संपादकीय

पश्चिम का दोहरा मापदंड और भारत

दाल में कुछ काला है। वास्तव में बहुत कुछ काला है। जिस तरह कनाडा और अमेरिका मिल कर वहां बसे कथित खालिस्तान के आतंकवादियों से सम्बंधित मामलों को भड़का रहे हैं उससे पता चलता है

Editorial

दाल में कुछ काला है। वास्तव में बहुत कुछ काला है। जिस तरह कनाडा और अमेरिका मिल कर वहां बसे कथित खालिस्तान के आतंकवादियों से सम्बंधित मामलों को भड़का रहे हैं उससे पता चलता है कि कहीं हम पर दबाव बनाया जा रहा है। वैसे तो इन्हें खालिस्तानी आतंकवादी कहना ही ग़लत है क्योंकि कोई खालिस्तान जैसी जगह नहीं है। यह या तो अमेरिकी आतंकवादी हैं या कनाडाई आतंकवादी हैं। जिस तरह उनका पक्ष लिया जा रहा है उससे यह संकेत मिलता है कि वह इन आतंकियों को अपना आदमी समझते हैं इसलिए उनको पाल पलोस कर रखा गया है। दुनिया को यह मानव अधिकारों की नसीहत देते हैं पर जब ग़ाज़ा में हजारों लोग मारे जाते हैं तो यह मुंह फेर लेते हंै। अमेरिका जो खुद को 'फ्री वर्ल्ड’ का ध्वजवाहक कहता है का दोहरा मापदंड जग ज़ाहिर है। वह कुवैत, अफ़ग़ानिस्तान, ईराक़, सीरिया,लीबिया पर हमलों में लाखों लोगों को मार चुके हैं। ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के अंदर घुस कर एबटाबाद में मारा गया था। बंगलादेश में जो पलटा हुआ है उसके पीछे भी अमेरिका का हाथ बताया जाता है क्योंकि शेख़ हसीना उनका आदेश नहीं मान रही थी।

जब इज़राइल ने हमास और हिज़बुल्ला के आतंकियों को तमाम किया तो अमेरिका की प्रतिक्रिया थी कि “इन को ख़त्म करने से दुनिया बेहतर जगह बन गई है” पर भारत जो खूनी आतंकवादियों के हमलों को वर्षों से झेल रहा है, को अमेरिका, कनाडा और साथी देश कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। जून 1985 में एयर इंडिया के विमान 'कनिष्क’ को बम से उड़ा दिया गया था। 329 लोग मारे गए थे और बम रखने वाले कनाडा स्थित खालिस्तानी थे। जिन्होंने बम रखा वहां उनका महिमागान हो रहा है पर चार दशक के बाद भी हादसे की जांच चल रही है। जब ओसामा बिन लादेन मारा गया तो अमेरिका ने गर्व के साथ इसकी घोषणा की थी पर जब हरदीप सिंह निज्जर को किसी ने मार दिया तो ठोस सबूत दिए बिना हम पर आरोप लगाया जा रहा है कि हमने कनाडा की प्रभुसत्ता का उल्लंघन किया है। अपने हित के लिए पश्चिम के देश किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। 2023 में ओटावा में हमारे हाई कमीशन पर हमला हुआ था। इसकी जांच में कनाडा सहयोग नहीं दे रहा। वह फ्रीडम के लेबल के नीचे आतंकी गतिविधियों को पनाह दे रहे हैं। कुछ प्रमुख मिसालें हैं:-

(1) हरदीप सिंह निज्जर जिसे भारत ने आतंकी घोषित कर रखा था ने तीन बार अवैध तरीक़े से कनाडा में दाखिल होने का प्रयास किया थापर फिर भी उसे नागरिकता दे दी गई। जब वह वहाँ भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उसका बैंक खाता सील कर दिया गया और उसे नो-फ्लाई लिस्ट अर्थात जिन्हें हवाई जहाज़ में सफ़र की इजाज़त नहीं है, में डाल दिया गया। दर्जनों हत्या के आरोप में इसके ख़िलाफ़ 2016 में इंटरपोल नोटिस जारी किया गया था। पर जब वह मारा गया तो कनाडा की संसद में उसे श्रद्धांजलि दी गई। कनाडा के एक विपक्षी नेता मैक्सिम बर्नियर ने तो कहा है कि शरण मांगने संबंधी निज्जर का आवेदन फ़र्ज़ी था इसलिए “इस प्रशासनिक गलती को सुधारने के लिए कनाडा को मरणोपरांत उसकी नागरिकता छीन लेनी चाहिए”। ऐसे होगा नहीं क्योंकि जैसे कहा गया है ‘कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना’ ! बात निज्जर की होगी निशाने पर भारत है। ऐसा क्यों है यह मैं बाद में बताऊंगा।

