत्री का पहला संबोधन होगा।