संपादकीय

सड़क यात्रियों की सुरक्षा के लिये प्रभावी तंत्र की जरूरत

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकासखंड के मरचूला में यात्रियों से खचाखच भरी एक बस अनियंत्रित होकर करीब 150 फुट गहरी खाई में गिर गई। हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई

Rohit Maheshwari

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकासखंड के मरचूला में यात्रियों से खचाखच भरी एक बस अनियंत्रित होकर करीब 150 फुट गहरी खाई में गिर गई। हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई। जबकि 19 लोग घायल बताए गए हैं। 42 सीटर बस में करीब 63 यात्री सवार थे। अल्मोड़ा में बस हादसा ढाई साल पहले पौड़ी के धूमाकोट में हुए बस हादसे की याद ताजा कर गया। जून 2022 में 52 बारातियों से भरी बस 500 मीटर खाई में जा गिरी थी। हादसे में कुल 33 लोगों ने जान गवाई और 20 यात्री गंभीर और आंशिक रूप से घायल हुए थे। खाई में करीब 25 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया था। अक्तूबर में आई रिपोर्ट में पता चला कि बस ओवरलोड थी ही साथ में ओवरस्पीड भी हादसे का कारण बनी थी।

अल्मोड़ा जिले में ही गत 26 अक्टूबर को दिल्ली से जागेश्वर मंदिर जा रही पर्यटकों की टेंपो ट्रैवलर कालीधार के पास दुर्घटना का शिकार हो गई थी। जिसमें 17 यात्रियों को चोटें आई थी। टेंपो ट्रैवलर में कुल 21 लोग सवार थे। घायलों को उपचार के लिए एंबुलेंस की मदद से स्वामी विवेकानंद धर्मार्थ अस्पताल में भर्ती किया गया था। बीती 21 जून को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के जुब्बल में हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम की एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। हादसे में चार लोगों की मौत हो गई थी।

देश में सड़क हादसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वजह, ओवर स्पीड हो या रोड इंजीनियरिंग का फॉल्ट, सड़क हादसों में रोजाना औसतन 461 व्यक्ति मारे जा रहे हैं। बीती 23 सितम्बर को बिहार के वैशाली से लोजपा (आर) की सांसद वीणा देवी के बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। यह पहला मामला नहीं है, जब किसी सियासतदान के परिवार का कोई व्यक्ति सड़क हादसे मारा गया है। यह फेहरिस्त बहुत लंबी है। इसमें पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, कद्दावर नेता, सांसद पुत्र और कई दूसरी नामचीन हस्तियां शामिल हैं। सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, जर्मनी और जापान सहित कई देशों को पीछे छोड़ दिया है। भारत में हर रोज औसतन 1263 सड़क हादसे हो रहे हैं। प्रतिवर्ष होने वाले सड़क हादसों की बात करें तो यह संख्या चार लाख के पार चली जाती है।

बीते सितंबर को महाराष्ट्र में पुणे के कल्याणीनगर में हुई सड़क दुर्घटना के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का जबरदस्त गुस्सा देखने को मिला था। ढाई करोड़ रुपये की महंगी कार से हुए सड़क हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी। कार को एक नाबालिग चला रहा था। उस वक्त आम लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, जब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आरोपी को 75 सौ रुपये के बॉन्ड और सड़क सुरक्षा पर एक निबंध लिखने की सजा देते हुए जमानत दे दी थी। जब यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो आरोपी और उसके पिता पर कार्रवाई की गई। देश में नया मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब सड़क हादसों में कमी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दूसरी तरफ अमेरिका में 365 दिन में 19 लाख सड़क हादसे हो जाते हैं, लेकिन उनमें मारे जाने वाले लोगों की संख्या 36560 रहती है।

पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता राजेश पायलट और केंद्रीय मंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे भी सड़क हादसे का शिकार हुए थे। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा भी सड़क हादसे में मारे गए थे। टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री का निधन एक सड़क हादसे में हुआ। राजस्थान में बाड़मेर से पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह की सड़क हादसे में मौत हो गई। हादसे में खुद मानवेंद्र सिंह, उनका बेटा और ड्राइवर घायल हो गया था। लोजपा के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद सूरज भान के बेटे की मौत भी रोड एक्सीडेंट में हुई। यूपी के इलाहाबाद में लोजपा के तत्कालीन सांसद और बाहुबली नेता राम किशोर उर्फ रामा सिंह के बेटे राजीव कुमार सिंह उर्फ राहुल की मौत रोड एक्सीडेंट में हो जाती है।

