End of election festival: आज लोकसभा चुनावों के अन्तिम सातवें चरण का मतदान सम्पन्न हो जायेगा जिसके साथ ही 18वीं लोकसभा के गठन का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। यह काम 4 जून को मतगणना के साथ शुरू होगा जिसमें से निकले चुनाव परिणामों की घोषणा करके चुनाव आयोग विजयी प्रत्याशियों को प्रमाणपत्र देगा। चुनाव आयोग विधायिका के गठन की यह प्रक्रिया पूरी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होगा। मगर पूरे 42 दिन चली इस चुनाव प्रक्रिया को लेकर जिस तरह चुनाव आयोग की आलोचना हो रही है वह भी लोकतन्त्र में एक गंभीर मामला है। खास कर आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर जितने भी मामले विभिन्न राजनैतिक दलों विशेषकर विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग के संज्ञान में लाये गये उनके बारे में आयोग की चुप्पी कई तरह के सवाल खड़े करती है। मगर इससे भी ऊपर जिस तरह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मतदान केन्द्रों में मतदाताओं के साथ भेदभाव किये जाने की खबरें धार्मिक आधार पर मिली वे बहुत ही चिन्ता पैदा करने वाली हैं। चुनाव आयोग का काम स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव कराने का है। उसकी स्वतन्त्रता व निष्पक्षता किसी भी प्रकार के सन्देह से ऊपर होनी चाहिए क्योंकि संविधान में उसे यही रुतबा बख्शा गया है।
आदर्श आचार संहिता लागू करने का मतलब ही यह होता है कि लोकसभा चुनावों के चलते पूरे मुल्क के निजाम का चुनाव आयोग निगेहबान हो जाये। यह काम जमीन पर होते हुए दिखना चाहिए। दिखता भी है जब चुनाव आयोग चन्द आला अफसरों के तबादले करता है लेकिन असल मुद्दा यह है कि देश के मतदाताओं को भी यह इल्म रहे कि चुनाव के दौरान वे पूरी तरह स्वयंभू नागरिक हैं और इस मुल्क के लोकतन्त्र के मालिक हैं। चुनाव में भारत के लोग न हिन्दू होते हैं और न मुसलमान होते हैं बल्कि वे केवल नागरिक होते हैं जिनके पास एक वोट का अधिकार होता है जिसका इस्तेमाल करके वे देश की सरकार बनाते हैं। यह अधिकार उन्हें गांधी बाबा देकर गये जिसे बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान लिख कर लागू किया। खैर आज चुनाव समाप्त हो जायेंगेे और अब लोगों को 4 जून को आने वाले परिणामों का बेसब्री से इन्तजार रहेगा। चुनाव में वही पार्टी या गठबन्धन जीतेगा जिसे जनता का समर्थन मिला होगा। समर्थन उसी पार्टी को मिलेगा जिसके उठाये गये मुद्दों से जनता प्रभावित होगी।
हमने देखा कि इस बार चुनावों में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से अधिसंख्य पर भाजपा व इंडिया गठबन्धन के बीच सीधे आमने-सामने की लड़ाई हो रही है। मगर हर राज्य में भाजपा का मुकाबला इंडिया गठबन्धन में शामिल प्रमुख क्षेत्रीय दल से हो रहा है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य मुकाबले में कांग्रेस पार्टी है। इंडिया गठबन्धन के केन्द्र में भी कांग्रेस पार्टी है। अतः भाजपा के निशाने पर मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी ही है परन्तु दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी भाजपा को निशाने पर लेकर जो तीर चला रही है उसके तरकश को 25 अन्य इंडिया गठबन्धन के दल संभाले हुए हैं। अतः मुकाबला बहुत दिलचस्प नजर आ रहा है और दोनों पक्ष दावा कर रहे हैं कि चुनावों के बाद उनकी ही सरकार बन रही है। आज पंजाब की सभी 13 व हिमाचल की सभी चार लोकसभा सीटों पर भी मतदान हो रहा है। इन दोनों राज्यों में सेना में भर्ती की अग्निवीर योजना मुख्य चुनावी मुद्दा बनी हुई है। इसे देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि दोनों ही राज्यों के चुनावों में इस बार युवा मतदाताओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होने जा रही है।
पिछली बार पंजाब में भाजपा को नाममात्र की ही सफलता मिली थी। इस राज्य में आते-आते भाजपा की राष्ट्रव्यापी लहर थम सी गई थी जबकि कांग्रेस कुल आठ सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। अतः पंजाब के तेवर इन चुनावों में क्या रहते हैं, यह देखने वाली बात होगी क्योंकि राज्य में इंडिया गठबन्धन के ही घटक दल आम आदमी पार्टी की सरकार है और कांग्रेस के मुकाबले में भी यही पार्टी मानी जा रही है। मगर हिमाचल की चारों सीटों पर पिछली बार भाजपा विजयी रही थी। 2019 से लेकर अब तक इस राज्य की राजनीति में खासा परिवर्तन आ चुका है। इस दौरान राज्य में भाजपा को हरा कर कांग्रेस की सरकार शिमला में काबिज हो चुकी है। अतः देखना होगा कि चार सीटों पर भाजपा व कांग्रेस के बीच किस अनुपात में बंटवारा होता है। राज्य से कांग्रेस के दिग्गज आनन्द शर्मा भी चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी सीट का नतीजा क्या रहता है, यह देखना भी बहुत रुचिकर होगा। इसके अलावा केन्द्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ की इकलौती सीट से कांग्रेस के मनीष तिवारी व भाजपा के संजय टंडन के बीच मुकाबला हो रहा है। इस सीट का परिणाम भी उत्सुकता से देखा जायेगा क्योंकि दोनों प्रत्याशी सरनाम राजनीतिज्ञों की सन्तान हैं।
writer- Aditya Narayan Chopra