(2) दूसरा मामला डेविड कॉलमैन हैडली का है जो अमेरिकी नागरिक है और जिस पर आरोप है कि उसने 2008 के मुम्बई हमले में लश्करे तैयबा की मदद की थी। उसने उन जगह को रैकी की थी जहां पाकिस्तानी आतंकियों ने बाद में हमला किया था। भारतीय अधिकारियों को उससे बात करने का मौक़ा ज़रूर दिया गया पर मुम्बई हमले से पहले उसकी हरकतों के बारे हमें जानकारी नहीं दी गई। न ही उसे हमें सौंपा ही गया। उसने बताया था कि 25 लाख रुपए खर्च कर उसने वह किश्ती ख़रीदी थी जिसमें 10 आतंकी मुम्बई पहुंचे थे। अर्थात वह हमले का सूत्रधार था। जब उसने अपना अपराध क़बूल किया तो यह शर्त भी रखी कि उसे भारत के हवाले नहीं किया जाएगा। अमेरिकी सरकार ने यह शर्त क्यों स्वीकार की?

(3) तीसरा मामला आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के असफल प्रयास से जुड़ा है। यह आदमी बार-बार भारत और उसके नागरिकों को धमकियां देता रहता है। उसने कनाडा में रहने वालों हिन्दुओं को वहां से निकलने के लिए कहा है। कनाडा के सांसद चन्द्र आर्य ने वहां रह रहे हिन्दुओं की सुरक्षा को लेकर चिन्ता व्यक्त भी की है। पर अमेरिका पन्नू को भारत के हवाले नहीं करेगा क्योंकि उनकी नज़रों में वह “राजनीतिक कार्यकर्ता है”। उस पर इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है? उसे नियमित तौर पर धमकियां देने के लिए छोड़ दिया गया है, यहां तक कि हमारे नेताओं को धमकियां दे रहा है। पर ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ की ओट में उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब उसकी हत्या के कथित प्रयास को लेकर हमारे एक पूर्व अधिकारी पर वहां आरोप तय किए गए हैं। हो सकता है कि कल को वह इस पूर्व अधिकारी विकास यादव के प्रत्यर्पण की मांग करें। अगर वह करते हैं तो हमें भी हैडली और पन्नू के प्रत्यर्पण की मांग करनी चाहिए। विकास यादव पर तो 'प्रयास’ का आरोप है हैडली तो मुम्बई में 174 लोगों की हत्या में सीधी तरह से ज़िम्मेदार है।

(4) भारत ने आतंकियों और अपराधियों के प्रत्यर्पण की कनाडा को 26 रिक्वेस्ट भेजी हैं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2018 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से भारत ने निज्जर के प्रत्यर्पण की मांग की थी। कोई कार्यवाही नहीं हुई। 60 के क़रीब प्रत्यर्पण की रिक्वेस्ट अमेरिका के पास लटकी हुई हैं। अब फिर पन्नू ने एयर इंडिया के विमानों को उड़ाने की धमकी दी है। उसका कहना है कि एयर इंडिया पर हमला हो सकता है इसलिए 1-19 नवम्बर के बीच इस पर सफ़र न किया जाए। यह धमकी हमारे विमानों को हाल में मिली 100 के क़रीब धमकियों के बीच दी गई है। अमेरिकी सरकार को इस पर आपत्ति क्यों नहीं है?