हादसों की बड़ी वजह वाहन चालकों की लापरवाही और तेज रफ्तार को माना जाता है। हर हादसे के बाद फौरी तौर पर चालान व जुर्माना वसूलने की रस्म अदायगी भी होती है। लेकिन सड़क हादसे और न हों, इसको लेकर चिंता शायद ही कोई करता हो। वाहनों की तेज रफ्तार और यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण आए दिन होने वाले हादसे बताते हैं कि तकनीक के इस दौर में हम भले ही कई क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं लेकिन सड़क सुरक्षा के बंदोबस्त करने में आज भी काफी पीछे हैं।

पांच साल पहले लागू हुए नए मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालान राशि में कई गुना बढ़ोतरी की गई थी। मकसद था, सड़क हादसों में कमी लाना। देश में प्रतिवर्ष 4 लाख से ज्यादा सड़क हादसे हो रहे हैं। सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत ने कई विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, जर्मनी और जापान सहित 19 देश शामिल हैं। सड़क हादसों को लेकर विकसित देशों में भारत के मुकाबले कानून कठोर हैं। साथ ही इन देशों में वाहन से लेकर रोड इंजीनियरिंग तक, इन सभी बातों पर गहराई से काम होता है।

एक ओर हाईवे, एक्सप्रेस वे और मेगा हाईवे जैसे विकासात्मक कदम उठाए गए हैं, वहीं इन मार्गों की निगरानी और सुरक्षा के लिए आवश्यक ढांचे की कमी साफ नजर आती है। बड़ा कारण यह भी है कि हम केवल बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा मानकों की पालना और इसकी निगरानी का सिस्टम कहीं नजर नहीं आता। यह सुनिश्चित करना होगा कि ट्रैफिक पुलिस और अन्य जिम्मेदार विभाग तेज रफ्तार वाहनों पर लगाम लगाने का काम करें। ट्रैफिक कैमरे और स्पीड गवर्नर का सही तरह से उपयोग भी आवश्यक है। इसके जरिए मॉनिटरिंग करने के साथ ही सख्त कानून के जरिए सजा दिलाना भी आवश्यक है। खास तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्यों के प्रमुख शहरों को जोडऩे वाली उन सड़कों पर निगरानी ज्यादा जरूरी है, जहां वाहनों का दबाव ज्यादा रहता है। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस भी हादसों से अछूता नहीं है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं-2022’ शीर्षक से जारी वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 4,61,312 सड़क हादसे हुए थे। इन हादसों में 1,68,491 लोगों की जान गई थी, जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए थे। पिछले वर्ष की तुलना में सड़क हादसों में 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इन हादसों में होने वाली मौतों में 9.4 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक्सप्रेस वे सहित राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,51,997 (32.9 प्रतिशत) सड़क हादसे हुए। राज्य मार्गों पर 1,06,682 (23.1 प्रतिशत) हादसे और अन्य मार्गों पर 2,02,633 (43.9 प्रतिशत) सड़क दुर्घटनाएं देखने को मिली। साल 2022 के दौरान सड़क हादसों के 66.5 प्रतिशत पीड़ितों की आयु 18 से 45 वर्ष के बीच थी। अधिकांश पीड़ित युवा थे। लगभग 68 प्रतिशत मौतें, ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में 32 प्रतिशत मौतें हुईं।

सड़क हादसों की रोकथाम के नाम पर सड़क सुरक्षा सप्ताह मना लेना ही काफी नहीं है। जरूरत इस बात की भी है कि आम जनता को यातायात नियमों के प्रति तो जागरूक किया ही जाए, वाहन चालकों को लाइसेंस देते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। सरकारी तंत्र सड़क सुरक्षा को लेकर इसी तरह से बेपरवाह रहा तो आने वाले दिनों में सड़कें और खूनी हो सकती हैं। सरकार को ट्रॉमा केयर पर फोकस करना होगा। सड़क हादसे तो हर देश में होते हैं, लेकिन मौते उतनी नहीं होती। अमेरिका में भारत से कई गुणा ज्यादा हादसे होते हैं, लेकिन मौत एक चौथाई भी नहीं होती।