जिस समय भारत में एक देश-एक चुनाव की चर्चा हो रही है उस समय चुनाव आयोग यदि चार राज्यों में भी एक साथ चुनाव न करा सके तो इस स्थिति को हम केवल आयोग में इच्छा शक्ति का अभाव ही कह सकते हैं क्योंकि जब एक देश-एक चुनाव का विचार आया था तो आयोग ने कहा था कि वह इसके लिए तैयार हो सकता है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 90 के दशक तक भारत में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त ही हुआ करते थे और 1967 तक देश में विधानसभाओं व लोकसभा के चुनाव एक साथ ही हुआ करते थे। उस समय चुनाव आयोग दक्षिण के तमिलनाडु से लेकर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश तक में एक साथ ही चुनाव कराया करता था परन्तु जब पिछले महीने चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर व हरियाणा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तो इसमें वह जल्दी ही चुनाव में जाने वाले अन्य दो राज्यों झारखंड व महाराष्ट्र को भी शामिल नहीं कर सका जिससे यह आभास लगाया जा सकता है कि चुनाव आयोग की अपनी अलग वरीयताएं हैं और उसके सामने वे मूल मुद्दे नहीं हैं जिनका सम्बन्ध एक देश-एक चुनाव से हो सकता है।
हकीकत यह है कि हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवम्बर को खत्म हो रहा है जबकि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवम्बर को खत्म हो जायेगा। चुनाव आयोग ने हरियाणा में तो एक ही चरण में 5 अक्तूबर को मतदान कराये जाने की घोषणा जम्मू-कशमीर के चुनावों के साथ कर दी थी ( हरियाणा में भी पहले 1 अक्तूबर को ही मतदान होना था मगर भाजपा व अन्य क्षेत्रीय दलों की इस रार पर इसकी तारीख बदल कर 5 अक्तूबर की गई और चुनाव परिणाम की तारीख भी 5 अक्तूबर की जगह 8 अक्तूबर की गई) मगर महाराष्ट्र को उसने अपनी वरीयता में नहीं रखा। महाराष्ट्र भी उत्तर प्रदेश के बाद देश का सबसे बड़ा राज्य है जहां से लोकसभा के 48 सांसद चुने जाते हैं जबकि उत्तर प्रदेश से 80 सांसद लोकसभा में जाते हैं। यदि आयोग हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ कराता तो उसे आदर्श चुनाव आचार संहिता का समय एक साथ ही दोनों राज्यों में घोषित करना पड़ता। इससे एक देश-एक चुनाव का यह विचार प्रतिष्ठित होता कि बार-बार चुनाव कराने से आचार संहिता लागू होने पर देश के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जबकि पिछली बार पांच साल पहले चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनाव एक साथ कराये थे। इस बारे में कुछ राजनैतिक पंडितों का मत अलग है। उनका मानना है कि महाराष्ट्र व हरियाणा दोनों ही राज्यों की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की हालत खस्ता है। अतः दोनों में एक साथ चुनाव न कराये जाने के राजनीतिक कारण हैं। मगर लगता है अब चुनाव आयोग झारखंड व महाराष्ट्र में चुनाव एक साथ कराने की तैयारी में जुट गया है। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल आगामी वर्ष के पहले जनवरी महीने में तीन तारीख को ही खत्म हो रहा है अतः झारखंड व महाराष्ट्र विधानसभाओं की अवधि पूरी होने में लगभग एक महीने का ही अन्तर है। इसलिए इन दोनों राज्यों में एक साथ चुनाव होना हर दृष्टि से तर्कसंगत है।
वैसे चुनाव आयोग कह सकता था कि वह झारखंड व महाराष्ट्र के चुनावों की घोषणा भी अलग तारीखों पर करेगा क्योंकि विधानसभाओं की अवधि में काफी अन्तर है। एेसा करने के लिए भी चुनाव आयोग स्वतन्त्र है क्योंकि उस पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। यह संवैधानिक व्यवस्था है जबकि व्यावहारिक तौर पर चुनाव आयोग आजकल विभिन्न आरोपों से घिरा रहता है। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है तो चुनाव आयोग ने इसके चुनाव हरियाणा के साथ तीन चरणों में कराने का निश्चय किया जो कि 18 सितम्बर से शुरू हो चुके हैं। दूसरा चरण 25 सितम्बर को होगा और तीसरा व अन्तिम चरण 1 अक्तूबर को होगा। इस राज्य के चुनाव इसलिए भी आयोग को जल्दी कराने थे कि क्योंकि देश का सर्वोच्च न्यायालय फैसला दे चुका था कि राज्य में 30 सितम्बर तक चुनाव हो जाने चाहिए। वैसे भी इस अर्ध राज्य में दस वर्ष बाद विधानसभा के चुनाव होंगे।
यहां पिछले चुनाव 2014 में तब हुए थे जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ के भीतर एक विशेष राज्य का दर्जा अनुच्छेद 370 के तहत मिला हुआ था मगर 5 अगस्त, 2019 को इस राज्य से 370 को समाप्त करके केन्द्र की मोदी सरकार ने दो केन्द्र शासित क्षेत्रों में विभक्त कर दिया था। तब जम्मू-कश्मीर को एक केन्द्र शासित राज्य व लद्दाख को इससे अलग करके केन्द्र शासित क्षेत्र बना दिया गया था। अतः जम्मू-कश्मीर के चुनाव 30 सितम्बर तक हर हालत में कराने की मजबूरी चुनाव आयोग के सामने थी। इसलिए महाराष्ट्र चुनावों को हरियाणा के चुनावों से अलग करके चुनाव आयोग ने केवल यही दिखाया कि वह एेसा करने में सक्षम नहीं हैं परन्तु अब आगामी 23 व 24 सितम्बर को चुनाव आयोग के तीनों आयुक्त झारखंड दौरे पर जा रहे हैं जहां वे चुनावी तैयारियों का जायजा लेंगे और इसके बाद 27 व 28 सितम्बर को महाराष्ट्र के दौरे पर जायेंगे। इससे यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि आयोग इन दोनों राज्यों में एक साथ ही चुनाव करायेगा और आदर्श आचार संहिता की अवधि भी एक समान रखेगा। इसलिए अब इन कयासों पर पानी फिर जाना चाहिए कि महाराष्ट्र का सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना (महायुति) गठबन्धन चुनावों को और आगे खींचना चाहता है। झारखंड में तो इंडिया गठबन्धन की झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में हेमन्त सोरेन की सरकार है जो पिछले महीने ही जेल से जमानत पर लौटे हैं अतः इस राज्य में तो चुनाव की तैयारियों में सत्तारूढ़ गठबन्धन स्वयं ही कमर कसे बैठा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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