कनाडा के बारे तो कहा जा सकता है कि अपरिपक्व प्रधानमंत्री ट्रूडो राजनीतिक संकट में फंसे हुए हैं इसलिए बेकार बोल रहे हैं। वह खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की एनडीपी पर निर्भर है इसलिए उसके भारत विरोधी एजेंडे का समर्थन करने के लिए मजबूर है। कनाडा का विपक्ष ट्रूडो की जम कर आलोचना कर रहा है कि वह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के साथ रिश्तों को रसातल में ले गए हैं। पर इस घटनाक्रम का यही स्पष्टीकरण नहीं है क्योंकि इस बीच अमेरिका का दखल हो चुका है। कनाडा ने कहा है कि उन्हें निज्जर के मामले में ख़ुफ़िया जानकारी अमेरिका ने दी है। पन्नू की हत्या के कथित असफल प्रयास को भी अमेरिका ने ज़रूरत से अधिक तूल दी है। हम ‘स्ट्रैटेजिक अलाई’ अर्थात् सामरिक साथी है, फिर हमें इतना दबाने की कोशिश क्यों की जा रही है जबकि हम क्वाड में भी साथी हैं ? हमारे ख़िलाफ़ कथित सूचनाएँ फ़ाईव आईज़ देशों, अर्थात् पांच गोरे देशों-अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड- के बीच भी सांझी की गईं हैं।

यह सब क्यों हो रहा है? विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने बात स्पष्ट कर दी है, “1945 के बाद विश्व व्यवस्था पश्चिमी थी... पिछले 20 -25 वर्षों में फिर से संतुलन क़ायम हो रहा है। कई ग़ैर- पश्चिमी देशों की भूमिका और प्रभाव बढ़ रहा है...पश्चिमी और ग़ैर -पश्चिमी देशों के बीच समीकरण बदल रहे हैं। इससे समझौता करना आसान नहीं है... कई दूसरे बड़े देशों जैसे भारत और चीन का अपना नज़रिया है, इसलिए टकराव होगा”। भारत के बढ़ते प्रभाव और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को पसंद नहीं किया जा रहा। भारत तब तक ही दोस्त है जब तक वह क्वाड का सदस्य है पर अगर वह रूस के साथ सम्बंध बढ़ाता जाएगा और वहां से सस्ता तेल लेता रहेगा तो यह असहनीय है? वह अभी भी ग़लतफ़हमी में है कि दुनिया वह चला रहे हैं और वह ही तय करेंगे कि क्या सही है क्या ग़लत जबकि चीन और भारत का उभार और रूस का प्रतिरोध बताता है कि दुनिया बदल रही है। पश्चिम के पाखंडऔर हेकड़ी का विरोध ही है जिसने ब्रिक्स जैसे संगठन, जिसकी बैठक में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री रूस गए हुए हैं, को खड़ा किया और प्रासंगिकता दी है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के अनुसार तीन दर्जन और देश ब्रिक्स में शामिल होना चाहतें हैं। यह भी अच्छी बात है कि भारत और चीन के बीच सम्बंध सामान्य करने की तरफ़ पहला कदम उठाया गया है पर यहां अभी रास्ता लम्बा है।

साफ़ होता जा रहा है कि अमेरिका और उसके कुछ साथी देशों को अपने ही कुछ नागरिकों द्वारा खालिस्तान के नामपर भारत को तोड़ने की साज़िशों के बारे कोई दिक्कत नहीं है। गोरों की यह पुरानी मानसिकता है कि हम कुछ भी कर सकते हैं पर अगर दूसरे ऐसा करने की जुर्रत करेंगे तो परेशान किया जाएगा।

एक समय था जब पश्चिम के देश भारत के उत्थान में दिलचस्पी ले रहे थे। अब यू-टर्न ले रहे लगते हैं। डा.मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने लिखा है, “सब कुछ मिला कर देखा जाए तो प्रतीत होता है कि वैश्विक वातावरण भारत के आर्थिक विकास के प्रति अब कम सहायक है”। हो सकता है कि ऐसे आंकलन ग़लत निकलें पर इस वक्त तो लग रहा है कि भारत और इन फ़ाईव आईज़ देशों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है। जैसे-जैसे देश तरक्की करेगा कईयों के पेट में दर्द होगा।

सम्बंध झटके खा रहें हैं इसलिए ज़रूरी है कि देश एकजुट हो कर अपनी सरकार का समर्थन करे।यह भी जरूरी है कि सरकार विपक्ष को हालात के बारे विश्वास में ले और विपक्ष सरकार की विदेश नीति का समर्थन करे।