संपादकीय

जम्मू-कश्मीर में चुनाव

Aditya Chopra

चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर राज्य में तीन चरणों में चुनाव कराने की घोषणा कर दी है जो सितम्बर के आखिरी पखवाड़े से शुरू होकर 1 अक्टूबर तक समाप्त हो जायेंगे। इसके साथ ही हरियाणा राज्य में भी एकल चरण में चुनाव कराये जायेंगे। इस राज्य में 1 अक्टूबर को ही सभी 90 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जायेंगे। जबकि मतगणना दोनों राज्यों में 4 अक्टूबर को ही होगी। इन दोनों राज्यों में विधानसभा की 90-90 सीटें हैं फर्क सिर्फ इतना है कि जम्मू-कश्मीर केन्द्र शासित राज्य है जबकि हरियाणा पूर्ण राज्य है। जम्मू-कश्मीर में चुनावों का महत्व इसलिए अधिक करके देखा जा रहा है क्योंकि यहां पिछले अन्तिम चुनाव 2014 में हुए थे तब यह प्रदेश भी पूर्ण राज्य था। इन चुनावों के बाद जम्मू-कश्मीर में स्व. मुफ्ती मुहम्मद सईद की क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी व भाजपा के बीच गठबन्धन की सरकार बनी थी। मगर बीच में 2016 में ही मुफ्ती साहब की मृत्यु हो जाने की वजह से बाद में कुछ अंतराल के बाद उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती गठबन्धन की ही मुख्यमन्त्री बनी और उनकी सरकार 2018 तक चलती रही । मगर इस वर्ष में भाजपा ने गठबन्धन से नाता तोड़ लिया और यह सरकार गिर गई जिसकी वजह से राज्य के तत्कालीन संविधान के अनुसार यहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया लेकिन 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा संसद के माध्यम से समाप्त कर दिया गया और इस पूर्ण राज्य को दो केन्द्र शासित क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में विभक्त कर दिया गया। तब से जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल का शासन चल रहा है। यह भी तथ्य है कि स्वतन्त्र भारत में जम्मू-कश्मीर एकमात्र एेसा राज्य है जिसकी दर्जा पहले से छोटा किया गया है जबकि होता इसके विपरीत यह रहा है कि अर्ध या केन्द्र शासित राज्यों को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता रहा है। हालांकि 5 अगस्त को जब इसे केन्द्र शासित राज्य बनाया गया था तो संसद में ही सरकार ने यह आश्वासन भी दिया था कि वह शीघ्र ही इसे पूर्ण राज्य का दर्जा भी देगी।
स्वतन्त्रता के बाद जब जम्मू-कश्मीर का 26 अक्टूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय हुआ था तो इसे संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़कर विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। परन्तु यह व्यवस्था अस्थायी थी। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान भी था। मगर यह संविधान भारतीय संविधान के दायरे में ही था जिसकी प्रथम पंक्ति ही यह कहती थी कि जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का अभिन्न अंग है। परन्तु अब यह इतिहास की बात हो चुकी है और अब इस राज्य में भारतीय संविधान की सभी शर्तें सम्पूर्णता में लागू होती हैं जिसमें नागरिकों के अधिकार भी शामिल हैं और आरक्षण भी शामिल है। यह तय है कि समय की सुई को अब पीछे नहीं घुमाया जा सकता है और अनुच्छेद 370 बीते समय की बात हो चुकी है परन्तु इस राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के प्रावधान खुले हुए हैं। फिर भी 10 वर्ष बाद इस राज्य में चुनाव होना महत्वपूर्ण घटना इसलिए हैं क्योंकि इस राज्य के लोग अर्से से इसकी मांग कर रहे थे। 2024 में जब इस राज्य में लोकसभा चुनाव हुए तो मतदान का प्रतिशत 58 से भी अधिक रहा जो कि इस राज्य में हुए पहले चुनावों के बाद सर्वाधिक था। इससे पता लगता है कि राज्य के लोगों में लोकतन्त्र की प्रणाली के लिए बेसब्री थी और जनता चाहती थी कि यदि विधानसभा चुनाव भी होते हैं तो उनका उत्साह कम नहीं रहेगा। चुनाव आयोग ने बहुत कम समय में तीन चरणों में चुनाव कराने का जो फैसला किया है वह भी कम साहसपूर्ण निर्णय नहीं है क्योंकि राज्य मे जिस प्रकार की आतंकवादी गतिविधियां अभी भी चल रही हैं उन्हें देख कर आशंकित हुआ जा सकता है।
खासकर जम्मू क्षेत्र को अब पाक परस्त घुसपैठिये आतंकवादियों ने अपना निशाना बना रखा है और वे हमारी सेना की टुकड़ियों को लक्ष्य कर रहे हैं। चुनावों के लिए पूरी सुरक्षा की जरूरत होगी जिसका इंतजाम चुनाव आयोग करेगा परन्तु वह इस राज्य के लोगों के लोकतन्त्र के प्रति उत्साह को देखकर प्रेरित है। इससे उम्मीद है कि सामान्य लोग ही आतंकवादियों की चालों को सफल नहीं होने देंगे। मेरा शुरू से ही यह मानना रहा है कि आम कश्मीरी उसी तरह सच्चे भारतीय होते हैं जिस तरह भारत के अन्य राज्यों के लोग। लोकतन्त्र इनकी भी परंपराओं में शेष भारत की तरह शामिल है अतः विधानसभा चुनावों में भी इनकी शिरकत पूरी शिद्दत के साथ होगी। राज्य के सभी क्षेत्रीय दल चुनाव में शामिल होने का एेलान कर रहे हैं। साथ ही हरियाणा के चुनाव भी हो रहे हैं। यहां असली टक्कर कांग्रेस व भाजपा के बीच ही होगी लेकिन चुनाव आते-आते क्या राजनैतिक समीकरण बनते हैं यह देखने वाली बात होगी वैसे यह हकीकत है कि पिछले लोकसभा चुनावों में दोनों पार्टियों ने बराबर-बराबर 5-5 सीटें जीती थीं।
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र व झारखंड के चुनावों की घोषणा नहीं की है जबकि पिछली बार हरियाणा औऱ महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ हुए थे। इसकी क्या वजह है, यह तो चुनाव आयोग ही बेहतर बता सकता है क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल भी 26 नवम्बर को ही समाप्त हो रहा है जबकि हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 5 नवम्बर को समाप्त हो रहा है। यदि झारखंड समेत चारों राज्यों मंे एक साथ चुनाव हो जाते तो बेहतर रहता और राजनैतिक कयासबाजियों को हवा नहीं मिलती। चुनाव आयोग को राजनैतिक अटकलबाजियों से परे रहना चाहिए और अपनी कार्यप्रणाली में उसे एेसा दिखना भी चाहिए।